विधा :आलेख
जीवन निरंतर घटित हो रही घटनाओं की श्रृखंला है। जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। जब तक जीवन की रेल गाड़ी अपने निश्चित ट्रैक पर चलती रहती है तो इंसान भी संतुलित रहकर जीवन यापन करता है पर कभी-कभी कोई ऐसी घटना या हादसा जो कि मनुष्य की कल्पना या उसकी दिमागी धारणीय क्षमता से परे हो, घटित हो जाता है तो वह अपना दिमागी संतुलन खो बैठता है और अवसाद की स्थिति में चला जाता है।
अक्सर हम स्वयं से, दूसरों से, जीवन से कुछ उम्मीदें लगा बैठते हैं।उनके धराशायी होने पर मनुष्य अवसाद ग्रस्त हो जाता है। सामाजिक मापदंडों पर खरा न उतरने की स्थिति भी अवसाद का एक बहुत बड़ा कारक है।समय पर रोजगार न मिलना, योग्यता अनुरूप सफलता का ना मिलना समय पर विवाह का न होना, रंग रूप पर कटाक्ष, शारीरिक विकलांगता,गरीबी, बेवजह के कटाक्ष, मारपीट,अत्याचार,भेदभाव जैसे अनेक कारक हैं जिनकी वजह से व्यक्ति एक ही विषय पर बार बार सोचता रहता है जिसके कारण वह अवसाद ग्रस्त हो जाता है।
अवसाद कोई समस्या नहीं वरन एक मानसिक बीमारी है जिसका उपचार शारीरिक व्याधि के समान ही किया जाना चाहिए। अवसाद ग्रस्त व्यक्ति को हेय दृष्टि से ना देख कर उनका सहयोग करना चाहिए ताकि वह एक सामान्य व्यक्ति की भाँति जीवन निर्वाह कर सके। मानव व्यवहार की क्षमताओं पर गहन अध्ययन लगातार होता आ रहा है। विभिन्न परामर्शों, काउंसलिंग, दवाइयों के माध्यम से इसका उपचार संभव है।
आवश्यकता है कि अवसाद ग्रस्त व्यक्ति के समक्ष पुरानी बातों का उल्लेख बार-बार ना किया जाए, उसे अकेला ना छोड़ा जाए। संगीत एवं प्रकृति से निकटता अवसाद से निजात पाने में अत्यंत सहायक सिद्ध हुए हैं। अवसाद ग्रस्त व्यक्ति को भी स्वयं को मनचाहे कार्य में संलग्न रखना चाहिए और लोगों और समाज से अलग-थलग नहीं रहना चाहिए।
कोई भी समस्या ऐसी नहीं जिसका निदान ना हो। बस आवश्यकता है- समझ,संतुलन,धैर्य,सहयोग और उपचार की जिसके माध्यम से व्यक्ति अवसाद की स्थिति से उबर सकता है।
मौलिक सृजन
ऋतु अग्रवाल
मेरठ