अस्तित्व  – उमा वर्मा

दिन का उजाला धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा था, कब से खिड़की के पास खड़ी है गायत्री, समय का पता ही नहीं चला ।अंधेरे ने पंख पसारने शुरू किए तो उठकर खिड़की बंद कर दिया ।घर में अकेली है गायत्री ।बेटा अपनी ससुराल गया हुआ है प्रिया को लिवाने।हर साल गरमी की छुट्टियां होते ही प्रिया मायके भागती है ।दो चार दिन में स्कूल भी तो खुल जायेगा फिर वही भागम-भाग ।कितनी व्यवस्थित थी गायत्री की अपनी गृहस्थी ।समय कब पंख लगाकर उड़ने लगा इसका कुछ पता ही नहीं चला ।कुछ सोचने का भी तो समय ही कहाँ था उसे, आज जब वह नितान्त अकेली है तो समय ही समय है।इस वक्त को पकड़ कर रख लेना चाहती है वह ।केवल अपने साथ वक्त गुजारना भी भला लगने लगा है ।

सामने पलंग पर उसकी डायरी के पन्ने उड़ने लगे हैं ।उसकी अपनी जिंदगी के साल दर साल, महीने, कई घंटे, कई पल किस तरह उड़ गये कब वह पत्नी बन गई, फिर दो साल में दो बच्चों की माँ भी बन गई ।डायरी लिखना और पत्र,पत्रिकाओं में लिखते रहना उसकी बचपन की आदत रही थी ।खूब खुश होकर जब वह अपनी लिखी गई रचना बाबूजी को दिखाती तो वे पीठ ठोकते ” मेरी बेटी बहुत बड़ी लेखक बनेगी ” अम्मा कहती- ” पहले घर गृहस्थी का ढंग तो सीख ले” फिर अम्मा  बाबूजी का नोक झोंक शुरू हो जाता ।” आप ने बेटी को सिर चढ़ा लिया है ।ससुराल जाकर उलाहना सुनवायेगी तब पता चलेगा आप को ” लेकिन गायत्री ने उलाहना नहीं सुनवाई ।

सुचारू रूप से घर गृहस्थी संभालती रही ।यह अलबत्ता हुआ कि सारे काम काज निबटा कर जब भी समय मिलता कुछ न कुछ लिखती रही ।ससुराल में कला और भावनाओं के लिए कोई स्थान नहीं था ।फिर भी पति की स्वीकृति थी कि अपनी मन मर्जी से जिए।पता नहीं क्यों सवाल घेर लेते हैं उसके मन में ।खुद की जिंदगी उसने जिया ही कब था? जिया था तो एक संपूर्ण  स्त्री बनकर, एक पत्नी और एक माँ बनकर ।




सब दिन एक डर सा बैठा रहा मन में ।बचपन में अम्मा के कठोर अनुशासन से डरी,फिर पति तो अच्छे ही थे पर क्रोध आने पर आपे से बाहर हो जाते।दोनों बच्चे हो चुके थे कि एक दिन खबर आई ” बाबूजी नहीं रहे ” रो रो कर खुद को समझा लिया कि अब आगे के लिए सोचना है ।डरते डरते पति से पूछना चाहा,अब आगे के लिए क्या करना है ।अम्मा और दो छोटे भाई बहन ।बड़ी बेटी होने के नाते हमारा भी तो फर्ज बनता है ।

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पति सहर्ष तैयार हो गये थे ।फिर अम्मा दोनों बच्चों को लेकर यहाँ आ गयी ।दौड़ धूप का सिलसिला चला तो अम्मा की नौकरी भी लग गई ।कितना टेंशन में जीती रही वह ।पूरे नौ साल अम्मा साथ रही।उसके खुद के दो बच्चे, अम्मा के दो बच्चे, दो बच्चे जेठानी के ।पति एक दिन भतीजे भतीजी को ले आए ” दोनों यहाँ रह कर पढ़ाई करेंगे “। घर में सास ससुर, अम्मा, छह बच्चों के साथ गायत्री ।कई बातें सास को बुरी लगती ।कई बातें अम्मा को बुरी लगती ।पति भी मौके के ताक में रहते ” देख रहा हूँ तुम अपने भाई बहन के चलते अपने बच्चों पर ध्यान नहीं दे रही हो आजकल ” उस दिन तो गजब ही हो गया था जब एक पार्टी में जाना था ” गायत्री, जरा जल्दी करो और हाँ दोनों बच्चों को भी ले लो।” अम्मा आफिस में थी ” पर मेरे ये छोटे भाई बहन?”

मैंने सबका ठेका नहीं ले रखा है ।जहाँ जाओ सब को ढोते रहो।पति चीख पड़े थे।चेहरे का तनाव भीतर ठेल लिया था उसने ।फिर तैयार होकर पार्टी में चली गई थी वह।कई बार डांट सुनती रही ।बेवजह ।बेटे को स्कूल छोड़ने जाते तो क्या कभी मेरे भाई को भी तो छोड़ सकते थे स्कूटर से ।वह भी तो छोटा बच्चा है ।पर उसे तो पैदल ही जाना है ।उपर उपर से देखने में एक दम फिट।आराम दायक घर ।

एक प्यारा पति ।दो प्यारे बच्चे, खुशियाँ ही खुशियाँ ।पर क्यो सुकून नहीं मिला उसे कभी अपना अस्तित्व, अपनी पहचान खोती जा रही थी वह ।अक्सर बाबूजी याद आते ” लिखती रहना बेटा ” तुम जरूर आकाश की उँचाई पर पहुँच जाओगी एक दिन ।समय आगे बढ़ गया ।बहन की शादी हो गई तो अम्मा अपने क्वाटर में शिफ्ट हो गई ।दोनों बच्चों की पढ़ाई भी पूरी होने को थी।बस एक आस थी मन में अच्छे घर में बेटी का रिश्ता हो जाता और बेटे की अच्छी नौकरी हो जाती ।




कितना खुश हो गई थी वह जब बेटे की नौकरी लगी ।वह दौड़ता हुआ आया ” अम्मा, देखो नौकरी ज्वाइन कर ली मैंने ” पति भी बहुत खुश हुए ।” देखना अब इसके लिए चाँद सी बहू लाऊंगा मै ” खबर मिलते ही लड़की वालों का आना जाना शुरू हो गया ।तस्वीरों के ढेर पर ढेर ।पति और बेटे के साथ तस्वीर छांटने का सिलसिला शुरू हो गया ।किसी की नाक मोटी,किसी की आँख छोटी,किसी का कद छोटा, किसी का रंग साँवला ।

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पति चिल्लाते- आखिर तुम माँ बेटे चाहती क्या हो? कैसी लड़की चाहिए तुम्हे? अंत में दूर के रिश्ते की चाची ने एक रिश्ता सुझाया था ।” भाई साहब, लड़की तो लाखों में एक है ” राजेश दूल्हा बना बड़ा प्यारा लग रहा था ।सचमुच चाँद सी बहू खोजा था गायत्री ने ।” कितनी सुन्दर जोड़ी है ” रिश्ते दारो ने कहा था ।आखों में खुशी के आँसू भर आए थे तब उसके ।बेटा भी तो आज्ञाकारी था ।दोनों की जोड़ी खूब जम रही थी ।

शादी की गहमा-गहमी खत्म हो गई ।सब काम  समय पर हो गया ।वह थक कर चूर हो गई ।पर थकान के बारे में नहीं सोचना है ।अभी तो पूरा घर युद्ध के मैदान सा हो गया है ।अभी तो प्रिया से अच्छी तरह बात चीत भी नहीं हुई है ।साड़ी का पल्लू कमर में खोंस वह उठी तो बेटे ने आवाज़ दी ” प्रिया के पापा ने कहा था कि रिशेपशन के दूसरे दिन प्रिया को लेकर उसे मायके पहुँचा दूं” ।पर बेटा,अभी तो मैंने नई बहु को ठीक से देखा भी नहीं ” ” देख लेना ना मम्मी ,वह इस घर की बहू बन गई है तो आखिर यहाँ ही रहेगी ना”? गायत्री को लगा था पहली बार हार गई है

अपनी मम्मी के हर बोल में साथ देने वाला बेटा आज दूसरे तरह से क्यो बोल रहा है ।उसने चुप चाप से साड़ी के किनारे से अपने आँसू पोंछ लिए ।यादोँ की सीढियां फलांगते दीख रहा था यही तो था उसका आज्ञाकारी बेटा राजेश।सब दिन अपने प्रति लापरवाही, अपनी इच्छाओं, अपने सुख का गला घोंटकर परिवार के सभी प्राणियों की जरूरतों पर न्योछावर होती रही ।बेटे की शादी के बाद पहली होली ।खूब तैयारी में जुट गई।




आज वह अपनी पसंद से ढेर सारे पकवान बनाकर खिलायेगी बेटे बहू को ।प्रिया क्या करेगी वह तो अभी नयी नयी है फिर तो उसे ही गृहस्थी संभालनी है ।कुछ दिन तो आराम कर ले।गायत्री व्यस्त है सुबह से ।तभी पति ने आवाज़ दी ” अरे भाई, आज चाय वाय मिलेगी या नहीँ ” देख रहा हूँ बेटे का ब्याह करके तो तुम मुझे ही भूलने लगी हो।अभी लाई।कहकर उसने चाय चढाई ।प्रिया, तुम जल्दी से नहा धो कर तैयार हो जाओ ।आज पूजा भी करना है कुल देवता की।प्रिया ने ध्यान नहीं दिया ।अनमनी सी बैठी रही ।” बात क्या है “?

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गायत्री ने पूछा ।राजेश और प्रिया दोनों चुप ।फिर गायत्री ने देखा, प्रिया अपने कपड़े अटैची में समेट रही है ।” बात यह है मम्मी, प्रिया पहली होली पर अपने मैके जाना चाहती है ” इसकी मम्मी ने कहा था कि शादी के बाद पहली होली मायके में होने चाहिए ।” गायत्री ने भी तो सोचा था  पहली होली पर बेटे बहू को खूब बना कर खिलायेगी।पर उसकी सोच का क्या ।बिना कहे भी परिवार के मन में आये बदलाव को शुरू से भांप जाती है वह।

बड़े शौक से दही बड़े और गुझिया  बनाये थे।राजेश को बहुत पसंद है यही सोचकर ।” बेटा, मैंने तुम्हारे पसंद के दही बड़े,गुझिया और गुलाब जामुन बनाये हैं ।खाकर शाम को चले जाना ” वह तकरार नहीं करना चाहती है ।” वह मै फिर खा लूँगा मम्मी ” प्रिया कह रही है, जब जाना ही है तो अभी क्यो नही?” समय का पहिया चलता रहा ।प्रिया हर बात में अपनी माँ का गुणगान करती और सास को नीचा दिखाने लगती।” आपने कैसी सब्जी बनाई है मम्मी? जीरे का स्वाद तो है ही नहीं ” मेरी माँ के हाथ का खायें गे तो हाथ चाटते रह जायेंगे ।” ओह! मम्मी का गुणगान! जाने दो बच्ची है अभी ।धीरे-धीरे समझ जायेगी ।अपने मन को समझा लिया ।राजेश की बदली पूना हो गई है ।




प्रिया भी साथ चली गई ।तीन महीने के बाद बेटे का फोन आया ” मम्मी आने की तैयारी कर लो,तुम दादी बनने वाली हो ” खुशी का ठिकाना नहीं था तब।” सुनिये जी, आप दादा बनने वाले हैं ” और मैं दादी ।कल से तैयारी करनी है ।बेटे की पसंद के मठरी,गोंद के लड्डू, नमकीन सब  बना देंगे ।टिकट हो गया है ।पति को समझा लिया ” आप समय पर दवा लेते रहियेगा।बसंती खाना बना देगी कुछ महीने की बात है ।उसे भी तो मेरी जरूरत है ।

” हाँ आप टेंशन मत लीजिए ।राजेश लेने तो आयेगा ही।आखिर बेटा है मेरा।गाड़ी समय पर पहुँच गयी ।गायत्री बहुत इन्तजार करती रही ।बेटे का कोई पता नहीं था ।फिर खुद ही आटो से घर पहुँची । बेटा सकपकाया ” बात यह थी मम्मी, प्रिया ने अपनी माँ को बुलाया है तो उनही को लेने चला गया था ।साॅरी मम्मी ।फिर आँसू क्यों छलक आए ।प्रिया अपनी माँ में लगी रहती ।गायत्री घर के काम में ।हर जगह अपना अस्तित्व खत्म हो गया है ।

अब वह जल्दी ही यहाँ से चली जायेगी ।बस बच्चे का आगमन ठीक से हो जाये।ठीक समय पर राजेश बेटे का पिता बन गया था ।एक महीने किसी तरह बीत गए ।गायत्री ने बेटे से कहा ” अब मै वापस जाना चाहती हूँ ।तुम्हारे पापा की तबियत भी ठीक नहीं रहती” ।और फिर बेटी के ब्याह की जिम्मेदारी भी तो उठानी है ।किसी ने रोक टोक नहीं किया ।वह वापस लौट गई ।रह कर भी पोते के पास कुछ नहीं कर सकती थी ।सब कुछ नानी के जिम्मे था ।

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कुछ दिन के बाद बेटी का ब्याह हो गया ।अच्छा घर वर मिल गया ।अब और क्या चाहिए ।उसकी  जिंदगी ठीक पटरी पर चलने लगी थी कि एक रात पति जो सोये तो फिर उठे ही नहीं ।बेटा बहू पंद्रह दिन आकर सारे काम निबटा गया ।किसी ने कोई जोर नहीं दिया साथ चलने को।अब वह अकेली है ।खुद का अस्तित्व मिटने नहीं देगी ।साथ घर के काम काज के लिए मंजू को रख लिया है ।गायत्री ने फिर से कलम  कागज थाम लिया है ।जीवन है तो परेशानी से क्या घबराना? यह अंत नहीं है ।”

 उमा वर्मा ” नोयेडा ।

मेरी यह रचना स्वरचित, मौलिक और अप्रसारित  है ।

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