अवधेश और स्मृति ….दोनों पति पत्नी , प्रेम विवाह किया था दोनों ने आज से अठारह साल पहले वो भी घर से भाग कर । उस वक़्त स्मृति उन्नीस साल की थी और अवधेश इक्कीस साल का दोनो एक आसपास के कस्बे मे रहते थे । स्मृति के पिता ने बड़े चाव से उसे कॉलेज पढ़ने भेजा था जहाँ आते जाते उसकी नज़र अवधेश से चार हुई और पहले दोस्ती और फिर प्यार हो गया । प्यार हुआ इकरार हुआ और साथ जीने मरने की कसमे भी खाई गई पर क्या ये सब इतना आसान होता है ।
जब मुलाकाते हुई तो लोगो की नज़र मे भी आई वो मुलाकाते और बात उनके घर तक पहुंची। दोनों अलग जाति के थे इसलिए घर वाले दोनों के विवाह के लिए सहमत ना हुए पर प्यार हार मानने को तैयार ना था । दोनो पर पहरे भी बैठाये गये और दोनो पिंजरे मे बंद पंछी से तड़पने लगे । जब प्यार पर पहरे बिठाये जाते है तब वो और ज्यादा सर चढ़ता है इधर तो वो दोनो दोनों बालिग थे कर लिया भाग कर विवाह बिन ये सोचे पीछे जन्म देने वाले माँ बाप पर क्या बीतेगी।
शादी के बाद अपनी छोटी सी नई दुनिया में दोनों खुश थे अवधेश इधर उधर काम कर थोड़ा बहुत कमा लेता दोनो उसी को मिल बांट खा लेते उनकी तो मानो दुनिया एक दूसरे मे सिमट गई थी । इधर दोनों के माता पिता एक दूसरे के दुश्मन बन गये थे पर उन्हे इससे क्या उनके लिए तो उस वक़्त प्यार ही सब कुछ था। तभी तो शायद कहते हैं प्यार अंधा होता है क्योंकि प्यार में पड़े लोगों को अपने आस पास , अपने अपनों की खुशी गम कुछ नहीं दिखता वो तो बस अपनी दुनिया मे खुश थे। पर क्या ये खुशी स्थाई थी ?
दोनों की शादी के बाद स्मृति के पिता को ऐसा सदमा लगा कि उन्होंने बिस्तर ही पकड़ लिया आखिर इतने लाड से पाली बेटी जब इज्जत के साथ खिलवाड़ करे तो ये सदमा बहुत बड़ा होता है । जब स्मृति को इस बात का पता चला तो उसे बहुत दुख हुआ पर उसमे इतनी हिम्मत नही थी कि पिता के पास जा उनसे माफ़ी मांग सके । क्यो बच्चे घर से भाग शादी करने की तो हिम्मत कर जाते है पर अपने माता पिता से नज़रे मिलाने की हिम्मत उनमे नही होती । इधर अवधेश जो अपने घर का इकलौता बेटा था उसके माता पिता ज्यादा दिन बेटे से नाराज़ ना रह सके और शादी के छह महीने बाद उन्होंने बेटे को गर्भवती बहू के साथ अपना लिया ।
जैसे ही अवधेश के माता पिता ने उन्हे अपनाया उधर सदमे से बीमार स्मृति के पिता दुनिया छोड़ गये। ये क्षति स्मृति के परिवार के लिए बहुत बड़ी क्षति थी। इसलिए वो स्मृति के माफ़ी मांगने पर भी उसे माफ़ ना कर सके क्योकि अगर स्मृति ने ये कदम ना उठाया होता तो आज एक पत्नी का सुहाग ना उजड़ता । बच्चो के सिर से बाप का साया ना उठता। उसके मायके वालों ने तो स्मृति को अपने पिता के अंतिम दर्शन भी नही करने दिये क्योकि उनके लिए पिता के साथ साथ बेटी भी मर चुकी थी। स्मृति को प्यार तो मिला , ससुराल भी मिल गया पर उसके पिता दुनिया से चले गये और उसका मायका हमेशा के लिए खत्म हो गया।
वैसे भी जिस बेटी के कारण पिता की मौत हुई हो उसे कोई परिवार कैसे अपना सकता था। हालाँकि स्मृति के लिए भी ये सदमा बहुत बड़ा था पर इसके लिए कुछ हद तक जिम्मेदार भी वही थी। इधर ससुराल मे इकलौती बहू होने के कारण स्मृति को सिर माथे पर बैठाया गया वैसे भी बहू गर्भवती थी तो उसकी ससुराल वालों ने सब कुछ भूल पूरे दिल से उसका स्वागत किया। यूँ तो स्मृति ससुराल मे रम गई पर मायका खोने का दर्द उसे परेशान किये रहता।
समय बीतता गया और स्मृति ने एक बेटी को जन्म दिया जहाँ स्मृति इससे बहुत खुश थी वही अवधेश के चेहरे पर हलकी सी चिंता की लकीरें घिर आई। तो क्या अवधेश को बेटे की कामना थी? इसका जवाब तो हम या आप नही जानते शायद वक़्त जानता हो ?
वक़्त अपनी रफ़्तार से गुजरने लगा स्मृति और अवधेश की बेटी बड़ी होने लगी। इस बीच स्मृति ने एक बेटे को भी जन्म दिया । यूँ तो उनका परिवार सबको खुशहाल नज़र आता पर जहाँ स्मृति अपना पीहर छूटने और पिता की मौत का सदमा भूल नहीं पाती वहीं अवधेश के चेहरे पर भी कभी कभी चिंता की लकीरें घिर आती खासकर अपनी बेटी अवंति को देख । स्मृति ने कई बार अवधेश से इसका कारण भी जानना चाहा पर अवधेश हर बार टाल जाता । वैसे अवधेश बेटी को कोई कमी नही रखता था दोनो बच्चो का पालन पोषण भी एक समान हो रहा था फिर भी कहीं ना कहीं अवधेश और अवंति के रिश्ते मे वो बात नही थी जो एक बाप बेटी के रिश्ते मे होती है । जाने ये स्मृति का वहम था या अवधेश सच मे अवंति को इतना प्यार नही करता था जितना बेटे से करता था।
क्या वजह थी कि अवधेश अवंति से खिंचा खिंचा सा रहता था ।
जानने के लिए अगले भाग का इंतज़ार कीजिये ..
अतीत की परछाई – (भाग 2)
अतीत की परछाई – (भाग 2) – संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi