औकात – अर्चना सिंह : Moral stories in hindi

आँगन की रस्सी पर कपड़े सुखाने के लिए डालते हुए मधु की माँ बीच – बीच मे मधु को मनुहार करते हुए बोलती जा रही थी..”बहुत अच्छे व धनी सम्पन्न लोग हैं, कर ले ब्याह । मैं भी निश्चिंत हो जाऊँगी । मधु आईने में देखकर चोटी बना रही थी और माँ की बातों को अनसुना करते हुए छत पर चली गयी । पिता माणिक एक खेतिहर किसान थे । ईश्वर ने चार बेटियाँ दीं पर बेटियों के भाग्य में पिता का प्यार लिखना भूल गए ।

छत पर जाकर चुपके से मधु ने झांका वो झूले वाला खुबसूरत बड़ा सा घर । जन्नत इतना ही सुंदर होता होगा । चारों तरफ ढेर सारे खिले हुए फूल, बाग- बगीचे नौकर चाकर, एक कदम चलने के लिए अनेको गाड़ियां । पर वो ये नहीं समझ पा रही थी अभी तक कि इतने सम्पन्न लोगों को क्या लड़की नहीं मिल रही ? और लड़की चाहिए किसके लिए ? बहुत सारे सवाल उसके मन में घर कर रहे थे । दिमाग को थोड़ा राहत देते हुए वो नीचे जाकर माँ के हाथों से बनी कच्चे टमाटर की चटनी और रोटी लाकर छत पर बैठ खाने लगी ।यूँ तो उसके घर से गली का रास्ता काफी दूर था । पर  घर छत से थोड़ा नजदीक दिखता था ।

खाते – खाते उसकी नज़र फिर सामने वाले घर पर गयी और उसने देखा…घर मे एक बुजुर्ग महिला, एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति और एक लड़का सत्रह अट्ठारह  साल और एक लड़का करीब ग्यारह- बारह साल का दिखता था । इसके अलावा खूब सारे नौकर – चाकर । समझ नहीं पा रही थी वो कि उस घर मे किसकी शादी है । रोटी का आखिरी निवाला मुँह में ठूसकर वो माँ को छत पर बुला लाई और उसने माँ को दिखाते हुए पूछा..

.”वहाँ किसकी शादी की बात तुम कर रही थी माँ ? माँ ने नज़रे चुराते हुए उस अधेड़ को दिखाकर कहा…”ये प्रताप जी हैं । इनकी पत्नी स्वर्ग सिधार गयी हैं , इनके लिए लड़की चाहिए । मधु को अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा था । उसके सपने कांच की तरह टूटते हुए प्रतीत हो रहे थे तभी मधु की छोटी बहन नीलू आई । माँ ने नीलू को दिखाते हुए मधु से कहा…”अब हमारे घर की इज्जत तुम्हारे हाथ मे है । अगर तुम शादी के लिए मान जाओ तो आगे तुम्हारी बहनों की शादी में आसानी होगी ।उम्र भी होती जा रही और हमे रिश्ता बताने वाला कौन है?

माँ हमारी औकात इतनी अच्छी नहीं कि उस घर की बहू बनूँ । क्या सोचकर उन धनी लोगों के घर मुझे भेजना चाह रही हो ?

मधु ने सवालिया नजरों से माँ को देखा ।

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माँ ने मधु को अपने सीने से चिपकाते हुए कहा…”जानती हूँ हमारी औकात नहीं बेटा लेकिन मैं हालातों के आगे मजबूर हूँ । उनलोगों ने ही आगे बढ़ के रिश्ते की बात की है । और मै टाल नहीं पाई ये सोचकर कि उन्होंने तुम्हारी बहनों की शादी का भी जिम्मा लिया है । मधु की आंखों से आँसू गालों पर ढुलक आए और आँसू पोछते हुए उसने शादी के लिए मौन स्वीकृति दे दी । 

शगुन हुआ,  धूमधाम  से तो नहीं बहुत सादगी के साथ मधु ने सात फेरे लिए । पर घर मे दिल खोलकर स्वागत किया गया ।मन तो बोझ तले दबा हुआ था लेकिन एक कोने में अपने परिवार की जिम्मेदारी पूरी करती हुई मधु को अंदर से खुशी भी हो रही थी । घर मे मधु को कोई काम- काज नहीं करना होता था । प्रताप जी दिल के बहुत अच्छे व्यक्ति थे । पर बच्चे उनके बहुत बिगड़ैल हो गए थे माँ के चले जाने से । मधु का काम सिर्फ बेटों  की देखभाल करना था । बेटे बहुत ही उद्दंड और ज़िद्दी थे । प्रताप जी को मधु के चेहरे पर शालीनता दिखती थी । उन्हें यकीन था बच्चे उसकी सुनेंगे और सभ्य हो जाएंगे । 

शुरू के कुछ दिन तो बहुत इज्जत, प्रेम से निकल गए । बेटों को खाने की स्वादिष्ट किस्म चाहिए थी । हर दिन मधु कुछ न कुछ उनकी पसन्द का बनाकर देती । स्कूल से आने के बाद दिन भर की बातें भी सुनती थी । सब कुछ अच्छा चल रहा था । एक दिन विक्रांत को पार्टी में जाना था और उसने दोस्तों पर खर्च करने के लिए और फीस भरने के लिए पिता से पैसे मांगे तो उन्होंने दे दिया और मज़े से पार्टी कर के घर वापस आया ।

आते ही प्रताप जी ने पूछा… तुम स्कूल नहीं गए आज ? क..क..क्यों पापा ? विक्रांत अभी जवाब ही देने वाला था कि मधु ने कहा…”अलमारी से सारे कैश  गायब हैं । अब विक्रांत को यकीन हो रहा था कि पापा के गुस्सा दिखाने की वजह ये नई माँ ही है । उसने तरेरते हुए मधु पर  गुलदस्ता फेंक दिया और अपने कमरे में आराम करने चला गया । 1 घण्टे बाद मधु विक्रांत के मनपसन्द गर्मागर्म पकौड़े लेकर गयी और प्यार से उसे उठाया । विक्रांत ने नज़रें फेर ली और चुपचाप अनदेखा करके सो गया । अगले दिन सुबह तैयार होकर अभय फोन में कुछ देख रहा था । मधु ने पूछा..”आलू के पराठे बनाए हैं दे दूँ खाने ?

और उसका कॉलर पीछे की तरफ मुड़ा देखकर उसे ठीक करने की कोशिश की तो अभय झुंझलाकर बोला..”अपनी औकात में रहो, शादी कर लेने से मालकिन नहीं बन जाओगी इस घर की ।   जैसे बहुत सारे नौकर चाकर हैं वैसे ही तुम भी रहो । मालकिन बनकर राज बनने की कोशिश मत करो । विक्रांत के कानों में अभय की आवाज़ आ रही थी । अब वो भी मौके से चूकना नहीं चाहता था । उसने भी आकर जोश जोश में मधु से कह दिया..हमारा एहसान मानो हमने तुम्हें झोपड़ी से महलों में बिठाया ।औकात नहीं थी इस घर मे रहने की फिर भी तुम पर एहसान किया । मधु के आँखों से अविरल आँसू बहते जा रहे थे ।

औकात से याद आ गया उसे वो दिन जब उसने माँ से सचमुच कहा था । उस घर मे शादी करने की मेरी औकात नहीं है पर छोटी बहनों का मुंह देखकर उसने बात मान ली थी । अंदर अंदर उसके सीने में दोनो बेटे की बातें चुभ रही थीं तभी प्रताप जी ने  अभय को जोरदार थप्पड़ लगाते हुए कहा..”नौकर नहीं है इस घर की ! तुम्हारी माँ जीवन के ऐसे मंझधार में छोड़कर चली गयी जहाँ से सम्भलना असम्भव था ।

मधु ने मुझे सहारा दिया । जब तुमलोग को अपने हाथ से स्वादिष्ट व्यंजन बनाकर परोसती थी , तुम्हारे तलवों में तेल लगाकर थकान दूर करती थी, और तबियत खराब होने पर तुम्हारा सिर सहलाती थी तब तुमने इसकी औकात क्यों नहीं याद दिलाई  ? मधु के लिए प्रताप जी का प्रेम देखकर अभय और विक्रांत समझ चुके थे   कि माँ की जगह नई माँ ने ले ली है । मधु चुपचाप अपने आँचल से नम आंखों को पोंछते हुए मुँह पर खामोशी का पर्दा ओढ़ते हुए अपने कमरे में चली गयी ।कुछ देर के लिए घर मे सन्नाटा सा पसर गया । सन्नाटे के माहौल से विक्रांत का सिर दुखने लगा और चक्कर सा आने लगा ।

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वो चुपचाप जाकर अपने कमरे में सो गया । कुछ देर बाद मधु उठकर बूढ़ी अम्मा के पास गई और उन्होंने बताया कि विक्रांत को सिर दर्द की समस्या है । मधु झट से उठकर शिथिल कदमो से विक्रांत के कमरे में जाकर उसके सिर पर मालिश करने लगी । झपकी से आँखें बंद हो गयी थी विक्रांत की । नींद में ही उसने मधु को गले लगाकर माफ करने बोला और उसकी गोद मे सिर रखकर मधु के हाथों को चूम लिया । मधु ने भी उसे माफ कर दिया और नई माँ से माँ बनकर उस सूने घर मे  अपने स्वभाव से चकाचौंध सी  रोशनी फैला दी । घर मे भी खुशियों का माहौल था  । घर को नई दिशा देने वाली जो मिल गयी थी । 

मौलिक, स्वरचित

अर्चना सिंह

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