आज बद्रीनाथ जी की मृत्यु हो गई थी। बड़ा ही कष्टकारी जीवन था उनका। वहां मौजूद हर व्यक्ति कह रहा था बेचारे बद्रीनाथ जी की तो आज जिंदगी सुधर गई।हर वक्त भगवान को कोसते रहते थे कि सबको तो बुलाते हो अपने पास मुझे कब बुलाओगे, कबतक ये अंधकार मय जीवन जीता रहूंगा। भरा-पूरा परिवार होते हुए भी कितने अकेले थे बद्रीनाथ जी कोई औलाद न पूछती थी।
तीन बेटे और तीन बेटियां थीं । पत्नी की अभी आठ साल पहले मृत्यु हो चुकी थी रेलवे के लोको वर्कशाप में काम करते थे। लोकों में बेल्डिंग का काम करते थे ।बड़ी मेहनत का काम होता था । किंतु घर परिवार चलाने के लिए तो इंसान मेहनत करता ही है।अब रिटायर हो चुके थे।87 की उम्र हो रही थी।अच्छी पेंशन मिलती थी किसी पर आश्रित नहीं थे। तीनों लड़कों और लड़कियों की शादी व्याह से निवृत्त हो चुके थे।सब अपनी अपनी घर गृहस्थी में मग्न थे।
पहले सब एक साथ रहते थे पर अब घर छोटा पड़ने लगा था। बेटियां तो शादी के बाद अपने अपने ससुराल चली गई।बेटों का भी परिवार बढ़ने लगा तो बड़े दोनों बेटों ने अपना अपना अलग घर बना लिया। तीसरा बेटा साथ रहता था उसकी भी शादी कर दी लेकिन तीसरा बेटा बहुत शराब पीता था ।
इससे पति-पत्नी में बहुत झगडे होती थे। बेटा काम धंधा कुछ करता नहीं था पिता से जबरदस्ती पीने के लिए पैसे लेता था ऐसे ही एक बार जब बद्रीनाथ जी ने पैसे देने से मना कर दिया था तो उनका हाथ मरोड़ दिया था जिससे हड्डी क्रैक हो गई थी बद्रीनाथ जी की और यदि पिता पैसे नहीं देता था तो घर का सामन बेच देता था। उसकी इस हरकत से तंग आकर एक दिन बहू घर छोड़कर चली गई फिर वापस ही नहीं आई ।
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बद्रीनाथ जी जब लोकों में बेल्डिंग का काम करते थे तो एक बार क्या कई बार हो जाता था बेल्डिंग की चिंगारी आंख में चली जाती थी । वैसे बहुत एहतियात के साथ ये काम किया जाता है लेकिन फिर भी हो जाता था। जिससे उनको आंखों में बहुत दर्द रहता था और हर वक्त पानी भी आंखों से निकलता था।
डाक्टरों को दिखाया उस संमय दवा दे देते थे लेकिन वो पूरी तरह ठीक नहीं हो पाया । बड़े अस्पताल में दिखाने को कहा । रोशनी भी आंखों की कम हो रही थी फिर बेटों से कहा और मद्रास के एक बड़े अस्पताल में दिखाया। वहां पर डाक्टरों ने जवाब दे दिया कि अब आंख नहीं ठीक हो सकती आंख तक रोशनी पहुंचाने वाली नसें डैमेज हो चुकी है अब कुछ नहीं हो सकता और धीरे धीरे आंख की रोशनी पूरी तरह खत्म हो जाएगी।अब ठीक नहीं हो सकता।
अब बदरीनाथ जी परेशान तो थे लेकिन क्या कर सकते हैं। पत्नी के सहारे बस जिंदगी कट रही थी और फिर एक दिन पत्नी भी चली गई इस दुनिया से ।एक बेटा था साथ में तो वो दिनभर शराबके नशें में पड़ा रहता था।अब दिनभर का एक नौकर लगा रखा था
पेंशन तो अच्छी मिलती ही थी किसी बेटे से पैसे मांगने की जरूरत नहीं पड़ती थी। वहीं नौकर ही उनके सारे काम करता था खिलाना पिलाना , नहलाना धुलाना कपड़े पहनाना आदि। ऐसे ही किसी तरह समय कट रहा था ।नौकर टी वी चला देता था और उसमें क्या हो रहा है बताया करता था वैसे बद्रीनाथ जी को सुनाई तो पड़ता था । लेकिन एक अंधकार मय जीवन जीना कितना कष्टकारी होता है ।
ऐसे ही शराब के नशे में एक दिन छोटा बेटा किसी गाड़ी से टकरा गया सिर में चोट लगी पिताजी ने पैसा भी लगाया इलाज में लेकिन वो बच न सका दस दिन बाद मौत हो गई उसकी। बेटियां सब दूर दूर थी कभी कभार आकर मिल लेती थी लेकिन पिताजी को ले जाकर अपने पास रखने को कोई तैयार नहीं था। लेकिन बड़े दोनों बेटों ने पिता से बिल्कुल मुंह मोड़ लिया था नौकर तो है करने को बस इसी में अपनी इतिश्री समझ ली थी।
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दोनों में से कोई भी बेटा पिताजी को अपने पास नहीं रखता था कहते थे अरे अपने पास रखकर कौन जिम्मेदारी उठाएगा उनके साथ रहते हम तो बंध जाएंगे घर से बाहर ही नहीं जा आ सकतें । नौकरों के भरोसे ही छोड़ दिया था ।और अपने परिवार के साथ घूमते फिरते रहते थे। चाहे बीमार हो बद्रीनाथ जी चाहे उदास हो बस उसी नौकर के सहारे ही समय बीतता रहता था ।हर समय कहते रहते थे भगवान बुला लो अपने पास।अब तो घुटने से भी लाचार हो गए थे बड़ी मुश्किल से चल फिर पाते थे।भला हो बोला नौकर का जो जी जान से उनकी सेवा करता रहता था।
आज बद्रीनाथ जी की मृत्यु हो गई तो बेटों के तो एक आंसू न आए लेकिन भोला सबसे ज्यादा रो रहा था जैसे वो ही उनकी सगी औलाद हो ।बेटों ने तो मुंह मोड़ लिया था । पिता की मृत्यु के बाद उनके घर को बेचकर आधा आधा बांट लिया दोनों बेटों ने ।और उनकी पेंशन का जो पैसा था उसी से उनका सारा अंतिम संस्कार और तेरहवीं सब निपटा दिया ।ऐसी ही होती है औलाद ।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
23 अप्रैल