चौबाइन चाची – कनक केडिया

कुछ काम से,रास्ते मे आज बाजार जाना हुआ। रास्ते में ममतालु से चेहरे वाली गोल गोल एक अधेड़ औरत को देख जाने क्यूँ मायके की चौबाइन चाची की याद आ गयी। याद जब आ ही गयी है तो उस याद को आप सब से बाँटने का मन हो रहा है। सही बात तो ये है … Read more

उधार की खुशियां – सारिका चौरसिया

सुधाकर की नौकरी पक्की हो गयी थी और यह सूचना ले कर वह सबसे पहले आरती के पास पहुंचा था।आता भी क्यों न? एक आरती ने ही तो उसके इस उलझन भरे हतोत्साहित करने वाले समय में उसके हिम्मत को बढ़ाये रखा था।अंतर्मुखी सुधाकर मेघावी होते हुए भी हर बार जब एक-एक नम्बर से पीछे … Read more

दिखावे का हश्र – पूनम अरोड़ा

करीब आठ दस पहले हमारी सोसाइटी की एक सदस्या ने लकी ड्राॅ  वाली किटी स्टार्ट  की। उसमें  विशेष आकर्षण था कि जैसे जैसे किटी निकलती जाती थी उसके सदस्यों  को आगे की किश्त का भुगतान नहीं  करना पड़ता था साथ ही सदस्यों  को किटी की मेम्बरशिप  के लिए एक गिफ्ट  भी दिया जा रहा था … Read more

  थी … – निवेदिता श्रीवास्तव ‘निवी’

सच कब से इधर से उधर भटकती वो सबके मुँह से बस यही सुन रह थी … पहले के कुछ शब्द अलग – अलग से  होते ,परन्तु अंत मे यही ‘थी’  ही आ कर वाक्य को पूर्ण कर रहा था। कहीं सच मे कुछ नम तो कुछ बहती हुई पलकें थीं ,तो कहीं मन की … Read more

सुहाग चिन्ह – डाॅ उर्मिला सिन्हा

   गंगा कावेरी दोनो बचपन की सहेलियां थी।दांतकाटी मित्रता थी दोनो में।साथ-साथ बडे़ हुये ,खेला पढाई की।गुड्डे गुड्डियों की व्याह रचायी ।गर्मी के दोपहरी में  कच्ची अंबिया पिछवाडे़ से तोड़ नमक-मिर्च लगाकर चटखारे एक साथ लिये।   “चल सावन के झूले लगे!”  “हां हां कजरी गायेंगे।”संग संग सावन में पींगे भरी। सर्दियों में लाल पीली हरी नीली … Read more

“खानदानी जेवर” – रणजीत सिंह भाटिया

” अरे भाई मंजू जल्दी करो रास्ते में ट्राफिक भी बहुत होगा”  मिस्टर प्रेम पगारे अपनी पत्नी को पुकार रहे थे…जी बस 5 मिनट में आई अंदर से मंजू की आवाज आई… I            ड्राइवर कार को अच्छी तरह से चमका कर तैयार खड़ा था, मिस्टर पगारे उनकी पत्नी मंजू और उसका बेटा राकेश कार में … Read more

दिखावा – उमा वर्मा

रवि को आफिस भेज कर निश्चिन्त होकर बैठी तो एक कप और चाय पीने का मन हो आया ।रसोई में गैस पर चाय चढ़ाया और तबतक घर को व्यवस्थित कर लिया ।जब तक सब अपने अपने काम पर निकलते नहीं तबतक घर लगता है कुश्ती का अखाड़ा बना रहता है ।चाय तैयार हो गई ।कप … Read more

  “दिखावा ” – डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा

एक जरूरी मीटिंग के सिलसिले में सुधा लखनऊ आयी थी। लखनऊ आने से पहले वह सोच कर ही आयी थी कि मीटिंग खत्म होने के बाद वह अपनी  छोटी सी दस साल की भतीजी पीहू से मिलकर जायेगी। मीटिंग खत्म होते ही सुधा भाभी की बहन के घर की ओर चल पड़ी। जैसे ही बरामदे … Read more

माफ़ी – किरण केशरे

राजवीर आज बहुत ही दुखी और अपमानित होकर काॅलोनि में बने छोटे से पार्क में आकर बैठ गया था  ,बीता हुआ समय चलचित्र की भाँति आँखों से गुजरने लगा ; पत्नी लता के साथ माता-पिता की मर्जी से विवाह किया था, जो साधारण  पर सुसंस्कृत परिवार से थी।  लता घर में आते ही सबमें घुलमिल … Read more

दो बोल प्यार के –  पुष्पा जोशी

   ‘रजनी जल्दी उठो मुझे बहुत तकलीफ हो रही है’ शेखर बाबू ने कराहते हुए कहा। सुबह की ५ बजी थी। रजनी ने उठकर देखा शेखर से बैठा भी नहीं जा रहा था। उसने उसे तकिये का सहारा लेकर बिठाया और बेटे को आवाज दी  ‘रानू  ! देखो तुम्हारे पापा को क्या हो रहा है?’रानू उनका … Read more

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