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कमरे से कदम निकाला ही था कि रेखा ने आवाज लगाई,कहां जा रहीं हैं ,तो रीमा हंसते हुए कहीं नहीं बस दरवाजे तक।
नहीं ……… नहीं…….. चलिए अंदर कहीं नहीं जाना बहुत घूम चुकी ,कहते हुए सीढियों से उतर कर खुले गेट पर कुड़ी लगा दी।
और झटपट सीढ़ियों से चढ़ अपने कमरे में चली गई।दरअसल हुआ ये कि इधर दो वर्षों से आपसी रिश्ते काफ़ी उलझे हुए हैं ,उलझे ही नहीं बल्कि खत्म के कगार पर है।वैसे तो यही ने कई ऐसे मौके आए जब सुलझाने की कोशिश की पर हर बार उसे ऐसा लगा कि नहीं नहीं ये लोग रखना ही नहीं चाहते।वरना बैठ कर बात चीत जरूर करते।
किस घर में तकरार नहीं है पर वक्त के साथ सब कुछ ठीक हो जाता है और यहां तो बढ़ता ही जा रहा।
इन सबके बीच कुछ और नहीं बस मां की तड़प उसे ज्यादा बेचैन करती है वर्षों हो गए मिल बैठके बात किए।
अरे मिल बैठके बात करना तो दूर फोन भी ब्लाक है तो कोई हाल चाल नहीं मिलता।
रो रो के दिन रात बीतते हैं जो कि उसकी दिखानी से देखा नहीं जाता,हां दिखानी वर्षों हो गए शादी के फिर भी सब एक साथ ही रहते हैं जबकि सांस ससुर नहीं है।
अब आपसी समझ अच्छी है तो निभ रहा है।
वरना कहां आजकल निभता है।
बस इसी पर एक दिन जब इसे रोते हुए देखा तो उन्होंने कहा कैसे रह लेती है तुम्हारी अम्मा क्या उनको भी तुम्हारी याद नहीं आती तो ये और जोर जोर से रोने लगी फिर उन्होंने अपने ही मोबाइल से नम्बर मिलाकर मां से बात कराया।
जब उठा तो ये फूट फूट कर रोने लगी और रोते रोते सारी सच्चाई बताती।जिसे सुन उनके आंख पर पड़ा पर्दा उठ गया।
और कुंडी बंद करके जाने के बाद भी बाहर आके एक टक उस सड़क की तरफ निहारने लगीं जहां से कभी हफ्ता भी नहीं बीतने पाता था कि अपनों के आने की आहट से वो कभी खड़ी हुआ करती थीं।और आते ही घर भर जाया करता था। फिर घंटों साथ बिताने के बाद देर रात सब अपने अपने घर चले जाते थे।
पर अचानक आए ग़लतफहमियों के तुफ़ान ने सब तिनके की तरह बिखेर कर रख दिया।
सब कुछ एकाएक ऐसे खत्म हो गया कि कुछ समझने ही न पाई।
कहते हैं ना कि कुछ रिश्तों में नोक झोंक न हो तो मज़ा नहीं आता पर जब ये लड़ाई या शक जैसा विकराल रूप ले ले तो संभालना मुश्किल हो जाता है ।
वो भी तब जब फैसला एकतरफा हो ।
वहीं तो यहां भी हुआ।
चारित्रिक हनन का आरोप लगाकर आने जाने का रोक एक पर लगा ।
पर असर सभी रिश्तों में दिखने लगा।
और धीरे धीरे सबका आना जाना बंद हो गया।वक्त के साथ और सब तो सामान्य हो गया ,सब अपने अपने में मस्त रहने लगे पर वो रिश्ते जिन्हें खून से सींचकर बड़ा किया।
वो मुर्झाने नहीं बल्कि खत्म के कगार पर आ गए।
एक रोज यशी को पता चला राम उसका भाई बहुत बीमार है तो अननोन नम्बर से मां को फोन लगाकर हाल जानना चाहा।
इस पर मां फूट फूटकर रो पड़ी , और बोली इसमें किसी की कोई ग़लती नही है सिर्फ़ शक और ग़लतफहमियों के कारण रिश्तों में कड़वाहट आई , और सबसे बड़ी बात इन लोगों को रिश्ता ही नहीं रखना है वरना कई ऐसे मौके आए जब रिश्तों को सुधारा जा सकता है तब मां को भी थोड़ी थोड़ी बात समझ में आई
फिर अक्सर सालों बाद इन लोगों की बातें आपस में होने लगी।
ये देख उसके पति को फोन करके कहां गया कि कह दीजिए कि मां से बात न करें।
और मां से कहां गया कि अगर साथ रहकर रोटी खानी है तो बात करना बंद करदे।
इस पर उन्होंने कहा मुझे तुम लोगों की असलियत का पता चल गया है कि तुम लोगों को रिश्ता ही नहीं रखना इसलिए इस तरह का इल्ज़ाम लगाकर घर छुड़ा दिया।
और मेरा भी घर से निकलना किसी से मिलना बात करना बंद कर दिया।
अब मैं किसी की नहीं सुनुंगी ,मेरी उम्र अस्सी के पार हो रही है।पापा कि पेंशन मिलती है किसी की मोहताज नहीं हूं तुम्हारी रोटी हमें नहीं चाहिए ।हम बनाकर खा लेंगे।
कहती हुई वो दोबारा गेट खोलकर उस ओर गई जहां वर्षों पहले दिन में चार बार बात करने वाली बेटी खड़ी उसकी एक झलक पाने को बेचैन खड़ी थी।
स्वरचित
कंचन श्रीवास्तव आरज़ू