भादों का भय – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

बड़ी मुश्किल से दो महीने ही हुए थे , निर्मला जी  (मां )को अपनी बेटियों के पास गए हुए।ससुर जी जब थे,साथ ही जातीं थीं बेटियों के पास,वो भी बहुत कम दिनों के लिए।ससुर जी की बरसी पर आई छोटी बेटी की बिटिया ने कहा था नानी से”हमारे साथ चल कर रहिए ना कुछ दिन … Read more

मन का अब इलाज और नहीं – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

यह आत्मसम्मान विषय पर रची गई कहानी एक विवाह योग्य पुरुष के मन के घांवों की वेदना है।जब पीड़ा का आभास होना ही खत्म हो जाता है,तब चोटिल होता है आत्म सम्मान। नीता के परिवार के पुराने मित्र ,जो अब स्थानांतरित होकर कोरबा में रह रहें हैं ,थॉमस परिवार।जाति में भिन्नता होते हुए भी नीता … Read more

मृगतृष्णा – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

रामनाथ जी शादी करके अपनी धर्म पत्नी के साथ गांव में ही रहते आए हैं।जमीन -जायदाद असीमित थी उनके पास।बड़ी सी हवेली पुरखों की विरासत थी।घर‌ में नौकर -चाकर बहुत थे।रामनाथ जी का गांव में बहुत सम्मान‌ भी था।बस एक ही दुख था उन्हें कि उनकी कोई संतान‌ नहीं थी।पत्नी(प्रभा)ने कोई भी व्रत,उपवास ,पूजा बाकी … Read more

श्रवण कुमार – शुभ्रा बैनर्जी   : Moral Stories in Hindi

इस बार भी नीरज ने तनख्वाह से गिने चुने पैसे ही मां के हांथ में दिए थे।सरिता जी का कब से मन हो रहा था हरिद्वार जाने का।साल भर पहले ही कहा था अपने पति से”सुनिए जी,अब ज्यादा दिन हाथ-पैर चल नहीं पाएंगे।बुढ़ापा बढ़ जाने से पहले चलो गंगा आरती देख पाएं।यह आस लिए ही … Read more

राखी और कजलियां – शुभ्रा बैनर्जी   : Moral Stories in Hindi

सुबह से ही राखी की तैयारी कर रही थी रजनी।भद्रा लगने के कारण दोपहर को ही राखी बंध पाएगी।रजनी ने सोचा पकवान तो बना ही लूं।निधि भोर पांच बजे पहुंची है बैंगलुरू से।काम से छुट्टी तो नहीं मिली थी, वर्क फ्राम होम ले लिया उसने।नवीन को तो काम पर जाना था।दोपहर तक आ जाएगा वो। … Read more

अवसरवादी बहन – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

इस बार रीना ने मंझली बहन शिवानी और छोटी बहन रिया को पहले से बोल दिया था भाई के घर राखी में चलने के लिए।मां के जाने के बाद सभी भाई-बहन रीना के घर ही आते थे हर त्योहार में।बड़ा भाई रीना से छोटा,बाकी भाई बहनों में बड़ा था।इस बार राखी के महीने भर पहले … Read more

मुक्ति – शुभ्रा बैनर्जी  : Moral Stories in Hindi

स्वतंत्रता दिवस मेरे लिए दोहरी खुशी लेकर आता है।आज मेरी मां का जन्मदिन होता है।संयोगवश पंद्रह अगस्त १९४७ को ही उनका जन्म हुआ था। नाना-नानी की पहली संतान ने स्वतंत्र भारत में जन्म लिया था।नाना जी ने अपनी बेटी का नाम रखा “मुक्ति”।अपने नाम पर सदा उन्हें गौरव रहा। ज्यादा पढ़ नहीं पाई थीं,अठारह साल … Read more

मेरा तो पहला बच्चा है ना – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

श्यामा के परिवार में दो बेटे और दो बेटियां थीं।पति बहुत पहले एक चाय का ठेला लगाते थे।बड़ा बेटा आलूबंडा,समोसा,जलेबी बनाया करता था।आफिस मुख्यालय के सामने सुबह छह बजे से ठेला ग्राहकों के लिए उपलब्ध रहता था।पास ही में अस्पताल था,सो मरीजों के रिश्तेदारों के लिए यह ठेला किसी रेस्टोरेंट से कम न था।श्यामा दो … Read more

भाई का हक – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

नीलू इस बार छुट्टियों में लंबे समय के लिए आई थी।आते ही घर की पूरी व्यवस्था संभालना उसका शौक था।छब्बीस की हो रही है।नौकरी करती है। स्वावलंबी है,समझदार भी।पिछली बार फोन में मधु(मां)ने समझाया था “नीलू,अब शादी करने का समय आ ही गया है।अब तुम्हें खुद को मानसिक रूप से तैयार करना शुरू कर देना … Read more

दिल पर जोर चलता नहीं – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

आज अमित अपने दोस्त की शादी में बाराती बनकर आया था , समस्तीपुर।गांव की परंपरा के अनुरूप सभी शादी के आयोजन हो रहे थे।अमित का यह पहला अनुभव था।अमित अपने दोस्त माधव के साथ ही रुका था कमरे में। आस-पास की औरतें आ -आकर दामाद जी की खिंचाई कर जातीं।माधव झेंप तो जा रहा था … Read more

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