बाप के जतन – प्रवीण सिन्हा : Moral Stories in Hindi

  चाय पीकर मैं अखबार पलट हीं रहा था कि अचानक मोबाईल की घंटी बजी, हलो कहने पर उधर से रोशन लाल के पुत्र की आवाज आई , अंकल दादा जी नही रहे। मेरे लिए क्योंकि उनकी तबियत लम्बे समय से खराब थी बेटा अंतिम संस्कार कब होगा आज ही 12 बजे होगा कह कर मोबाईल कट कर दिया । रोशन लाल मेरे अच्छे मित्रों में से एक हैं । बहुत ही शांत स्वाभाव के गणित के व्याख्याता हैं हायर सेकेण्डरी में । बहुत सेवा की उसने अपने पिता की कहां कहां नहीं ले गये इलाज के लिए केंसर का ईलाज बड़ा मंहगा होता हैं

रायपुर के अलावा दिल्ली मुम्बई सभी जगह इलाज कराया , पर होनी को तो कुछ और ही मंजूर था । और अघनू राम जी स्वर्ग लोक प्रस्थान कर गये । भगवान ऐसा बेटा सबको दे अपने पिता के इलाज पर पानी की तरह पैसा बहाया रोशन लाल की माता पहले ही चली गई थी । बेचारे अघनूराम जी महीने दो महीने में रोशन लाल के पास आ जाते थे, उनका इलाज वही करवाते थें । शायद इस कलयुग में उसके जैसा श्रवण कुमार मिलना मुश्किल ही हैं । यही सब याद करते-करते अपना सामान पैक करने लगा

आखिर अंतिम संस्कार में जाना जरूरी था । समय तो 12 बजे का था पर विलम्ब होना स्वाभाविक था । बातों ही बातों में उनके समीप के रिश्तेदार से बातचीत करने का अवसर प्राप्त हुआ । मैने रोशन लाल की तारीफ करते हुए कहा ऐसा बेटा भगवान सबको दे उसने अपने पिता की बहुत सेवा की , इतना कहते ही वह भड़क गया कहां का बेटा कहां की सेवा भाई साहब मैं बताता हूं वास्तविकता । अघनूराम के 6 पुत्र पुत्रिया हैं दो बड़ी पुत्रियों के बाद तीन पुत्र और आखिर में एक पुत्री हैं ।

उस जमाने में 6 पुत्र पुत्रियां होना आश्चर्य का विषय न था आजकल तो तीन की गिनती बताओं तो आश्चर्य करते हैं । अघनूराम ने दो पुत्रियों का विवाह मैट्रिक करते ही कर दिया । रोशन लाल पढ़ने में होशियार था , इसलिए उसे खूब पढ़ाया वो उसका ज्येष्ठ पुत्र था इसलिए थोड़ा लाड़-प्यार उसके प्रति कुछ ज्यादा ही था पढ़ने के लिए पैसे देने में कोई कमी नहीं कि रोशन लाल ने भी पैसे का मान रखा और प्रथम श्रेणी में एम. एस सी. गणित में किया और हायर सेकेण्डरी में व्याख्याता बन गया बड़ी पुत्री और रोशन के शिक्षा में तीन एकड़ कब निकल गया

पता ही नहीं चला । अब तो रोशन लाल से ही कुछ आशा थी । पर वह तो नौकरी लगते ही पैसे इकट्ठे करने लगा था । कैसे भी करके अघनू राम ने रोशन लाल और मंझले पुत्र का विवाह किया । रोशन ने बहू के आते ही पूरी दूरी बना ली । वेतन का बड़ा हिस्सा बचत खाते में डालने लगे । इतना वेतन होने के बाद भी घर से चांवल दाल ले जाना नहीं भूलता था । बार बार उसका सम्पत्ति में बराबर का हिस्सा हैं कह कर घुड़की देकर झगड़े का प्रयास करता था ।

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इसी बीच छोटे पुत्र पुत्री के विवाह के लिए एक एकड़ और बेचना पड़ा इस बार रोशन लाल भड़क गया । सबो ला बेच बेच के बर बिहाव करबे त हमर मन बर काय बाचही कह कर बिहाव घर में ही झंझट करने लगा पर ऐसा नहीं हुआ की छोटे भाई-बहन की शादी में थोड़ा बहुत सहयोग कर दे । बहन को 2500की मिक्सी और पातर पातर सांटी देकर अपने कर्तव्य से इति श्री कर लिया था । जबकि अघनू राम ने अपनी जवानी में 3 एकड़ खेत अपने परिश्रम से खरीदा था । बड़े बेटे और बड़ी बहू के ताने मारने और झंझट से तंग आकर अघनू ने बंटवारे का फैसला किया ।

बहनों ने बंटवारा नहीं लेने का फैसला किया । पंचों ने डेढ़ डेढ़ एकड़ भाई बंटवारा के साथ पिता को भी दे दिया । रोशन लाल रेगहा देकर फसल बेचकर पैसे लेकर चला जाता था पर पिता को चार पैसे दे दे यह उसके हाथ से कभी न हुआ । दोनो छोटे भाई पिता की सम्पत्ति को पिता के पास रहने देकर बारी बारी से खाना और स्वास्थ्य की चिंता करते थे । अघनू राम की पत्नी पहले ही स्वर्ग सिधार गयी थी अकले कितने दिन टिक पाता । पत्नी के जाते ही व्यक्ति मन से टूट जाता हैं ।

दिनभर तो दोस्तों के साथ कट जाता पर रात को किससे बात करे चुपचाप अपने खोली में सो जाता था । एक दिन भोजन करते बखत निगलने में तकलीफ हुई तो पास के डाक्टर को दिखाया तो उसने बड़े डाक्टर को दिखाने की बात कही । तकलीफ बढ़ी तो बड़े बेटे के पास जाने का मन बनाया । वैसे भी पुत्र मोह के कारण दो चार महीने में रोशन के यहां चला जाता था पोती पोतो पर 2-4 हजार लुटा देता था पर कभी आते बखत ये ले बाबू दवई पानी बर रख ले कह कर हाथ न छूटा था । वैसे भी ज्येष्ठ पुत्र पुत्री पर ज्यादा ही प्रेम छलकता हैं ।

मरता क्या न करता रोशन लाल के पास इलाज के लिए चला गया । रोशन ने भी बड़ी दिलेरी दिखाई और इलाज के लिए बड़े-बड़े डाक्टर के पास ले गये । डाक्टर की फीस और दवाई के पैसे बाबूजी से लेना नहीं भूलता था आखिर में डाक्टर ने गले का कैंसर बताया । कैंसर पता चलते ही रोशन और बहू के सुर बदल गये ।

70-75 हजार वेतन पाने वाला व्याख्याता भी अपने पिता के इलाज के लिए पल्ला झाड़ लिया था । आखिर बड़े बेटे के द्वारा दो टूक जवाब देने के बाद बोरिया बिस्तर समेट कर जाने लगा तो रोशन ने रोकते हुए कहा बाबूजी तोर इलाज कराहू फेर तोर हिस्सा के खेत ला मोर नाम से बिक्री नामा करे बर लागही कह कर अपने पिता के सामने शर्त रखी । रोशन लाल कोई रिस्क नहीं लेना चाहते थे इसलिए बिक्री नामा का प्रस्ताव रखा ताकि कल के रोज बाबूजी की सम्पत्ति पर छोटे भाई दावा न कर सके ।

अघनू ने भी जब तक जान हैं तो कैंसर से लड़ना हैं सोचकर रोशन के प्रस्ताव को मान लिया । तीसरे दिन ही अपने हिस्से का खेत रोशन के नाम बिक्री नामा कर दिया । रोशन ने भी तत्परता दिखाई और बाबूजी को दिल्ली फिर मुम्बई लेकर गया इलाज चलता ही रहा । 5लाख ही खर्च हो पाये थे की डाक्टर ने ही कह दिया कि 80 साल के उम्र में कुछ नहीं किया जा सकता इसे घर ले जाकर सेवा करो कह कर वापस भेज दिया । रोशन लाल ने भी कुछ पैसे देकर अघनू राम को गांव भेज दिया । जैसे तैसे छोटे पुत्र पिता के भोजन और दवाई की व्यवस्था करते ।

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आखिर बूढ़ा शरीर कितने दिन साथ देता एक दिन भोर को ही आत्मा परमात्मा में विलीन हो गई । इधर पार्थिव शरीर पड़ा था और रोशन लाल अपने छोटे भाइयों से अंतिम संस्कार के लिए पैसे मांग रहा था । अंतिम संस्कार से आते ही दशगात्र के अनुमानित खर्च के बजट पर चर्चा होने लगी । रोशन लाल ने प्रयागराज का खर्च करना स्वीकार किया । बाकी खर्चो का बोझ छोटे भाइयों पर डाल दिया । आज दशगात्र हैं । रोशन लाल प्रयाग राज से लौट चुका था बड़ी बहने प्रसन्न थी कि उनके पिता का विधिवत तर्पण हो गया था ।

माटी के ये चोला माटी होके पवित्र संगम में विलीन हो गया था । शाम को भोजन के पश्चात भैरव पूजा के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ । समाज और परिवार में रोशनलाल के सेवा और पिता के प्रति कर्तव्य की बड़ी प्रसंशा हो रही थी । क्यों कि अघनू ने अपने छोटे पुत्रों को और किसी को भी अपने हिस्से की जमीन रोशनलाल को बिक्री नामा करने की जानकारी नहीं दी थी । अघनू की चुप्पी ने रोशनलाल के सामाजिक और पारिवारिक प्रतिष्ठा में इजाफा कर दिया था ‌। अघनू राम जानता था मेरा पुत्र दोगला हैं , पर पुत्र का मोह जीवन भर कहा कम होता हैं 

                                          प्रवीण सिन्हा 

                                        रामकुण्ड रायपुर

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