औकात नहीं भूला…रश्मि झा मिश्रा : Moral stories in hindi
वह शायद भिखारी ही था… एक पैर से लंगड़ा… अपनी बैसाखी टेकता… स्टेशन पर खड़ी गाड़ियों के पास हाथ फैला रहा था… कभी एक-दो खिड़कियों पर कुछ मिल भी जाता… कभी सिक्का.… कभी रोटी… कभी सड़े गले फल… सबको झोलियों में डालता हुआ फिर दूसरी खिड़की के पास पहुंच जाता था… कुछ सभ्य लोग मुंह … Read more