अटूट बंधन… पूजा शर्मा : Moral stories in hindi

लो चली मैं अपने देवर की बारात लेके।

  हुकूम चलाऊंगी मैं रोब दिखाऊंगी मैं

सहमी खड़ी रहेगी मेरी देवरानी।

 कितना नाची थी  पायल डीजे पर अपने देवर की शादी में।  उसके प्यारे देवर अमित की शादी जो थी। छोटा सा परिवार था अमित का जिसमें उसकी मां सावित्री जी और बड़ा भाई नरेंद्र और उसकी पत्नी  पायल रहते थे। शादी के 5 साल बाद भी  पायल मां नहीं बन पाई थी।पायल एक मां की तरह ही प्यार करती थी

अपने देवर से ,बहुत चाव था उसे अपने देवर की शादी का और उसकी खुशी  भी दुगनी हो गई थी काव्या जैसी देवरानी पाकर काव्या के कदम घर में ऐसे पड़े एक महीने बाद ही  पायल गर्भवती हो गई थी,  ऐसी खबर सुनकर घर के सब लोग खुशी से निहाल हो उठे थे,  काव्या अक्सर पूछा करती थी भाभी आपको लड़का चाहिए या लड़की तब पायल हंस कर यही जवाब देती थी 

पायल के जीवन में झंकार करने वाली रुनझुन ही चाहिए। सावित्री जीबोली अगर मेरा पोता हुआ तो। पायल ने  कहा  फिर आप  अपना मनपसंद नाम रख लेना मम्मी जी,  इसी बात पर सास बहू की  मीठी नोकझोंक चलती ही रहती थी। और सच में पायल भाभी की मनचाही इच्छा पूरी हो  गई रुनझुन उनके जीवन में आ गई।

कितने खुश थे सब, पायल  ने उसके चार महीने की होते ही उसके पैरों में घुंघरू वाली पायल डाल दी थी सारे घर में छम छम करती घूमती थीरुनझुन  जब से चलना सीखी थी।काव्या को भी चाची माँ ही कह कर बुलाती थी। काव्या का एक अटूट बंधन बंध गया था रुनझुन से।

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रुनझुन के 3 साल की हो जाने पर पायल फिर से गर्भवती हुई,प्रसव पीड़ा होने पर पायल को अस्पताल में ले जाया गया लेकिन मां और बच्चे मैं से किसी को भी नहीं बचाया जा सका । परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट गया। नरेंद्र तो बिल्कुल ही टूट चुका था रुनझुन को काव्या ने अपनी छाती से चिपटाकर रखा था।

यूं ही एक साल बीत गया अब  काव्या की गोद में भी एक बेटा आ गया था। काव्या के पति को  किसी प्रोजेक्ट की वजह से कंपनी 5 साल के लिए अमेरिका भेज रही थी। काव्या को भी जाना था वह रूनझुन को अपने साथ लेकर जाना चाहती थी लेकिन नरेंद्र ने यह कहकर मना कर दिया कि पायल की एक निशानी उसके पास रहने दे।

काव्य की अमेरिका जाने के 4 महीने बाद ही सावित्री जी ने  रुनझुन की सही परवरिश का हवाला देकर अपनी ही किसी रिश्तेदारी में से नरेंद्र की शादी कर दी। काव्या रुनझुन से अक्सर फोन पर बात करती रहती थी। यूं ही 5साल बीत गए।

 काव्या बेचैन थी रुनझुन से मिलने के लिए। दिल्ली आते ही जब वह अपने घर गई,  वहां का नजारा देखा तो कितना कुछ बदल चुका था।  सावित्रीजी कितनी कमजोर हो चुकी थी।  रोजमर्रा के काम के सिवाय बिस्तर से उठ भी नहीं पाती थी। पैरालिसिस के अटैक की वजह से उनकी जीभ भी लड़खड़ाने लगी थी टूटे-फूटे शब्द ही बोल पाती थी।

अपने बेटा बहू और पोते को देखकर रोने लगी थी। नरेंद्रकी दूसरी पत्नी राधा चाय ले आई थी। काव्या को  चारों तरफ देखते देख सावित्रीजी ने  इशारे से बताया रुनझुन स्कूल गई है। स्कूल से आई रुनझुन को देखकर काव्या की आंखों में आंसू आ गए।  कितनी मुरझा चुकी थी ,काव्या दौड़कर रुनझुन से गले लग गई।

चाची मां कहकर फूट-फूट कर रो पड़ी थी रुनझुन। राधा का बेटा भी अब 1 साल का हो चुका था। एक हफ्ते के लिए ही आए थे अमित और काव्या इसलिए  रुनझुन के साथ जी भर कर समय बिताना चाहते थे,  कंपनी ने अमित को अब बेंगलुरु शिफ्ट कर दिया था।

अमित अपनी मां को भी अपने साथ ले जाना चाहता था लेकिन वह अपना अंतिम समय अपने पति के घर में ही बिताना चाहती थी।  1 दिन काव्या का हाथ पकड़ कर उन्होंने टूटे-फूटे शब्दों में इतना जरूर कहा था रुनझुन को भी अपने साथ ले जा।  दो-चार दिन में ही रुनझुन के प्रति राधा का व्यवहार समझ में आ गया था काव्या को।

पैरों तले जमीन खिसक गई थी काव्या की जब राधा को रुनझुन से यह कहते सुना था कि फालतू कुछ भी बताने की जरूरत नहीं है काव्या  से,  कल हमारे साथ बाहर जाने को खुद ही मना कर देना यहां घर का काम कौन करेगा,  अपनी चाची मां के सामने ज्यादा महारानी बनने की कोशिश मत करना। शाम को नरेंद्र के आने पर भि ड़ पड़ी थी काव्या उनसे और ऐलान कर दिया था कि मैं  रुनझुन को अपने साथ लेकर ही जाऊंगी पायल भाभी की आखिरी निशानी् यही कह कर रखा था ना भाई साहब आपने, 

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कहां गई इसकी खनक जो सारे घर में गूंजा करती थी कभी।  अरे आपने तो वह कहावत सही कर दी की दूसरी मां के आने पर बाप भी तीसरा ही हो जाता है।  राधा की तो सौतेली बेटी थी लेकिन आप की सौतेली बेटी नहीं थी  क्या जवाब दोगे आप पायल भाभी को? अगले दिन ही काव्या सावित्री जी और रुनझुन को अपने साथ बेंगलुरु लेकर चली गई थी।

चलते हुए नरेंद्र ने वो पायल भी काव्या को सौंप दी थी जिन्हें पहन कर रुनझुन सारे आंगन में डोला करती थी,उसकी मां ने अपनी बेटी को पहनाई थी।  गाड़ी में अपना बेटा अपने पति को सौंप कर रुनझुन का सर अपनी गोद में रख लिया था काव्या ने कितनी देर तक आंसू बहाती रही थी उसका सर सहलाते हुए। 

अपनी चाची मां के पास आकर रुनझुन फिर से झनकने लगी थी,  कैसा अटूट बंधन था दोनों का एक दूसरे के साथ। काव्या अक्सर उसे देखकर यही सोचा करती थी कि नन्ही रुनझुन को क्या पता था जब उसने मुझे चाची मां कह कर बुलाया था एक दिन किस्मत उसे मेरी ही बेटी बना देगी?।  वह मन ही मन पायल भाभी को याद करके  कहने लगी।

आपका हर सपना पूरा करेगी आपकी बेटी। मैं इसके होठों से हंसी कभी खोने नहीं दूंगी। अपना वादा पूरा कर भी दिखाया था काव्या ने आज रुनझुन डॉक्टर बन चुकी है और बेंगलुरु में ही अपनी प्रैक्टिस करती है उसका पति भी डॉक्टर है। काव्या का बेटा इंजीनियर बन चुका है। 

 सच में कुछ बंधन ऐसे होते हैं जो खुद ही बन जाते हैं।

 एक ऐसा ही अटूट बंधन था काव्या और रुनझुन का।

 पूजा शर्मा स्वरचित।

 दोस्तों कमेंट करके जरूर बताएं मेरी कहानी आपको कैसी लगी।

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