आज का दिन भी बीत गया, दिन के उजाले को शाम निगलने लगी थी. कोहरा दिन भर के लिये न जाने कहाँ खो जाता है और सूरज के अस्त होते ही नीड में लौटते पक्षियों की तरह पूरी बस्ती पर लौट आता है. ठंड की वजह से लोग शाम होते ही अपने घरों में दुबक जाते है. इक्का दुक्का घरों की बत्तियाँ जल उठी थी. चूल्हों से धुआँ उठना शुरू हो गया था. पहाड़ों पर लोग खाना जल्दी ख़ाकर सोना पसंद करते है.
आज भी उसकी कोई खबर नहीं आई. रहरहकर उसका मन आशंकित सा हो रहा है. पहाड़ से शहर पहुंचने के रास्ते में क्या कुछ हो जाये ये कहा नहीं
जा सकता. इन्सान हर जगह एक दहशत में जी रहा है. मन विचलित हो तो कुशंकाएँ अक्सर सिर उठती हैं.
राम मेहनती है, वो शहर जाकर कोई न कोई काम अवश्य ढूंढ लेगा. मेहनत करने से वो बिल्कुल नहीं कतराता. अंधेरा घिरते ही पहाड़ों पर मौत का सन्नाटा पसर जाता है. उसके तो बाहर क्या भीतर भी घटाटोप अंधेरा पसरा हुआ है. अभी उसके ब्याह को कुछ समय ही हुआ है. पड़ोस की ताई के अलावा किसी को नहीं जानती. किसके पास जाकर अपनी शंकाओं का समाधान करवाए, फिर मायके का ख्याल आते ही उसका मुँह कसैला सा हो गया. सौतेली माँ के अत्याचार से तंग आकर उसने कई बार आत्महत्या करने की सोची, परन्तु दो छोटी बहने सौतेली होते हुए भी उसपर अपार स्नेह रखती थी पर माँ से भय खाती थी.
पिता ने समय से पहले चारपाई पकड़ ली. पिता की स्थिति के बारे में सोचकर हताश हो गई. प्रातः जल्दी जल्दी घर के काम निबटाकर माँ के साथ काम पर निकल जाती. दिनभर की मेहनत मजदूरी के बाद गुजारे लायक पैसा मिलता. हँसना खेलना तो वो भूल चुकी थी.
राम से ब्याह केबाद उसे लगा अब वो अपनी मर्जी से जी लेगी. ब्याह से पहले राम शहर में एक कम्पनी में नौकरी करता था. कम्पनी बंद हो जाने कई दिनों तक कोई काम न मिलने पर वापस पहाड़ लौट आया, सुना था पहाड़ों पर भी बहुत रोजगार खुल गए है. परन्तु ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था. कुछ दिनों बाद माँ सीढ़ियों से ऐसी गिरी की फिर उठा न सकी.
बगल वाली ताई ने ही उसे संभाला. उसकी अनुभवी उम्र ने समझ लिया की अब इसका ब्याह करना ही उचित होगा. जो इसे और घर दोनों को संभाल लें. उसने आनन फानन में राधिका को पसंद कर सादगी पूर्ण ढंग से राम का ब्याह कर दिया.
राधिका राम को पाकर बहुत खुश थी. किन्तु कुछ ही दिनों में उसे समझ आ गया कि घर चलाने के लियेपैसे भी जरूरी है जो दोनों में से किसी एक को घर से निकलना पड़ेगा. राधिका के लाख मना करने पर भी वो शहर जाने के लिये अड़ा रहा, न जाने राधिका का मन अनजाने भय से धड़क रहा था. राम उसे समझाबुझाकर शहर रवाना हो गया था.
इतने दिनों बाद भी उसकी कोई खबर नहीं मिली थी. चिंता के मारे उसके रात- दिन बड़ी मुश्किल से कट रहे थे. बचपन से इतने दुःख सह चुकी थी कि जल्दी हिम्मत नहीं हारती थी. पर अब उसे राम के अलावा कोई अपना नहीं दीखता था स्वयं को बेसहारा लाचार महसूस करने लगी थी.
हवा के हल्के झोंके से द्वार हिलता तो दौड़कर जाती पर निराशा ही हाथ लगती. रात का दूसरा पहर बीत चुका था. अब तो कोई वाहन भी नहीं आएगा. चिंताओं के गह्वर में डूबती उतराती कब उसकी आँख लगा गई. सुबह उठी तो सिर भारी हो रहा था. रात के सपनों ने उसे भयभीत कर दिया था. वो नहाधोकर मंदिर की ओर चल पड़ी. काफ़ी देर संकटमोचन कि मूर्ति के समक्ष बैठी रही, उसकी आँखों से झरझर आँसू बह रहे थे.
पुजारी ने सिर पर हाथ फेर पूछा क्या बात है बेटी परेशान हो? उसे मानों तिनके का सहारा मिला. उसने अपनी व्यथा उसके सामने रख दी, तब पुजारी ने बताया उस दिन उसे बहुत देर तक बस नहीं मिली थी तो वो पैदल ही अगले गांव कि तरफ चल पड़ा था कि शायद वहाँ से बस मिल जाय. बेटी चिंता न करो जरूर उसका संदेश शीघ्र ही आएगा. पंडितजी कि बातों से कुछ ज्यादा आश्वस्त नहीं थी. घबराहट अभी भी कायम थी. प्रणाम कर घर कि ओर चल पड़ी.
घर से कुछ दूरी पर उसे भीड़ दिखाई दी. उसे राम कि झलक दिखाई दी. वो तीर सी भीड़ को चीरती हुई उसमें प्रविष्ट कर गई. सामने राम को भौचक्की सी देखती रह गई. बिना किसी कि परवाह किये उसके गले लगा फूटफूटकर रोने लगी. सभी उस दृश्य को देख भावुक हो गए. तभी किशन जो राम का बड़ा अच्छा मित्र भी था बोला अरे भौजी इतना क्यों रो रही हो आज तो हम सबके लिये गर्व का दिन है. हमारे मित्र ने इतना बड़ा काम जो किया है राधिका ने आँखें पोछते हुए हैरानी से किशन की तरफ देखा. उसे समझ नहीं आ रहा था कि राम ने ऎसा कौन सा कारनामा कर दिया.
अब उसने एक नजर राम पर डाली उसने देखा वो बैसाखी लेकर खड़ा हो पा रहा है. उसका कलेजा मुँह को आ गया. हाय रे दइया ये क्या हुआ? अरे कुछ नहीं. घबराओ नहीं जल्द ही ठीक हो जाऊँगा. भीड़ में खड़े सभी उस बहादुरी का किस्सा सुनने के लिये आतुर थे.
उसे सहारा देकर एक ऊँचे से स्थान पर बैठाया गया. राम ने अपनी बात सिलसिलेवार शुरू की. मैं उस दिन बस के इंतज़ार में जब काफी देरतक खड़ा रहा बस न आने पर मैं पैदल ही नीचे के अगले गाँव की तरफ चल पड़ा. रास्ते में घने जंगल में पेड़ों के बीच कुछ आवाजें आ रही थी जिसमे से कुछ टूटीफूटी सी बात मेरे कानों में पड़ी. इसी बीच मेरे जूतों कि आवाज से वे चौकन्ने हो गए. चारो तरफ सन्नाटा था, अतः तपाक से उछलकर मेरे सामने आ गए. उन्हें देखकर मुझे समझते देर न लगी कि ये आतंकवादी है जो किसी वारदात को अंजाम देने की फिराक में है.. वे मुझे घसीटते हुए घने पेड़ों के बीच ले गए वही लिटाकर लात घूसों से बहुत मारा. एक पल को मुझे लगा कि आज मेरा अंतिम दिन ही होगा.
इसी बीच एक बोला इसे गोली मार देते है दूसरा बोला नहीं गोली की आवाज से खतरा होगा. मरते हुए इन्सान कि कभी कभी छठी इन्द्री काम कर जाती है, माँ को तंग करने के लिये अपनी साँस रोक लेता था तब माँ रोरोकर स्वयं को कोसने लगती थी. मैं अपनी साँस रोककर पड़ा रहा और वे जूतों से मुझे मारते रहे.एक मुझे जोरजोरसे हिलाकर देखा बोला लगता है साला मर गया. दूसरा बोला लेकिन अगर जिन्दा हुआ तो?एक शायद बहुत उतावला था उसने मेरे पैर पर गोली चला दी. अबे ये क्या किया चलो भागो यहाँ से वे लोग जाते हुए कह रहे थे पहले मिल्ट्री कैम्प की तरफ चलते हैं.
उनके चले जाने पर मैं पैर घसीटता हुआ सड़क के किनारे पहुंच गया. थोड़ी देर बाद भाग्य से एक गाडी वहाँ से गुजर रही थी उसने मुझे देख गाड़ी रोकी और अस्पताल लें गया वहाँ मैंने डॉक्टर को सारी बात बताई तुरंत करवाई हुई और उस भयंकर हादसे से बुच गए. मिल्ट्री के बड़े बड़े अफसर आये और मुझे बहुत शाबाशी दी मेरे पैर का बढ़िया इलाज करवाया.
मुझे बहादुरी का इनाम दिया गया ये तमगा देख रहे हो मेरे गले में, ये मेरा इनाम है. सबसे ज्यादा इस बात की खुशी है कि मैं अपने देश के किसी काम तो आया देश की सम्पत्ति का नुकसान होने से बचाया.
वो अपने बहादुर पति को ऑंखें फाडफाडकर देख रही थी. उसे गर्व हो रहा था कि वो एक ऐसे बहादुर कि पत्नी कहलाएगी जिसने बिना हथियार उठाये दुश्मनों को मात दे दी. उसने आगे बढ़कर राम को सहारा दिया और मुस्कुराते हुए दोनों अपने घर की तरफ चल पड़े.
सरोज देवेश्वर