अब भी मैं अपनी नहीं – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

मालती पिछले तीस सालों से ससुराल में अपनी जिम्मेदारियां निभाती आ रही थी।वह लगभग भूल चुकी थी कि यह उसकी ससुराल है।ननदों की शादी, लकवाग्रस्त ससुर की दस साल सेवा,पति और बच्चों की देखभाल करते-करते बहुत साल गुज़र गए।ख़ुद उसकी उम्र पचास पार कर चुकी थी। सास -ससुर को अकेले छोड़कर पति और बच्चों के … Read more

प्रेयसी नहीं,प्रेरणा – शुभ्रा बैनर्जी Moral Stories in Hindi

मैत्रेई”बड़ा ही विशिष्ट महसूस होता था अपने आप में यह नाम। सामान्यतः देखने -सुनने को नहीं मिलता था यह नाम। मैत्रेई की मां ने रखा था उसका नाम। अर्थ जानने की कभी जिज्ञासा ही नहीं हुई। मां-पापा तो “मीतू”ही बुलाते थे।भाई -बहनों ने मीतू दीदी कहा,और मोहल्ले में मीतू ही प्रसिद्ध था।बचपन में पापा के … Read more

आया नहीं मां ही रहो – शुभ्रा बैनर्जी Moral Stories in Hindi

नैना आज बहुत खुश थी।साल भर बाद छोटी ननद आ रही थी,अपनी बेटी के साथ।शादी होकर आते ही अविवाहित छोटी ननद, नैना की सहेली बन गई थी।नैना की शादी के तीन साल बाद शादी हुई थी उसकी।हुई क्या थी,नैना ने ही करवाई थी। रिटायर्ड ससुर जी की जमा पूंजी प्रायः समाप्ति की कगार पर थी,जब … Read more

जाग्रति – शुभ्रा बैनर्जी Moral Stories in Hindi

ममता से अब अपनी बहू का दुख देखा नहीं जा रहा था।शादी को सिर्फ दो बरस ही हुए थे।बड़े बेटे राहुल का ब्याह अपने गृहनगर (राजस्थान)में करवाया था उन्होंने।नीरजा (बहू)पढ़ी लिखी,सुंदर और सुशील लड़की थी।घर गृहस्थी संभालने में निपुण थीं नीरजा।राहुल जैसे गैरजिम्मेदार पति को संभाल लिया था उसने। सुबह दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलने … Read more

मां की मन्नत – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

शुभांगी की शादी के लगभग इकतीस वर्ष हो रहे थे।इतना समय बीत गया और जाते-जाते बहुत सारी यादें दे गया।अमित के साथ जब ब्याह कर आई थी,तो बाकी लड़कियों की तरह बहुत सारे सपने आंखों में लेकर नहीं आई थी।बचपन से ही थोड़े में खुश होने का हुनर था उसके पास।शादी के बाद हनीमून पर … Read more

लो जी संभालो-शुभ्रा बैनर्जी Moral stories in hindi

स्वाति जी का छोटा सा परिवार था।छोटे से कस्बे में सबसे बड़ी दुकान थी,उनके पति गोविंद जी की।स्वाति जी अपने बेटे की शादी को लेकर बड़ी चिंतित रहतीं थीं।सिठानी सी सजी-धजी स्वाति जी गजब की खूबसूरत लगतीं थीं अब भी।अब बहू भी उन्हीं की टक्कर की चाहिए थी,जो बीस हो उनसे।गोविंद जी ने कारोबार शुरू … Read more

मायका -शुभ्रा बैनर्जी Moral stories in hindi

शुभि के बच्चे अब बड़े हो गए थे।बचपन में ननिहाल जाने का जो उत्साह रहता है,समय के साथ-साथ वह कम होता जाता है।समर वैकेशन मतलब ननिहाल होता था पहले।शुभि आज भी सोच रही थी ,काश पहले वाले दिन फिर लौट आते। गर्मी की छुट्टियां पड़ते ही ,बच्चों के कंधे पर रखकर चलाई गई गोली सीधे … Read more

नवरात्रि – शुभ्रा बैनर्जी : Moral stories in hindi

लगभग एक महीने पहले से पूनम जी ने सिंघाड़ा सुखाकर आटा पिसवा कर रख लिया था।बिना नमक के चिप्स,साबूदाने के पापड़,राजगीरे का आटा तैयार करके रख लिया था।बरसों से नवरात्रि की तैयारी करती रहीं थीं,पूनम जी।इस बार की नवरात्र तो खास होने वाली थी उनकी बहू के आ जाने से। “निशा ओ निशा,कल चुनरी प्रिंट … Read more

गृहस्थी की डोर – शुभ्रा बैनर्जी  : Moral stories in hindi

विवेक जी रिटायरमेंट के बाद नागपुर में ही घर बनवाकर रह रहे थे।दोनों बेटियों की शादी कर दी थी।इकलौता बेटा दीपक डॉक्टर बना था।पोस्टिंग मध्यप्रदेश में हुई।मां का लाड़ला पहली बार घर से दूर जा रहा था।मां, सुमित्रा जी को सबसे ज्यादा चिंता बेटे के खाने की थी। ज्वाइनिंग का समय नजदीक आते ही विवेक … Read more

दहेज – शुभ्रा बनर्जी: Moral stories in hindi

शिप्रा अपनी ननद की बेटी की शादी में आई थी।इकलौती मामी थी वह रिमझिम की।शिप्रा के बेटे से चार महीने छोटी थी रिमझिम।जन्म के बाद ननद की तबीयत खराब हो गई थी,तो शिप्रा ने अपना दूध पिलाया था उसे।सास हमेशा कहतीं”तुमने दूध पिलाया है ना,इसलिए ममता ज्यादा है।”पता नहीं ,पर सच तो यही था कि … Read more

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