बी.ए. पास – कविता झा ‘अविका’ : Moral Stories in Hindi

“खबरदार जो मेरी बाईक को हाथ भी लगाया तो… पढ़ाई होती नहीं है लाड साहेब से और दिन भर बाईक लेकर आवारागर्दी करने अपने दोस्तों के साथ निकल जाएंगे।”

रोशन ने रुपेश को अपनी बाइक से दूर करते हुए तेज आवाज में कहा तो रुपेश बोला…

“भाई प्लीज़ थोड़ा धीरे बोलिए ना।” 

 गेट के बाहर उसके दोस्त उसका इंतजार कर रहे थे। आज दोस्तों ने अपनी-अपनी बाइक से शहर के बाहर के एक बड़े ही प्रसिद्ध मनोकामना मंदिर जाने का प्रोग्राम बनाया था जहां लोगों की सभी मनोकामनाएं सिद्ध होती है।

रुपेश का भी बहुत दिनों से उस मनोकामना मंदिर जाने का मन था दोस्तों ने प्रोग्राम बनाया तो उसने भी तुरंत हां कह दिया। भले उसके पास मंदिर जाने के लिए ना तो कोई अच्छा कुर्ता ही था और ना ही अपनी बाइक। उसकी तो साइकिल भी टूट गई तो उसे कबाड़ी वाले को बेच दिया था। 

वो बीए फाइनल में था। सात साल हो गए थे कॉलेज में एडमिशन लिए पर उसका कोई ना कोई पेपर हर साल छूट जाता जिस कारण उसकी बीए पूरी ही नहीं हो पा रही थी।

उसके पास अपने दोस्तों की तरह अपनी बाइक नहीं थी। उसने अपनी भाभी से बड़े भाई की बाइक की चाबी मांगी और जैसे ही स्टार्ट करने को हुआ भाई रोशन ने आवाज सुनी और अपने कमरे से निकल उसे डांटने लगा।

“क्यों धीरे बोलूं… अब तूं मुझे बताएगा कि मुझे कैसे बोलना है… तेरे आवारा दोस्तों से डरता हूं क्या? उन्हें भी तो पता होना चाहिए कि उनका दोस्त अपने भाई की बाइक उससे बिना पूछे ही ले जा रहा है।” 

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“भाई प्लीज़ आज जाने दीजिए फिर कभी आपकी कोई चीज नहीं छुऊंगा…”

रोशन की नजर रुपेश के कुर्ते पर पड़ी…

“ये तो मेरा ही कुर्ता है… इस होली में ही तो सिलवाया था… और ये घड़ी भी मेरी ही है… तू मेरी हर चीज मुझसे बिना पूछे ले लेता है। अब इतना छोटा भी नहीं है । तेरी उम्र में मैं पूरे घर का खर्च उठाता था और तुझसे अपने खर्चे भी नहीं उठते।”

रुपेश के दोस्त सारी बातें सुन रहे थे। उसका एक दोस्त अंदर आते हुए बोला…

“भाई हम जाएं… तूं बाद में आ जाना।”

” हां जाओ तुम लोग… ये कहीं नहीं जाएगा… जब तक खुद नहीं कमाएगा।”

रोशन की पत्नी निधी ने कहा…

” आप देवरजी को इस तरह दोस्तों के सामने क्यों डांट रहे हैं। प्यार से भी तो समझा सकते थे।”

“निधी ये और प्यार से समझने वाला है। सात साल से बी ए में ही है। कई जगह कई लोगों से इसकी नौकरी के लिए गिड़गिड़ा रहा हूं पर इसे अपनी मौज मस्ती से ही फुर्सत नहीं है। इसके साथ के कितने ही लड़के कितनी अच्छी पोस्ट पर नौकरी कर रहे हैं और ये… ये महाशय तो बी ए ही नहीं कर पा रहे।”

रुपेश के दोस्त जा चुके थे और रुपेश अपने कमरे में आ अपने मां बाबू जी की फोटो हाथ में पकड़े बिलख बिलख कर रो रहा था।

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बीस साल पहले ही दोनों का स्वर्ग वास हो गया था जब वो मात्र चार साल का था… तब से ही माता-पिता की तरह उसके भाई भाभी ने उसकी परवरिश की। अपनी तरफ से कोई कमी नहीं छोड़ी पर कुछ गलत संगत में फंसने के कारण रुपेश का ध्यान पढ़ाई से हट गया था। नौवीं कक्षा से ही उसने सिगरेट पीना शुरू कर दिया। वो दिन भर दोस्तों के साथ गली में घूमता रहता।

रोशन अपने छोटे भाई को अपने बच्चे की तरह प्यार करता था पर उसे इस तरह बिगड़ता देख वो परेशान हो उठता। प्यार से समझाने का जब उस पर कोई असर नहीं दिखा तब ही उसने यह रास्ता चुना।

भाभी उसके कमरे में खाना लेकर गई तो उसने कमरे का दरवाजा ही नहीं खोला और खाना खाने से साफ इन्कार कर दिया। 

“भाभी आप खाना लेकर जाईए यहां से। मैं अब तब ही खाना खाऊंगा जब अपने पैसे कमाऊंगा।”

“देवरजी अभी खा लीजिए। सुबह से आपने कुछ नहीं खाया है।”

“बोल दिया ना… नहीं खाना आपके पति की कमाई का…”

आज उसका बहुत अपमान हुआ था। भाई की हर चीज पर उसने  हमेशा अपना अधिकार समझा था बचपन से। आज वही भाई इतना क्यों बदल गया।

रुपेश ने अब मन में ठान लिया कि वो खूब मेहनत करेगा इस साल हर हाल में सभी परिक्षाएं पास करनी है और सरकारी नौकरी के लिए प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करनी है।

उसने दोस्तों के साथ घूमना फिरना सब छोड़ दिया। सुबह पेपर बांटने का काम शुरू कर दिया और एक प्राइवेट स्कूल में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी भी करने लगा। वो अब खुद को पूरी तरह बदलने लगा। घर में भाभी के कामों में भी मदद करवाता और सब्जी राशन लाना बिजली पानी का बिल जमा करना… सारी जिम्मेदारी उठाने लगा था और अपनी पढ़ाई पर भी खूब ध्यान देता। उसने इस बार बीए के सभी पेपर अच्छे नंबरों से पास किए और रेलवे की परीक्षा भी पास कर ली। उसे सरकारी नौकरी मिल गई। भाई का उसके  दोस्तों के सामने अपमानित करना उसके लिए वरदान सिद्ध हुआ।

उसने अपने वेतन से पैसे जोड़ कर भाई के लिए नई बाइक खरीदी और उसकी चाबी भाई को देकर उनके पैर छू लिए।

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भाई ने उसे गले लगा लिया।

“यह चाबी और यह नई बाइक तेरी है।”

“नहीं भाई मैं तो आपकी पुरानी बाइक ही चलाऊंगा। उसने मुस्कुराते हुए कहा।”

“तेरा ही है छोटे सब कुछ जो भी मेरा है पर उस समय अगर तू मेहनत नहीं करता तो अभी तक बीए पास नहीं हो पाता।”

अगले ही दिन रुपेश अपने भाई भाभी और अपने भतीजे भतीजी के साथ मनोकामना मंदिर में पूजा कर रहा था।

बिना मंदिर आए ही उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो गई थी तो भगवान का धन्यवाद तो करना बनता है। 

कविता झा ‘अविका’ 

रांची, झारखंड 

# बेटियां 

# अपमान बना वरदान

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