” अटूट बँधन ” – सीमा वर्मा

 यह कहानी ‘चंदेरी’ गाँव की है । जहाँ गाँव के एक किनारे बने तालाब के बगल में बने मंदिर के प्रांगन में साल के सावन महीने में मेले का आयोजन होता है।

वहाँ एक विशाल बाग है। 

उस मेले की तैयारी बहुत पहले से की जाती है और जिसमें दूर-दूर से घूमने लोग आते हैं।

उस दिन भी सावन के महीने में सुबह से ही आज की तरह काले काले घने बादल लगे हुए थे। 

जब लगभग बीस बर्ष की शिवानी अपनी सहेलियों के साथ मेले में घूमने आई हुई थी।

 चंचल शोख शिवानी गहरे हरे रंग की  अनारकली कुर्ते एवं उसी  सलमा-सितारे जड़ित शरारे में बिल्कुल हरी परी सी लग रही थी तभी उसकी नजर अपने आप को घूरती नवजवान पर पड़ी वह एक टक उसकी ओर देख रहा है। 

उसे इस कदर अपनी ओर देखते वह व्याकुल हो उठी।

 कुछ पल तो शिवानी भी उसे मंत्रमुग्ध सी घूरती रही फिर शर्मा कर उसने पलकें झुका लीं ।

यह उसके लिए प्यार का पहला अहसास था।

उसकी सभी सहेलियां हर स्टॉल पर रुक-रुक कर बिकने वाली चीजों को देख रही थीं तो कुछ झूले का आनंद उठा रही थीं।

शिवानी भी अनमने ढ़ंग से उनके साथ लगी हुई थी लेकिन उसे महसूस हो रहा था कि वो नवजवान जिसका नाम सौरभ है।

उसके आस-पास ही मौजूद है एक जगह पेड़ो की झुरमुट में सौरभ ने उसका हाथ थाम कर खींच लिया था।

शिवानी भी उसके साथ ही खिंची हुई सी महसूस कर रही थी।

 सारे दिन वे एक दूसरे के प्यार में डूबे हुए  साथसाथ रहे।

बातों ही बातोँ में सौरभ ने उसे बताया,

‘मैं यहाँ पास के शहर मैं एक मित्र के बहन की शादी में आया हुआ हूँ,

‘वहाँ ही सावन के महीने में हर साल लगने वाले इस सुप्रसिद्ध मेले के बारे में सुनकर घूमने चला आया हूँ ‘



‘क्या आप मुझे घुमा देंगी मैं यहाँ के लिए नया हूँ ? ‘

 लिहाजा शाम ढ़ले तक शिवानी ने ही उसे यहाँवहाँ घुमाते हुए मेले के बाहर खड़ी उसकी कार में बैठी अपने घर पहुँच गयी थी।

न जाने क्यों वे उतने कम समय में ही वे दोनों एक अजीब से दिल के रिश्ते से बँध चुके थे। 

जब कि शिवानी जानती है ,

 ‘ शादी पहले से ही बगल वाले शहर के सुकान्त से अगले बर्ष के माघ महीने के लगन में होना तै है ‘

फिर भी एक कसक सी है उसके दिल में जब से वह मेले में सौरभ से मिल कर आई है।

अगले ही दिन सौरभ भी अपने दिल में शिवानी के प्यार की अगन जगाए हुए वापस अपने शहर लौट गया था।

शिवानी की शादी सुकान्त से हो गई है वह खुशी-खुशी अपने ससुराल चली गईं। अब वह एक प्यारे से स्वस्थ बेटे की माँ  है।

सुकान्त की बहन सुनिधी उसकी प्यारी सी ननद से ज्यादा सहेली बन गई है। 

शिवानी की शादी के बाद सुनिधी की भी शादी खूब धूमधाम से उसके भाई ने करवाई है।

 

लेकिन सावन के महीने के साथ ही शिवानी को सौरभ की बहुत याद आती है। 

वह उस वक्त बराबर सोचती है,

‘ न जाने सौरभ कहाँ होगा ?

अब तो उसकी भी शादी हो गई होगी … ‘ फिर खयालों में ही वह उससे मिल भी आती है।

सावन के महीने में जब भी शिवानी माएके आती है एक बार मेले में घूमने जरूर जाती है,

‘शायद कहीं वो फिर से मिल जाए ? ‘

लेकिन ऐसा कहाँ संभव हो पाता है।

 अचानक एक कार ऐक्सिडेंट के हुए हादसे में सुनिधी के पति की मृत्यु हो जाती है।

शिवानी का पूरा परिवार उसके दुख से दुखित और विचलित है।

बहुत कह सुन कर शिवानी ने उसे पुनः विवाह के लिए राजी किया है ,

‘ अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है सुनिधि आखिर  कैसे काटेगी पूरी जिन्दगी ?’

कोई बच्चा भी तो नहीं जो सहारा बनेगा ‘

‘ तुम तो हो भाभी ‘

‘व्यवहारिक बनो सुनिधी, 

मैं और मेरे बच्चे कब तक तेरा साथ दे पाएगें ?  



यह तो ईश्वर ही जानें फिलहाल यह समय भावुकतापूर्ण नहीं कड़े निर्णय लेने का है’ 

इस तरह से समझाने पर सुनिधी पुनःविवाह के लिए तैयार हो गयी है।

सुकान्त ने अपने औफिस में तबादला ले कर आए हुए नये  थोड़े उम्रदराज लेकिन अविवाहित अफसर से उसके विवाह  की बात चला रखी है।

वे अफसर आज सुकान्त के घर सुनिधी से मिलने आने वाले हैं।

 शिवानी ने खुद नये आंगतुक मेहमान के स्वागत की तैयारी अपने हांथों में कर रखी है।

सुकान्त ने बता रखा है ,

‘नये अफसर सादगी पसंद हैं ‘

अतः सुनिधी की सादगी पूर्ण सज्जा करने के पश्चात घर में ही तैयार तरह -तरह के व्यंजन टेबल पर सलीके से सजा कर उनके आने का इंतजार कर रही है।

दरवाजे पर गाड़ी के रुकने की आवाज आते ही शिवानी ने नजर उठा कर देखा तो सामने से ‘सौरभ’ 

सुकान्त के साथ गंभीर भाव धारण किए हुए मध्यम गति से चलता हुआ चला आ रहा है।

शिवानी की सांसें मानों थम सी गई हैं।

वह अपलक घर के दरवाजे की तरफ  देख रही है।

जिस तरह पहली बार उसे मेले में देखा था सेम उसी तरह सिर्फ़ कानों के पास बालो में सफेदी झलक रही है।

सौरभ से नजर मिलते ही वह ठिठक कर रह गई लगभग यही हालत सौरभ की भी है उसने अचंभित होते हुए नमस्कार की मुद्रा में हाथ जोड़ दिए,

‘आप  शिवानी जी हैं ना ?’

मुस्कुरा उठी शिवानी …

‘हाँ मैं शिवानी ही हूँ और सुनिधी मेरी प्यारी ननद मिल लें अच्छी तरह से मेरी ही अनकृति है ‘

‘ हाँ बिल्कुल वही जान कर आया हूँ ‘

उसकी मुस्कुराहठ रहस्यमयी लग रही है।



तब तक सुकान्त सुनिधी को साथ ले कर कमरे में आ गए हैं।

सुकान्त काफी खुश लग रहे हैं आज एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी से जो मुक्त होने वाले हैं।

कुछ औपचारिक बातें करके सौरभ ने अपनी रजामंदी दे दी है।

शिवानी ने बातों ही बातों में पूछ ली कि , ‘आपने अभी तक  शादी क्यों नहीं की है ? ‘

इस सवाल पर सौरभ चुप रह गये। 

सुनिधि ने भी दोबारा चलते समय यही बात दोहरा कर पूछ लिया अब सौरभ चुप नहीं रह सका ,

‘ अगर आप लोगों यह जानना इतना ही आवश्यक लग रहा है तो सुन लें ,

‘ बड़े ही अजीब होते हैं ये दिल के रिश्ते कुछ तो पूरे होते हैं और कछ अधूरे रह जाते हैं ‘

बस यही समझ लें और फिर आज से करीब  छह साल पहले सावन के मेले में शिवानी से हुई अपनी पहली और आखरी मुलाकात के बारे में सारी बातें कह सुनाई।

‘जब सुकान्त जी ने मुझसे सुनिधी के बारे में कहा तो मैंने झट से हामी भर दी ‘

क्योंकि तब तक मैं सुकान्त की औफिस टेबल पर उसके साथ शिवानी की तस्वीर देख कर सब बातें जान चुका था ‘

‘ मैं ने अब तक शादी नहीं की है तो कोई खास वजह नहीं बस मेरी इच्छा नहीं होती थी ‘

‘ अपनी शादी से पहले मैं शिवानी से मिल कर सिर्फ़ एक बार उसकज हाल समाचार जानना चाहता था।

 जो मुझे उससे मिले बगैर ही सुकान्त की हँसी खुशी चल रही वैवाहिक जिन्दगी को देख कर पता चल चुकी थी ‘

‘सुकान्त को इतना खुश देख कर मुझे सहज ही शिवानी की खुशी का अनुमान लग चुका है अब मुझे कोई संशय बाकी नहीं रहा है ‘

इसलिए इतना सुनिश्चित कह सकता हूँ कि सुनिधी को बहुत खुश रखूंगा मैं ‘

‘शायद इसलिए नेककार्य के लिए भगवान ने मुझको अब तक सहेज रखा था ‘

शिवानी एकटक उसकी ओर देखती हुई उसकी अप्रतिम बातें सुन रही है।

 

वह दिल से खुश है उसकी प्यारी सुनिधी के लिए इतना अच्छा और प्यारा इन्सान मिला है।

जो सच में दिल से बंधे रिश्ते को निभाने में यकीन करता है।

 

सीमा वर्मा / नोएडा

 

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