बेटे बहू के आफिस से आने का समय हो रहा था… साथ ही संध्या दीया बाती की भी। बढ़ती उम्र की परेशानियां अपने जगह पर थी।
पति भी संध्या भ्रमण से वापस आ गए होंगे। शाम में वे पार्क के बाहर वाले झोंपरपट्टी वाले चाय दूकान से अक्सर चाय पीकर आ जाते हैं कभी-कभी एकाध समोसे खाकर भी… अतः उनके लिये उतनी चिंता नहीं रहती जितना बहू के कटु वाक्यों का वार झेलना।
” आ गई… आजकल देर रात तक घुमने का बहुत शौक चढ़ा है ” आंखों से चिनगारी और जबान से जहर उगलती … गोरी चिट्टी बहू को सामने पाकर माधवी जी को काटो तो खून नहीं।
” वो मेरी पुरानी सहेली मिल गई थी उसी से बातों में थोड़ी देर हो गई…” माधवी जी धीरे से बोली।
” क्या वही सहेली तुम्हारे और तुम्हारे पति का खर्चा चलायेंगी…. वाह वाह अच्छा बहाना है…” बहू का तू-तकारा वे शर्म से गड़ गई।
बेटा अपने कमरे से सब सुन रहा था लेकिन अपनी बदतमीज पत्नी को डांटने समझाने का जिगर उसके पास नहीं था।
पीछे खड़े पति ने कुछ सुना कुछ नहीं सुना… वहीं से वापस मुड़ गये,” यह औरतों का मामला है.”..मन को दिलासा देते हुए।
माधवी जी पहले नाश्ता चाय टेबल पर रख आई फिर रात के खाने की तैयारी करने लगी।
सबको खिलाकर…बचा हुआ भोजन पानी के सहारे निग़ल वह बिस्तर पर आई… पति खर्राटे भर रहे थे। बेटा-बहू के कमरे से टीवी की आवाज आ रही थी।’
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माधवी जी को समझ में नहीं आ रहा था… ऐसा कब-तक चलेगा। पति बेटे की तटस्थता… बहू की कटुक्तियां … आखिर कब-तक।
आज से सालभर पहले बेटे का दिल अपनी सहकर्मी पर आ गया… जूली की खुबसूरती में राहुल ऐसा गिरफ्तार हुआ कि बिना सोचे-समझे बगैर माता-पिता की अनुमति के उसे व्याह कर ले आया।
माधवी जी और उनके पति सकते में आ गए लेकिन समय की नजाकत देख… बुझे मन से जूली को बहू के रूप में स्वीकार कर लिया।
शुरुआत में जूली के माता-पिता भाई-बहन आते दो-चार दिन रहते… उनके घर और अपने बेटी-दामाद पर पूरा हक जताते… महंगे गिफ्ट खरीदवाते… मनमर्जी करते … माधवी जी रसोई और उनके पति हाट-बाजार में बुरी तरह थक जाते। लेकिन बहू की कटुक्तियां और बेटे की उदासीनता… समाज का भय… अपनी बढ़ती उम्र…सरल स्वभाव… औलाद का मोह …उन्हें चुपचाप रहने पर विवश कर देता।
समय चक्र आगे बढ़ता गया। जूली की ज्यादती बढ़ती गई और बेटे का अपनी पत्नी के हां में हां मिलाना भी सारी हदें पार कर गया।
माधवी जी के पति एक व्यापारी के यहां काम करते थे उन्होंने ही सिर छुपाने के लिये यह पुराना मकान उनके नाम कर दिया था। व्यापारी अपने परिवार कारोबार के साथ विदेश सेटल हो गया।बदले में हरेराम को कुछ रुपए और माधवी जी को एक जोड़ी जड़ाऊ कंगन और गले का हार दिया । इकलौता बेटा राहुल पढ़ाई पूरी कर नौकरी से लग गया । पति-पत्नी निश्चिन्त थे… बुढ़ापे में बेटे का सहारा रहेगा।
लेकिन यहां ईश्वर की लीला…बेटे ने प्रेम विवाह किया और पत्नी के दबाव में मां बाप उसके लिये फालतू हो गये। अचानक बहू के आने पर… कोई तैयारी थी नहीं अतः मुंहदिखाई में माधवी जी ने अपना जड़ाऊ कंगन दे दिया। आड़े वक्त के लिये गले का हार छुपा कर रखा था। चंद रुपए भी किसी प्रकार बक्से के तह में रखे थे।एक एक खर्चे के लिये बेटे-बहु का मुंह देखना पड़ता और बहु की बातें सुननी पड़ती।
” सुनो,अब बर्दाश्त नहीं होता…हम कहीं और चल कर कुछ काम करें और रहें।”माधवी जी एक रोज पति के सामने रो पड़ी।
” इस उम्र में कहां जायेंगे… कौन हमें काम देगा… यहां अपना घर है…”पति का जवाब था।
माधवी जी भीतर से बेचैन इस नरक से निकालने का प्रार्थना ईश्वर से नित्य प्रति करने लगी।बहु की तानाशाही बढ़ती ही जा रही थी।
” ट्रिन … ट्रिन…” दरवाजे की घंटी बजी।
” भला इस वक्त कौन…”बर्तन मांजना छोड़ माधवी जी दरवाजा खोलने चली। पति दो दिनों से बुखार सर्दी से बीमार थे…”बाबू जी को कुछ दवा दिलवा दो”उन्होंने सुबह ही बेटे से कहा।
बेटे के कुछ बोलने से पहले बहू चीख पड़ी थी,” यहां आफिस की देर हो रही है और इन्हें दवा की पड़ी है… हुंह।”
” राहुल… पिता हैं तुम्हारे…”।
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राहुल सिर झुकाकर पत्नी के पीछे चला गया।
” हे भगवान…यह बेटा है या कसाई” क्षोभ से वे रो पड़ी थी और पति के तलवे सहलाने लगी थी।
घंटी पुनः बजी। दरवाजा खोलते ही देखा…एक अधेड़ स्त्री पुरुष अपने सामान के साथ खड़े ।
” आप…”माधवी जी ने आश्चर्य से पूछा।
” हम जूली के मौसा मौसी हैं… उसके शादी में आ नहीं पाये थे… इधर आना हुआ तब सोचा कि एक बार उनसे मिल लें…इसी बहाने उनकी घर गृहस्थी भी देख लेंगे…।”
किसी अजनबी को घर भीतर आने को कहें या नहीं …वह भी मुंहफट बहु के मायके वाले … माधवी जी के कुछ बोलने के पहले ही आगंतुक अपने सामान के साथ भीतर आ गये,” जूली ने आपको बताया नहीं…हमारे आने के बारे में ” मेहमान ने पूछा।
माधवी जी ने ना में सिर हिलाया।
” कौन है इस समय ” शोर सुनकर हरेराम जी कराहते हुए बोले।
” बहू के मौसा मौसी आये हैं ” कह माधवी जी उनकी खातिर दारी में लग गई।
शाम में जूली अपने मौसा मौसी को देखते ही उछल पड़ी,” अरे, आप लोग कब आये, मुझे सूचित क्यों नहीं किया… हम एअरपोर्ट लेने आ जाते ।”
” तुम्हें मैसेज किया तो था ” ।
” ओह इन बूढ़ा बूढ़ी के चक्कर में मैं भूल ही गई ” जूली ने हिकारत से सास-ससुर की ओर देखा।
मौसा मौसी जूली का रुखा कठोर रुख… दुर्व्यवहार अपने सास-ससुर के साथ करते देख … असहज महसूस कर रहे थे। राहुल भी अपनी पत्नी का मुंह देखी… माता-पिता के प्रति लापरवाही…उनकी अनुभवी आंखों ने ताड़ लिया।
दूसरे सुबह हरेराम जी का बुखार और तेज हो गया… घर का काम… मेहमानों का आवभगत… माधवी जी ने अवरुद्ध कंठ से बेटे-बहु की चिरौरी की…” पिता जी की तबीयत बिगड़ती जा रही है… किसी डॉक्टर से दिखा दो।”
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” मेरे मौसा मौसी को देखते ही तुम्हारा नखरा शुरू हो गया… बुखार ही लगा है न…मर नहीं जायेंगे…जब देखो डाक्टर…दवाई … पैसे क्या पेड़ में फलते हैं…”जूली चीखने लगी।
” बहू कुछ ईश्वर से डरो…मरने की बात नहीं करो ” माधवी जी हाथ जोड़ घिघिया उठी।
” अब तंग करोगी तो सुनोगी ” राहुल ने अपनी जननी को धिक्कारा।
अब संवेदनशील दुनियादार मौसा मौसी का धैर्य जवाब दे दिया।
” जूली यह तुम्हारा कैसा व्यवहार है अपने सास-ससुर के साथ… मैं दो दिनों से देख रही हूं… ऐसा व्यवहार कोई अपने नौकरों के साथ भी नहीं करता…यही सिखाया है तुम्हारे मां बाप ने ” मौसा मौसी एक साथ गरज उठे।
” ये लोग इसी के काबिल हैं… जब इनके बेटे को फर्क नहीं पड़ता तो आप लोगों को क्या दिक्कत है… खाओ पियो आनंद करो” जूली ने बेशर्मी से कहा।
” क्या कहा … तुम्हारे भाई की पत्नी जब ऐसा ही दुर्व्यवहार तुम्हारे माता-पिता के साथ करेगी तब तुम्हें कैसा लगेगा… जिसके नाम का सिंदूर तुम्हारे मांग में है… उसके माता-पिता हैं ये…. और तुम्हारे पति का खून सफेद हो गया है तुम्हारे कुसंगति में… मैं आज ही तुम्हारे माता-पिता यानि अपने बहन बहनोई को बुलाती हूं… कैसा सीख संस्कार दिए हैं उन्होंने अपनी इस बेटी को।”
अब जूली का माथा ठनका,” मौसी आपको इन बातों से क्या!”
” चुप रहो…. और समधिन जी आप इनकी मनमानी क्यों बर्दाश्त कर रही हैं… अपने बेटे को दो चांटे लगाती,होश ठिकाने आ जाता।”
” औलाद के मोह में सब सह गई ” माधवी जी मजबूत साथ पाकर बिलख उठी।हरेराम जी भी बेटे-बहू की ज्यादती बताने लगे।
मौसा मौसी जूली के माता-पिता को बुलाकर… जूली और राहुल को सही राह पर लाकर चैन की सांस ली… राहुल की भर्त्सना की…” कैसे बेटे हो अपने जन्म दाता के प्रति ऐसे गैरजिम्मेदार हो…तुम्हारा शह पाकर जूली निरंकुश होली गई ।”
औलाद की मोह में उसकी ज्यादती सहना उनके कुबुद्धि को बढ़ावा देना है।
मौलिक रचना -डाॅ उर्मिला सिन्हा