मेरा चेहरा उतरा हुआ देखकर अरुणा ने तपाक से पूछा, अब क्या हुआ,अब तो सारी व्यवस्था अच्छे से हो गई, मंच सज गया, कुर्सियां लग गई, नाश्ते,खाने की व्यवस्था भी हो गई आगंतुकों के लिए,ऐसे मुंह क्यों लटकाया हुआ है, मैंने कहा यार ये एंकर बड़ी खड़ूस लगी मुझे, अजीब तरीके से बात करती है, मुझे कह रही थी प्रोग्राम जल्दी शुरू करवा दो मुझे जल्दी घर जाना है, मैंने कहा देखिए समय तो पहले ही पोस्टर पर डाल दिया था अब लोग उसी समय से आएंगे , आपको भी बताया ही हुआ है पहले से,
और फिर भी अगर आप ज़्यादा नहीं रुक पाएंगी तो आगे का संचालन मैं ही संभाल लूंगी,आप निश्चिंत रहिए, पर वो दुबारा तुनक कर बोली, नहीं संचालन तो आपने मुझे सौंपा है तो मैं ही पूरा करूंगी ,बस आप प्रोग्राम शुरू करवा दो ,सर खा गयी है मेरा ,बोल क्या करूं, अरुणा ने भंवें तरेरते हुए रूचि की तरफ देखा , फिर मेरी तरफ देखते हुए बोली , तुझे इसे बुलाने की क्या ज़रूरत थी ,तू तो खुद ही इतना अच्छा बोलती है, मैंने कहा चल ठीक है आगे देखते हैं, क्या होता है, बहरहाल प्रोग्राम तो जैसे तैसे रूचि की तुनक मिजाजी के साथ समाप्त हो गया
पर मेरे मन में रूचि की छवि एक, खड़ूस, अकड़ू औरत की बन गई ,पेशे से हम दोनों मोटिवेशनल स्पीकर थीं, मैंने उसे अपने एक प्रोग्राम में संचालन का कार्यभार सौंपा,जिसे आगे चलकर वो सभी को बताती और अच्छे आयोजन की शुभकामना देती , पर मैंने मन ही मन सोच लिया था कि अब इसे नहीं बुलाऊंगी कभी ,
एक बार किसी प्रोग्राम में एक महिला ने जब रूचि की जाती ज़िन्दगी के बारे में बताया तो मेरे पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गई,
असल में रूचि एक बहुत ही होनहार मेघावी छात्रा हुआ करती थी,उसकी रुचि लिखने में अधिक थी पर उनके पिता को मंचों पर भेजना पसंद नहीं था,तो उन्होंने उसकी शादी करवा दी , पढ़ी लिखी रूचि की शादी एक ऐसे घर में हो गई, जिनकी सोच बहुत पिछड़ी हुई थी और वो रूचि को भी उसी में ढालना चाहते थे, पर रूचि ने विरोध किया तो उसे शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना झेलनी पड़ी, इसी बीच उसके दो बच्चे हो गये,पति भी पराई औरतों से संबंध बनाने लगा ,जब रूचि विरोध करती तो कहता अब दुबारा नहीं करूंगा और वो हर बार विवश हो जाती,
इस कहानी को भी पढ़ें:
पर इतना ही नहीं कुछ दिनों बाद उसके पति की तबीयत बिगड़ी और वो बहुत सारा कर्ज़ा छोड़कर दुनिया से रुखसत हो गये ,
ससुराल वालों की प्रताड़ना और बढ़ गई, ऐसे में बहुत आसान था कि वो अपने पिता के घर वापस चली जाती पर उनके लाख समझाने पर वो नहीं गई, बल्कि अपने बच्चों के हक़ के लिए, वो वहीं रही उसको उस मकान से निकालने के कितने प्रयत्न किए ससुराल वालों ने, पर उसने हार नहीं मानी,अपनी औलाद के मोह के कारण वो सब सह गई, कानूनी तौर पर तो उसे कोई निकाल नहीं सकता था क्योंकि वो उसके पति का घर था,वो एकमात्र घर जो वो संपत्ति के रूप में छोड़ गए थे ,बाकी तो सब कर्ज़े ही थे ,
उसने हार नहीं मानी, बहादुरी से सभी परिस्थितियों का सामना किया, अपने पति की बीमारी के दौरान बहुत सेवा की , उन्हें बचाने का अथक प्रयास किया , पर बचा नहीं पाई , हां उन्हें माफ़ जरूर कर दिया था,उनकी हर बुराईयों के लिए , ना सिर्फ उनको बल्कि उन सभी लोगों को जिन्होंने उसकी ज़िन्दगी दूभर कर दी थी , सबको माफ़ कर दिया, क्योंकि आज उसके पास दो मजबूत कांधे तैयार थे उसकी औलाद जिनके मोह में वो सब सहती रही और आज उसके दोनों बच्चे अपने पैरों पर खड़े है, और रूचि न सिर्फ अपने बच्चों के लिए अपितु उन सब लोगों के लिए मिसाल बन गई जो परिस्थितियों से घबरा जाते हैं,
एक जवान विधवा औरत पर जिस तरह की नजरें होंती है सबकी कारण यही सब परिस्थितियां रही कि अपने ऊपर एक कठोर आवरण चढ़ा लिया, चिड़चिड़ापन उसके अंदर आ गया,जिसे वो स्वयं स्वाकारती है, व
उनको चारों तरफ से जब नाकारात्मक्ता मिली तब उनके अंदर ये रूखापन आना स्वाभाविक था।
जब मैंने रूचि के बारे में इतना जाना तो मेरी आंखें भर आईं और मैंने जा कर उन्हें गले लगा लिया,वो कुछ समझ न पाई न मैं समझा पाई, पर हां आज सोचती हूं कि पहली बार में कितनी गलत राय बना ली मैंने किसी के बारे में बिना उसे जाने, वो आज हम सब के बीच एक मिसाल है,जिसे देखकर ज़िन्दगी जीने का हौसला आता है, बच्चों के प्रति उनके प्रेम को नतमस्तक हूं मैं, आज रूचि से गले मिलते वक्त अपनी सारी गलतफहमियां भी भुला कर घर लौट आई, और अपनी खास दोस्त अरुणा को भी सब बातें बताई तो वो भी अपनी सोच पर शर्मिन्दा थी।
अर्चना झा