*और शिकायत घुल गई* – पुष्पा जोशी : Moral Stories in Hindi

कोई बहुत बड़ी बात नहीं थी। एक मध्यम वर्गीय परिवार की आम कहानी है। एक बच्चे की किताबों से उसके छोटे भाई बहिन पढ़ाई  करते ही हैं। बड़ी बहिन के कपड़े छोटे होने पर छोटी बहिन पहने ऐसा होता है। मगर यह बात बिन्दिया को हमेशा अखरती थी, कि उसकी बढ़ी बहिन अनिता की नई किताबें आती है,

कपड़े भी नये आते है। बिन्दिया छठी कक्षा में थी और अनिता सातवी मे। अनिता अपनी किताबें सलीके से रखती थी और  अगले साल उस पर नये कवर चढ़ाकर बिंदिया के काम आ जाती थी। राजू नर्सरी में पढ़ता था तो उसके  कपड़े और किताबें तो नये आते  ही थे।

बिन्दिया के मन में यही सोचती आखिर मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है। वह किसी से कुछ कहती नहीं थी, वह समझदार थी और संकोची स्वभाव की थी। उसकी वाणी तो उसने नियंत्रण में थी पर मन में उठ रहै इस‌ सवाल का वह क्या करे।बस ऐसे ही जीवन चल रहा था।

माता पिता का प्यार सभी बच्चों के लिए बराबर था। और शायद यही कारण था कि बिन्दिया  अपने मन की इस बात को कभी किसी से नहीं कह पाई। बिन्दिया दिखने में बेहद खूबसूरत थी और अनिता सामान्य थी। दोनों ने स्नातक की परीक्षा पास कर ली थी।

अनिता के रिश्ते की बात चल रही थी, लड़के वालों को बिंदिया पसंद आई बिंदिया का रिश्ता राजेश से तय हो गया।कुछ दिनों बाद अनिता का रिश्ता भी विनोद के साथ तय हो गया । दोनों बहिनों की एक साथ शादी हो गई। ससुराल में भी अनिता बड़ी बहू थी और उसका ठप्पा था।

बिन्दिया की एक जिठानी थी अवन्तिका और यहाँ भी वह छोटी थी। फिर मन में यही बात आई “आखिर मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है” बिन्दिया गृहकार्य में दक्ष थी और संस्कारी लड़की थी। उसने घर पर सबका दिल जीत लिया था। सब उससे खुश थे, बस उसकी जैठानी को उसकी प्रशंसा रास नहीं आती थी और वे मन में कुछ खुन्नस रखती थी। घर में छोटी मोटी नौक झौंक चलती रहती थी। बिंदिया की सासु जी उसे समझाती बेटा तू समझदार है, वह बड़ी है उसकी छोटी मोटी बातों पर ध्यान मत देना। उसका स्वभाव ऐसा ही है, मन की बुरी वह भी नहीं है,

बस उसे बोलने का भान नहीं है। उसे समझाना बेकार है। विवाद से घर की शांति भंग हो जाती है…. और मैं हूँ ना तेरे साथ।’  बिंदिया  कुछ कहने की कोशिश भी करती, तो सासु मॉं का प्यार उसे कुछ कहने नहीं देता। समय अपनी रफ्तार से चलता है जैठानी के दो बच्चे थे बड़ी बेटी मीनू और छोटा बेटा चिन्टू दोनों बच्चे बिन्दिया के साथ खुश रहते थे। समय के साथ बिंदिया की गोद भी हरी हो गई। बिन्दिया चाहती थी कि उसके बेटी हो मगर उसको  बेटा हुआ। फिर वही प्रश्न जैहन में आया “आखिर मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है। ” बिन्दिया को शिकायत थी अपनी ही किस्मत से।

जीवन चल रहा था। बच्चे बड़े हो रहै थे। और वह दिन भी आया जब मीनू की पढ़ाई पूरी हो गई और उसकी शादी का अवसर आया। धूमधाम से उसकी शादी की तैयारियाँ चल रही थी।बिन्दिया भी पूरे उत्साह से सारे कार्य कर रही थी। बिन्दिया के मन में विचार आ रहा था कि भाभी कितनी किस्मत वाली है कि बेटी का कन्यादान करेंगी।  आज गणेश पूजन होने वाली थी‌। सासु जी ने कहा -‘अवन्तिका तू और मुकेश जल्दी से तैयार हो जाओ। अभी नौ बजे पण्डित जी आ जाऐंगे। तुम दोनों को पूजा में बैठना है। और मीनू तैयार हुई या नहीं?

‘ ‘माँ !आप बिलकुल चिंता मत करो, मीनू को मैं तैयार करवा दूंगी।’  फिर उसने चिंटू को कहा ‘!बेटा जरा काका- काकी को बुलाकर लाना।’ राजेश और बिन्दिया दोनों आ गए तो वह बोली -‘तुम दोनों सब काम छोड़कर पहले तैयार हो जाओ।’ फिर उसने अपनी आलमारी से निकालकर एक सुन्दर चुन्नी वेष और जैवर निकाल कर बिन्दिया को दिए और राजेश को भी उसके मैच‌ का कुर्ता और पायजामा ,टोपी गले की कंठी निकाल कर पहनने के लिए दी। सब आश्चर्य से उसे देख रहै थे। फिर वह सासु जी से बोली ‘माँ‌ ! मैंने और मुकेश ने तय किया है,

कि मीनू की शादी की सारी रस्में राजेश भैया और बिन्दिया करेंगे। आप मना मत करना। मैं चाहती हूँ मीनू, उसकी काकी बिन्दिया के गुणों को लेकर उसके ससुराल जाए। मॉं मेरी हर छोटी- बड़ी, गलत- सही, बात पर बिन्दिया ने कभी विवाद नहीं किया, मेरे बच्चों को अपने बच्चों की तरह रखा। माँ मैं नहीं चाहती कि मीनू ससुराल में मेरी तरह व्यवहार करे। मैं चाहती हूँ कि वह बिन्दिया की तरह धीर, गम्भीर बने।’   ‘पर भाभी…. । ‘ राजेश ने कुछ कहना चाहा तो अवन्तिका ने उसकी बात को काटते हुए कहा ‘ पर वर कुछ नहीं दैवर जी! क्या मीनू आपकी बेटी नहीं है।

आपको यह काम करना पढ़ेगा कपड़े आपके नाप से ही बनवाए है। यह आपके भैया भाभी की पसन्द है, जैसे भी हैं पहन लो। इसे हमारा प्यार समझो या आदेश। मीनू भी इस बात से बहुत खुश है। और तू क्यों छुईमुई सी खड़ी है, आज से तू भी मीनू की माँ है, जल्दी से तैयार हो जा यह रंग तुझ पर बहुत खिलेगा।’  बिन्दिया जो अब तक खामोश थी उसने बढ़कर अवन्तिका के पैर छुए और कहाँ -‘दीदी आपकी इच्छा सिर ऑंखों पर, आपने हमें मान दिया और हम सारी रस्में विधि विधान से निभाऐंगे।’ दोनों बहुओं ने सासु जी के पैर छुए तो

उन्होंने दोनों को आशीर्वाद दिया और कहा -‘ऐसे ही प्रेम से रहना।’  उनकी ऑंखों में खुशी के ऑंसू आ गए थे। आज बिन्दिया को अपने मन का यह प्रश्न बेमानी लग रहा था कि “आखिर मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है” उसकी अपनी किस्मत से जो शिकायत थी वह दूर हो गई थी। मन की सारी शिकायत धुल गई।राजेश और बिन्दिया ने विवाह की सारी रस्में बखूबी निभाई। एक खुशनुमा माहौल में मीनू की शादी सआनन्द सम्पन्न हो गई।

प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित

#आखिर मेरे साथ ही यह सब क्यों होता है।

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