अतृप्त आत्मा – सरिता अजय जी साकल्ले : Moral Stories in Hindi

दुबे जी का पूरा जीवन संघर्ष मैं गुजरा जन्म के 3 साल बाद ही मां के आंचल से वंचित रहे। मां का देहांत हुआ पिता द्वारा लालन-पालन किया गया।

थोड़ी सी खेती बाड़ी थी पिता दिन रात मेहनत कर अपना और अपने पुत्र का जीवन यापन करते थे। इसी के चलते शिक्षा प्राप्त की और गांव में ही एक सरकारी प्राथमिक पाठशाला मे शिक्षक पद पर नियुक्त हुए

।समय बीतता गया पिताजी वृद्धावस्था में जा चुके थे, उन्होंने दुबे जी का विवाह एक समकक्ष समाज में सुयोग्य कन्या से कर दिया ।

कुछ समय बाद पिताजी का देहांत हो गया  दुबे जी अपनी पत्नी के साथ जीवन यापन करते रहे । दुबे जी के 2 पुत्र एक पुत्री हुई बड़े होने पर पुत्री का विवाह अच्छे परिवार में कर दिया गया

, बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाई गई दुबे जी बहुत मेहनत करते थे खेती-बाड़ी भी संभालते थे और नौकरी भी करते थे। इसी से उन्होंने जो धन संचय किया था उसी से अपने बच्चों का उज्जवल भविष्य बने।

हमेशा प्रयत्नशील रहते थे । बच्चों ने शहर में जाकर उच्च शिक्षा प्राप्त की दुबे जी खुद को बहुत गर्वित महसूस करते थे,

एक दिन ख्याल आया बच्चों का विवाह कर दिया जाए । उन्होंने पहले अपने बड़े बेटे का बाद में छोटे बेटे का विवाह कर दिया ।

बच्चों ने गांव में रहने से इंकार किया दुबे जी ने कभी भी उन्हें वापस गांव में रहने के लिए आग्रह नहीं किया।  दिन बीतते गए दुबे जी की पत्नी का भी देहांत हो गया

और बच्चे मां की मृत्यु पर गांव आए और पूरे संस्कार कर वापस चले गए । दुबे जी फिर अकेले ही रहे अब उनकी भी उम्र हो चुकी थी वह सेवानिवृत्त हो चुके थे

खेती-बाड़ी भी अब उनसे नहीं होती थी, वह भी दूसरों को  सालाना के हिसाब से दे दी थी ,अब दुबे जी को अकेला पन खाए जा रहा था । ना समय पर भोजन बनता था ना

उनका शरीर उनका साथ देता था। ना ही उनके बेटे उनके पास रहने आते थे। ना उन्हें बुलाते थे ,वह अपना दर्द किसी को नहीं बता पा रहे थे। पूरे जीवन में उन्होंने

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अपने अच्छे कर्म कर सभी को खुश करने की कोशिश की थी लेकिन एक ख्वाहिश हमेशा रही मेरा पूरा परिवार मेरे साथ हो हम साथ में भोजन करें,

मुझे भी कोई गर्म भोजन परोसे उत्तम भोजन की इच्छा लिए एक दिन वे मृत्यु को प्राप्त हुए । यमराज द्वारा जब उन्हें ले जाया जा रहा था

तो यमराज ने कहा आपको स्वर्ग नसीब हुआ है। आपने मृत्यु लोक के सब कर्म धर्म के साथ किए हैं, दुबे जी सुनते ही यमराज के सामने हाथ जोड़कर नतमस्तक हो जोर-जोर से पुकार लगाते हैं,

यमराज घबरा जाते हैं उठिए दुबे जी अब क्या समस्या है  दुबे जी बोलते हैं मुझे स्वर्ग नहीं जाना है मेरी एक ख्वाहिश अधूरी है मेरी अतृप्त आत्मा को तृप्त किया जाए । या तो मुझे कौवा बनाया जाए,

गाय बनाया जाए ,यमराज बोलते हैं ऐसा क्यों महाशय दुबे जी द्वारा कहा जाता है मेरे जीते जी मेरे बहू बेटों ने कभी मुझे गरम भोजन नहीं परोसा ना कभी मेरे साथ समय बिताया ना मुझे याद किया मैं चाहता हूं

मुझे ऐसी योनि मिले ताकि मैं मेरे अपनों के साथ समय बिता सकूं मेरे मरने उपरांत मेरा भी तर्पण किया जाएगा मेरा भी श्राद्ध किया जाएगा

और मेरे लिए गर्म भोजन बनाया जाएगा मेरे निमित्त जो वस्तु दान की जाएगी वह सब का मैं अनुभव करना चाहता हूं। अगर आप प्रसन्न हैं तो पहले तो मुझे कव्वे का जन्म दे ,फिर गाय का जन्म दे फिर ब्राह्मण का जन्म दे ,ताकि मेरी आत्मा तृप्त हो।

*स्वरचित*

श्रीमती सरिता अजय जी साकल्ले

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