औकात मां-बाप से होती है – शुभ्रा बैनर्जी : Moral stories in hindi

मिली आज सुबह से ही जिद कर रही थी कि दादू और दादी को भी जाना होगा,उसका रिजल्ट लेने।सुमित को पता था कि सुषमा(मिली की मां)कभी नहीं मानेगी।पिछले तीन सालों से मिली ज़िद करती रहती और बाबूजी और मां कोई ना कोई बहाना बनाकर टाल देते।

आज मिली की जिद पर सुमित ने सुबह ही सुहास (पिताजी)को कह दिया था”पापा,अब मिली बड़ी हो गई है।अब आपके बहाने नहीं मानेगी वह। जबरदस्ती क्यों उससे झूठ बोलतें हैं हर बार?क्या दिक्कत है आप लोगों को हमारे साथ चलने में?सुषमा ने भी कहा कि उसने रात को ही आप लोगों से बात कर ली है। मां को बोलिए कि जल्दी तैयार हो लें।नौ बजे जाना है।”

सुहास जी ने चश्में के अंदर से सुषमा को देखा तो वह मुंह बना रही थी।बांसठ वर्ष हो चुके थे उन्हें भी दुनिया देखे।बेटे को कैसे बताते उसकी पत्नी की आंतरिक इच्छा।इससे पहले कि वे कुछ कहते,मनीषा जी(सुमित की मां)ने बात संभाली”क्या रे सुमित!तू अब भी बच्चा ही है क्या?अपने पापा के घुटनों का दर्द जानता नहीं क्या?सीढ़ियां चढ़नी जातीं हैं क्या अब हमसे?मेरी भी तो सांस फूलने लगती है।तू बहू के साथ ही चला जा।मिली को मैं मना लूंगी।”

सुमित ने आज कह ही दिया”सारा दिन तो आप लोग अच्छे से चलते फिर लेतें हैं।शाम को दोनों मंदिर तक भी घूम ही आतें हैं।मिली के स्कूल जाने में ही क्यों तबीयत खराब हो जाती है आप लोगों की?”इस बार मोर्चा सुहास बाबू ने संभाला”अरे बेटा!घर पर मिली के रिजल्ट की खुशी में तुम्हारी मां को तैयारी करने में जो सुख मिलता है ना,वह तुम समझ ही नहीं सकते।”अब सुमित मुस्कुरा कर बोला”अच्छा,यह बात है।”सुषमा पहले से ही तैयार खड़ी थी।मुंह फुलाकर बैठी मिली को दादी ने मना ही लिया इस बार भी।सुमित ,सुषमा और मिली के साथ कार में बैठकर जाने के लिए बाहर निकला।पॉकेट में हांथ देकर देखा,चाबियां तो अंदर ही रह गई ड्राइंग रूम में।अंदर आकर देखा मां और पापा एक दूसरे को समझा रहे थे।मां की आवाज सुनी “क्या जी,बेटे के सामने बौराए खड़े रह गए थे।

उसको अंदाजा हो जाता तो?तुम भी ना,अब भी वैसे के वैसे हो।”बाबूजी ने हंसकर अपने आंसू पोंछते हुए कहा”हां भई,तुम्हारे जैसी सधी ऐक्टिंग कर नहीं सकता ना।तुम्हें तो फिल्मों में होना चाहिए था।”सुमित का माथा ठनका।ये इन दोनों को झूठ बोलने की जरूरत क्यों पड़ गई?क्या छिपाते हैं ये मुझसे?इतना दर्द भरा रखा है इनके मन में,और मैं अपने मां -बाप को खुशहाल समझता हूं।आज मिली का रिजल्ट लाकर बात करूंगा इन दोनों से।अनमना सा सुमित कार की चाबी लेकर पत्नी और बेटी के साथ स्कूल पहुंचा।आज उसका मन बेचैन हो रहा था।मिली को हिंदी में पूरे नंबर मिले थे।मैडम शाबाशी दे रही थी। इंग्लिश में फ्लूयेंसी कम थी,ऐसा इंग्लिश की टीचर ने जैसे ही कहा,सुषमा की त्योरी चढ़ गई।कुछ बोलती इससे पहले ही,सुमित के परिचित शर्मा जी मिल गए,तो सुमित उनके पास चला आया।

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थोड़ी देर बाद सुषमा को चलने के लिए कहने जैसे ही पास आया ,सुषमा की इंग्लिश मैडम के साथ बातचीत सुनी उसने।सुषमा मैडम से कह रही थी(अंग्रेजी में)क्या बताऊं मैं आपको?जब तक मिली अपने दादा-दादी के साथ रहेगी,कुछ नहीं हो सकता।आपको पता है?पूरा दिन मैं उससे इंग्लिश में ही बात करती हूं।घर में जो मिली के दादा जी हैं ना,एकदम गंवार हैं।गांव के सरकारी स्कूल में हिंदी पढ़ाते थे।सारा दिन मिली को हिंदी की कविताएं,कहानियां और व्याकरण बताते रहतें हैं।उन्हीं के लिए हिंदी अखबार आता है,उसे भी पढ़वातें हैं मिली से।सुमित की मां ज्यादा हस्तक्षेप नहीं करतीं।शायद उन्हें अपनी औकात पता है।ज़िंदगी भर गांव में बिताकर अब शहर में रहने आईं हैं,तो उड़ती नहीं हैं ज्यादा।मैं भी उन्हें सर पर नहीं चढ़ाती।सुमित के बाबूजी से तो मैं परेशान हो गई।अब मुझे उन दोनों की कुछ व्यवस्था करनी पड़ेगी।सुनिए ना,मैं कहूंगी तो मिली के पापा चिढ़ जाएंगे।आप आइये ना घर कभी।उनके सामने सच बता दीजिएगा,कि ऐसे मिली इंग्लिश में कमजोर ही होती जाएगी। प्लीज़।”

सुषमा की बात इंग्लिश मैडम को भी पसंद नहीं आई थी शायद, उन्होंने कुछ कहा नहीं।सुमित ने अलग से जाकर उनसे बात करने की कोशिश की”मैम,क्या सच में मिली कमजोर होती जा रही है?”बुद्धिमती थीं इंग्लिश की मैम,तुरंत भांप गई थी कि सुमित ने सुषमा की बातें सुन ली थी।बात बदलते हुए बोलीं”मिस्टर सुमित,बोलने में थोड़ी दिक्कत है मिली को बस।विषय की जानकारी अच्छी है।आपसे एक बात पूछ सकती हूं क्या?”

सुमित जानता था,कि वह बाबूजी के बारे में ही पूछेगी।सो उसने खुद ही कहना शुरू किया”जी मैम,मेरे बाबूजी गांव के सरकारी स्कूल के हिंदी के शिक्षक थे मिडिल तक।उनके पढ़ाए हुए बच्चों की हिंदी और लिखावट बहुत अच्छी होती थी।मैं भी दसवीं तक वहीं पढ़ा।मिली को वही पढ़ातें हैं।अगर आप कहें तो मैं इंग्लिश के लिए ट्यूशन लगा दूंगा।”उस लड़की ने बड़ी विनम्रता से पूछा “सर,क्या मैं जान सकती हूं,वे कहां पढ़ाते थे?”

सुमित ने जब विजयराघवगढ़ का नाम बताया तो वह उछलकर बोली”सर,वह तो मेरा भी ननिहाल है।मेरी मां वहीं पढ़ी हैं।आपके बाबूजी का नाम पूछ सकती हूं क्या?”सुमित ने गर्व से अपने बाबूजी का नाम बताया,तो उसने कहा”, दरअसल पिछले तीन -चार माह पहले शायद आपके बाबूजी स्कूल आए थे।प्रिंसिपल से मिलने।वो मेरी मां हैं।मैंने अभी एडहॉक में ज्वाइन किया है।मां ने कहा था मुझसे कि मिली के दादाजी ने उन्हें पढ़ाया था।बहुत सम्मान करतीं हैं वो आपके बाबूजी का।मैं जल्दी ही उन्हें लेकर आऊंगी आपके घर।”सुमित कुछ और सोच रहा था।

बाबूजी मिली के स्कूल क्यों आए थे?क्या बात की होगी उन्होंने प्रिंसिपल से? सोचते-सोचते सुषमा और मिली के साथ घर पहुंचा तो,मां पूरी तैयारी कर चुकी थी।सुषमा खीझ रही थी मिली पर इंग्लिश में कम नंबर आने पर।अगले दिन से स्कूल की छुट्टियां शुरू हो रही थी।सुबह सोचा सुमित ने बाबूजी से पूछे,पर पूछ नहीं पाया।शाम को घर आकर देखा, इंग्लिश मैडम अपनी मां के साथ बाबूजी से बात कर रहीं हैं।सुषमा मूक दर्शक बनी सुन रही थी।सुमित भी अवाक था, बाबूजी की अंग्रेजी सुनकर।

धाराप्रवाह अंग्रेजी में बोले जा रहे थे। इंग्लिश मैडम ने जब सुमित से परिचय करवाया अपनी मां का तो वे बाबूजी के प्रति आदर से बोलीं”,सुमित,तुम्हारे बाबूजी के कारण मेरी हिंदी और अंग्रेजी इतनी अच्छी हुई।हम इन्हें गुरूजी कहते थे।इन्होंने हमें हिंदी का सम्मान करना सिखाया, मातृभाषा के रूप में।मिली बहुत खुशकिस्मत है कि इतने अच्छे गुरु घर पर ही मिल गए। समय-समय पर आकर स्कूल की गतिविधियों और खासकर बस व्यवस्था पर अपने सुझाव देते रहतें हैं।जिस घर में‌ बड़े -बुजुर्ग रहते हैं,उस घर के बच्चों को किताबी विद्या के अलावा मूल्यों की शिक्षा भी मिलती है।गुरूजी जैसे शिक्षक की पोती एक दिन जरूर उनका नाम रोशन करेगी।”

उनकी बात सुनकर सुमित ने एक मिनट की भी देरी नहीं की कहने में”बिल्कुल ठीक बोला आपने मैम,आज मेरी पत्नी को सीख मिल गई होगी कि बच्चों की औकात उनके माता-पिता से होती है।इंग्लिश बोलने और कोट पैंट पहनने से लोगों की औकात नहीं आंकी जा सकती।हम जो भी हैं,अपने माता-पिता की बदौलत।इनका हांथ हमारे बच्चों के ज़िंदगी की नींव मजबूत करते हैं।”उसने सुषमा की ओर पलटकर पूछा”तो,सुषमा मेरे बाबूजी स्कूल में पढ़ाते तो हिंदी ही थे,पर उन्होंने ज़िंदगी का सारा पाठ पढ़ाया है दूसरों को।जिनके माता-पिता पढ़ें लिखे नहीं भी होते,उनके बच्चों की भी जो औकात बनती है,उन्हीं से बनती है।कभी रहने की जगह,कपड़ों और बातचीत से इंसान की औकात समझने की भूल मत करना।तुम्हारी सोच तुम्हारे माता-पिता की औकात बता देगी।”

शुभ्रा बैनर्जी

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