और वो लौट आई – कमलेश आहूजा : Moral Stories in Hindi

रात्रि के दस बज चुके थे थकीहारी प्रिया ने जैसे ही अपने फ्लेट की डोर बेल दबाई सोमिल ने दरवाजा खोला और बड़े ही अनमने मन से बोला -“अरे,आ गईं..काफी देर कर दी।क्या ऑफिस में आज ज्यादा काम था?” प्रिया ने सोमिल के भावों को पढ़ लिया था।औपचारिक स्वर में बोली -“हां..आप लोगों ने खाना खाया कि नहीं?”

“हम सबने खाना खा लिया है,तुम्हारा खाना रखा है..फ्रेश होकर खा लेना।मेड सात बजे ही बनाकर चली गई थी।” बुझे मन से सोमिल बोला।
प्रिया ने सरसरी नजरों से घर को देखा,

सारा घर बिखरा पड़ा था।बच्चे बैठे बैठे ही सोफे पर सो गए थे।डाइनिंग टेबल पर खाने की झूठी प्लेटें पड़ी थीं।प्रिया ने अपना बेग रखकर बाथरूम की ओर रुख किया।थोड़ी देर बाद वो फ्रेश होकर निकली और खाना खाने बैठ गई।सारा वातावरण मायूस व शान्त सा था।सोमिल अपनी आँखें पेपर में गड़ाए था।टीवी चालू था पर कोई देख नहीं रहा था।

आए दिन प्रिया का देर से घर पहुँचना और सुबह जल्दी निकल जाना एक दिनचर्या सी बन चुकी थी।सोमिल का ऑफिस आने जाने के समय निश्चित एवं सीमित होने से वो जैसे तैसे घर संभाल पा रहा था।सुबह बच्चों को स्कूल भेजने के बाद स्वयं तैयार होकर ऑफिस पहुँच जाता

तथा शाम को साढ़े पाँच बजे तक लौटकर फिर से घर संभाल लेता।वैसे शाम तक के लिए एक मेड संगीता भी रख ली थी जो दोपहर को जब स्कूल से लौटते तो उनको खाना बनकर खिलाती और उनका ध्यान भी रखती थी शाम को सोमिल आकार बच्चों को संभाल लेता था।

संगीता सोमिल को चाय नाश्ता बनाकर देती और फिर रात का खाना बनाकर घर चली जाती।
अभी पिछले दिनों जब बच्चों के स्कूल में पेरेंट मीटिंग थी तो बच्चे और सोमिल प्रिया का इंतजार करते रहे किंतु प्रिया नहीं पहुँची।बच्चों का दिल टूट गया और सोमिल को भी बहुत गुस्सा आया पर क्या करता?सब्र का कड़वा घूँट पीकर रह गया।

स्कूल में टीचर ने सोमिल को बच्चों की बिगड़ती हुई परफॉर्मेंस के बारे में बताया तो सोमिल ने टीचर को जल्द ही सब कुछ ठीक हो जाएगा का आश्वासन दे दिया जबकि वो जानता था कि कुछ ठीक नहीं होने वाला।
परिवार की गाड़ी जैसे तैसे चल रही थी पर प्रिया को तो ये एहसास तक नहीं था

कि वो क्या खो रही थी?वो तो यही सोचकर संतुष्ट थी कि सब ठीक चल रहा है।उसपर तो अपने करिअर का भूत सवार था।
प्रिया एक आधुनिक और अतिमहत्वाकांक्षी युवती थी।

हमेशा उसके मन में कुछ करने की इच्छा रहती थी।पढ़ाई से फ्री होते ही उसके माता पिता ने उसकी शादी करदी।शादी के बाद घर की सारी जिम्मेदारी उसके कंधों पर आन पड़ी क्योंकि सासु मां नहीं थीं और ससुर का स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता था।

ससुर के स्वर्गवास के बाद जब बेटी पांच वर्ष की और बेटा तीन वर्ष का हो गया तो प्रिया के मन में दबी कुछ करने की इच्छा ने फिर से जोर मारा।एक दिन उसने अपनी इच्छा सोमिल के सामने जाहिर की तो वो बोला -“बच्चे अभी छोटे हैं..

इन्हें तुम्हारे साथ की बहुत जरूरत है थोड़ा संभल जाएं तो फिर कुछ कर लेना।” प्रिया कब मानने वाली थी?उसकी जिद्द के आगे सोमिल को घुटने टेकने पड़े।आनन फानन में प्रिया को एक प्राइवेट कम्पनी में नौकरी मिल गई।

प्रिया को नौकरी करते करते सात महीने हो गए।दिन प्रतिदिन ऑफिस में जैसे जैसे उसका कार्यभार बढ़ता जा रहा था वैसे वैसे उसके घर लौटने का समय भी बढ़ रह था।प्रारम्भ में परेशानियाँ छोटी- मोटी सी लग रही थीं पर समय के साथ साथ ये गंभीर होती जा रही थीं।

सोमिल प्रिया के इस निर्णय से बौखला चुका था।दोनों के बीच की दूरियां बढ़ती जा रही थीं बच्चे भी अपने को अकेला महसूस करने लगे थे किंतु बेचारे बोल नहीं पाते थे।पिता कितना भी कर ले आखिर तो बच्चों को माँ का ही साथ ही चाहिए होता है।

बिगड़ती परिस्थितियों को देखते हुए प्रिया ने पूरे दिन के लिए एक कामवाली बाई संगीता को रख लिया।संगीता ने धीरे -धीरे घर का हर काम अपने हाथ में ले लिया और एक परिवार के सदस्य की जगह ले ली।बच्चों ने भी परिस्थितियों से समझौता कर लिया तथा संगीता के अपनेपन को पसंद करने लगे।इधर सोमिल भी प्रिया की बेरूखी की वजह से उससे धीरे धीरे दूर होने लगा।

थकीहारी प्रिया ऑफिस से जब घर आती तो सोमिल की भावनाओं को नजरंदाज कर देती।वो उसके साथ कुछ पल बिताना चाहता तो उसे बेदर्दी से झिड़क देती -“क्या आप भी ?जब देखो बस अपनी पड़ी रहती है।मैं थकी हुईं हूं थोड़ा तो ख्याल किया करो।” सोमिल बेचारा अपना मन मसोसकर रह जाता।अपने करिअर के मोह में अंधी होकर प्रिया बस आगे बढ़ती जा रही थी।

प्रिया के उदासीन व्यवहार की वजह से सोमिल अब जब भी घर आता तो संगीता के साथ अपना दुख दर्द बांटता।वो भी एक घर के सदस्य की तरह बड़े धैर्य से सोमिल की बातें सुनती और उसे धीरज बंधाती,उसे खुश करने  के लिए कभी उसके साथ बच्चों की बातें करती

तो कभी कोई चुटकुला सुनाती।प्रिया को सोमिल का बदला व्यवहार नजर आ रहा था क्योंकि वो अब उससे ज्यादा बात नहीं करता था पर अपने काम में वो इतनी मशगूल थी कि उसने इस ओर ज्यादा ध्यान देना उचित नहीं समझा।बच्चों का व्यवहार भी उसके प्रति रूखा हो गया था।

एक तरफ काम का बढ़ता बोझ और दूसरी तरफ पति और बच्चों की बेरूखी दोनों ने प्रिया को अंदर से तोड़कर रख दिया।उसका चेहरा जो कभी लावण्य से भरपूर था,मलीन पड़ चुका था।वो ताजगी और चुस्ती जिसके बल पर प्रिया सोमिल को अपने इर्द गिर्द घुमाती थी रफूचक्कर हो गई।जब वो घर लौटती उसके चेहरे पे हवाइयां उड़ी रहती थी,ऐसा लगता जैसे शरीर में जान नही है फिर भी वो उसे ढकेले जा रही थी।

प्रिया को लगने लगा था,कि सोमिल कुछ हद तक सही था उसे जल्दीबाजी में निर्णय नहीं लेना चाहिए था।अपने परिवार को बिखरते हुए देख उसका कलेजा मुंह को आने लगता पर फिर उसकी महत्वकांक्षा उसके विचारों पर हावी हो जाती और वो अपने मन को दिलासा देने लगती कि सब ठीक हो जाएगा।

आज सुबह से ही प्रिया अच्छा महसूस नहीं कर रही थी फिर भी अपने कार्य को महत्वता देते हुए वो जैसे तैसे तैयार होकर ऑफिस पहुँच गई।तबियत ठीक ना होने के कारण प्रिया जल्दी घर आ गई।
प्रिया को लगा बच्चे उसे देखकर खुश होंगे

और सोमिल उससे जल्दी आने के कारण पूछेगा..पर ऐसा कुछ नहीं हुआ।बच्चे खेलने में व्यस्त थे..और सोमिल संगीता का हँसी मजाक चल रहा था।
संगीता ने ही प्रिया से पूछा -“क्या हुआ मैडम ?आज जल्दी कैसे आ गईं?”

“थोड़ा सर में दर्द था इसलिए जल्दी आ गई।तू जल्दी से मेरे लिए चाय बनाकर ले आ।”
जी मैडम, कहकर,संगीता चाय बनाने किचन में चली गई।सोमिल और बच्चों ने प्रिया से कुछ बात नहीं की।चाय पीकर प्रिया सो गई।

संगीता रात का खाना बनाकर घर चली गई।तब तक प्रिया की नींद भी खुल गई।इससे पहले की सोमिल प्रिया से कुछ पूछता वो ही उस पर चिल्लाते हुए बोली -” सोमिल,तुम्हारे लिए मुझसे भी ज्यादा काम वाली इंपोर्टेंट हो गई।

उसके साथ तुम हँस हँसकर बातें कर रहे थे और मेरे से मेरा हाल तक नहीं पूछा?” प्रिया ने सोचा सोमिल सॉरी बोलेगा, गिड़गिड़ाएगा पर ऐसा कुछ नहीं हुआ उल्टा वो प्रिया को दो टूक उत्तर देते हुए बोला -“वैसे मुझे अपने चरित्र का प्रमाण पत्र देने की जरूरत नहीं है

पर इतना जरूर कहूंगा,कि जो भी कुछ हो रहा है उसके के लिए सिर्फ और सिर्फ तुम ही जिम्मेदार हो।”सोमिल का जवाब सुनकर प्रिया आवाक सी खड़ी रही उसने सपने में भी ऐसे उत्तर की कल्पना नहीं की थी।

इसके बाद सोमिल और प्रिया ने एक दूसरे से कोई बात नहीं की।रात को सोमिल तो सो गया पर प्रिया की आंखों से नींद मानों कोसों दूर चली गई थी।सोमिल के शब्द.. इन सबके लिए तुम ही जिम्मेदार हो… रह- रहकर उसके कानों में गूंज रहे थे।सारे दृश्य उसकी आंखों के आगे से एक फिल्म की भांति निकल गए।सोमिल का वो प्रणय निवेदन करना और उसका सोमिल की भावनाओं की अवेहलना करना…!!

अंततः प्रिया को बोध हो गया कि उसकी मंजिल ऑफिस नहीं घर है।उसे अपने घर परिवार संभालना है नाकि चंद रुपयों और झूठी पद प्रतिष्ठा के पीछे भागना।जब सब्र का बांध टूट गया तो वो खूब रोई।रोते रोते कब उसकी आंख लग गई पता ही नही चला।

सुबह जब आंख खुली तो देखा सोमिल हाथ में चाय का कप लिए उसके पास खड़ा था।उसने कल की घटना व व्यवहार के लिए उससे माफी मांगी और बोला -“आज ऑफिस नहीं जाना क्या?”

प्रिया उठकर बैठ गई वो मन ही मन निर्णय ले चुकी थी कि उसे क्या करना है?अपराधबोध सी सोमिल के सीने से लगकर रोने लगी -“मुझे माफ कर दो सोमिल..मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है…अब बस मैं अपना परिवार और नहीं बिखरने दूंगी।मैं आज ही नौकरी से स्तीफा दे दूंगी।”

सोमिल ने भी प्रिया को अपनी बांहों में भर लिया।पल भर में सारे गिले शिकवे दूर हो गए।

इस तरह प्रिया लौट आई अपने टूटते हुए रिश्तों को बचाने के लिए,अपने उस आशियां को संवारने को जो उसकी एक नादानी से बिखरने लगा था।

सच महत्वकांक्षी होना अच्छा है किंतु परिवार की खुशियों की बलि चढ़ाकर अपनी महत्त्वकांक्षा पूरी करना उचित नहीं।

कमलेश आहूजा

#टूटते रिश्ते

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