सभी के जीवन में कुछ रिश्ते प्रेम और भावनात्मक तरीके से इतने जुड़ जाते हैं की उनको भूलना संभव नहीं होता उनके साथ नही होने पर भी उस #अटूट बंधन #में बंधे रहते हैं , येसा अटूट बंधन हम दोनों बहनों के बीच था और आज भी है ।
बचपन में जब से होश संभाला था मेरा दीदी का एक ही कमरा एक ही पलंग सोने से पहले एक ही “लड़ाई तेरी चोटी इतनी लंबी है मेरी पीठ में लगती है “
तेरे छोटे बाल हैं तो मेरी चोटी तुझे अच्छी नहीं लगती ।
दीदी दो साल बड़ी थी दो क्लास आगे रहती थी उसकी किताबे ही मुझे पढ़ने को मिलती थी।उसे नई किताबे और मेरी उसके द्वारा सहेजी पुरानी किताबे ,मुझे पता होता था की मुझे आगे यही पढ़नी है तो अपनी क्लास पास होने के पहले ही मैं उन किताबों को पढ़ने लगती और समझने के लिए दीदी का सर खाने लगती ।
दीदी बड़ी बिट्टू और मैं छोटी बिट्टू ।बड़ी बिट्टू की शांत स्वभाव की तारीफ होती थी ,वह ज्यादा किसी से मतलब नहीं रखती थी हम दोनों के बीच किसी की जरूरत उसे नही लगती ,मेरा स्वभाव एक दम विपरीत सबका खयाल रखना सबके साथ खेलना बाते करना फिर सबकी बातें दीदी को सुनाना । इसी तरह कब दीदी का बारहवी पास हो गया और बी एस सी के लिए हॉस्टल जाने का समय आ गया ।
मेरा सारा झगड़ा खतम दोनो बहुत दुखी होती ,मुझे लगा दीदी के सिवाय मेरा कोई नही है कौन मेरे मन की बात सुनेगा ,अम्मा तो कभी हमारे पास होती कभी वह पुस्तैनी घर में पिताजी के पास चली जाती हम भाई बहिन पढ़ाई के लिए शहर में रहते थे । तब फोन पर बात नही होती थी परंतु फुरसत से दो पेज का पत्र हर हफ्ते दीदी के हॉस्टल के पते पर चला जाता । वह भी कॉलेज और हॉस्टल की बाते लिखती मुझे लगता जल्दी से मेरा भी स्कूल खतम हो और मुझे भी हॉस्टल और कॉलेज मिल जाए ! फिर से दीदी के साथ रहूंगी पिता जी तो हम दोनो को डाक्टर बनाना चाहते थे इस लिए पी एम टी दिया था पर दोनो बहनों ने एक दूसरे का मान रखा टैस्ट में नही आए और डाक्टर बनने का इरादा छोड़ दिया था क्योंकि दीदी को डाक्टर पति मिल रहा था
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मन के जैसा कहां होता है दीदी की बी एस सी फाइनल ईयर में शादी तय हो गई , उस जमाने में लड़कियो की शादी अच्छा लड़का मिलने पर कर देते थे जीजा जी डाक्टर है ,दीदी के डाक्टर बनने का ख्वाब अब खतम।
एम एस सी के बाद मेरी भी शादी हो गई और उसी शहर में दोनो के पति डाक्टर तो हमारे बीच बहुत अच्छी आत्मीयता थी दोनो के पतियों में भी ।
हम दोनो के दो दो बच्चे थे जिंदगी बहुत अच्छी जा रही थी पति लोग व्यस्त रहते परंतु हम बहने एक दूसरे के साथ मस्ती से बच्चो की फिकर रखते थे ।
एक हफ्ते की बीमारी में मेरी अम्मा का स्वर्गवास हो गया ,दीदी को अम्मा का गम बहुत ज्यादा था ,मैं एक दिन दीदी के घर गई वह टेप रिकॉर्डर पर “दुनिया से जाने वाले जाने चले जाते हैं कहां “सुनकर रो रही थी । उनको माइल्ड फीवर चल रहा था डाक्टर परेशान थे की कारण क्या है ? क्या दीदी का अम्मा के साथ ऐसा अटूट बंधन था जिसे हम समझ ही नही पाए ।
दो बच्चो की मां दीदी को काल की बुरी नजर लग गई वह बहुत बीमार हो गई हमारा #अटूट बंधन #हाथों से फिसल रहा था वह लिवर कैंसर से पीड़ित थी ।भगवान कहे जाने वाले डाक्टर भी हार रहे थे मैने कितने मंदिर में मन्नत की परन्तु ईश्वर की लिखी कोई नही टाल सकता था दीदी को आभास हो गया था उन्होंने मुझे अपने दोनो जिगर के टुकड़े सात साल की बेटी और आठ साल के बेटे को हम लोगों को देखने की जिम्मेदारी दे गई ।
जीजा जी भी अपने अटूट बंधन को नही भुला पा रहे थे वह दीदी की जगह किसी और को नही दे पाए ।
उनके प्रेम और विश्वास का वह अटूट रिश्ता आज भी बना है बच्चो की शादियां हो गई पर उनकी बेटी बिल्कुल अपनी मां को गई है उससे भी मेरा वही अटूट रिश्ता है ।
जब भी उसे देखती हूं दीदी आज भी बहुत याद आती है ,वह मेरी बड़ी बेटी जैसी है ।
पूजा मिश्रा
कानपुर
Dear Mam,
Aapki Har story dil choo jati hai or yadi dil laga kar shaanti sed padho to aisa lagta hai ki ye sab kuch hamare saaht he chal raha hai.
Aap sach mein bahut aacha likhti hai.
thank u so much.