भरा-पूरा परिवार…एक-दूसरे की परवाह करने वाले लोग। थोड़े में ही खुश होने वाले… उपरवाले से डरनेवाले परिवार में भूचाल सा आ गया जब घर की बडी़ बहू ने अपने हिस्से की मांग की।
यह परिवार चार भाइयों और तीन बहनों का था। तीनों बहनों की शादी हो चुकी थी और वे अपनी घर-गृहस्थी में मस्त थी। पर्व त्यौहारों में बेटियां आती और मान-सम्मान पाकर खुशी खुशी अपने घर लौट जाती।
माता-पिता का हाथ सिर पर था। चारों बेटे अपने पिता के लकड़ी का कारोबार संभालते। बहुयें घर-गृहस्थी का। माता-पिता अपनी परवरिश और सुखी संसार के लिये अपने कुलदेवता का आभार जताते।
वैसे में बडी़ बहू का, “मेरा हिस्सा अलग कर दीजिए “कहना
किसी विस्फोट से कम न था।
” क्यों… क्या बात है, अभी हम जिंदा हैं, हमारे मरने के पश्चात स्वतः सारी संपत्ति के चार भाग हो जायेंगे”पिता ने समझाना चाहा।
बहू चुप रही। लेकिन पति के सामने रोना-धोना शुरु कर देती, ” अब मैं एकसाथ नहीं रह सकती, मुझे भी स्वतंत्रता चाहिये… अपनी इकलौती बेटी को अपने ढंग से अंग्रेजी स्कूल में पढाउंगी। “
” मना किसने किया है… पढाओ “पति खीझ उठा।
लेकिन “कलही नार बिपत्त की ओर “कहावत यहाँ चरितार्थ होने लगी।
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रोज-रोज के कलह का प्रभाव अन्य बहुओं पर भी पड़ने लगा और सभी बडी़ बहू के अलग होने की वकालत करने लगी।
” यह संपत्ति आज भी तुम्हारी है और कल भी तुम्हीं लोगों की होगी… इसके लिये कलह करना, कुतर्कों का सहारा लेना… हंसते खेलते घर परिवार को बरबाद करना… भला सही है ” सासुमां ने समझाना चाहा।
किंतु बात कुछ बनी नहीं।
आपस में कुछ विमर्श कर वृद्ध दंपति ने वकील बुलाकर सारी संपत्ति चार हिस्सों में करवा दिया। और एक बड़ा भाग मालिकाना हक… स्वयं पति-पत्नी के नाम रखवाया।
” सुनो हम कुछ दिनों तक अपने पुराने मकान में रहेंगे… तुमलोग अपने-अपने हिस्से का जी चाहा उपयोग करो। “
पिता के बात पर बेटे सोच में पड़़ गये, “यह कैसी अनहोनी, आपलोग यहीं रहेंगे… जिसको जाना है जाये। “
बहुयें भी सटक गई। वृद्ध सास-ससुर अपने पुराने घर में शिफ्ट कर गये।
बडी़ बहू अपनी जीत पर इतरा उठी। लेकिन छोटी बहू सपरिवार सास-ससुर के पास आ पहुंची।
” तुम यहाँ क्यों आई, जाओ अपने हिस्से में मौज से रहो “।
” नहीं मैं आपदोनों के बगैर नहीं रह सकती। “
समय बीतने लगा। धीरे-धीरे बडी बहू तथा अन्य बहुओं को अपनी गलती का अहसास होने लगा।
“अब अपने मनमर्जी ढंग से रहूंगी” बड़ी बहू अपनी मनमानी पर खुश हो रही थी।पति की मेहनत की कमाई बेकार के शापिंग और होटल के महंगे भोजन पर उड़ने लगा। बच्चे आलसी बेपरवाह मुंहफट हो चले थे।पति भी पत्नी के आचरण
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से नाराज़ तटस्थ ही रहता। पास-पड़ोस में जग-हंसाई होने लगी थी।
घर से अनुशासन, एकजुटता प्रेम सद्भाव तिरोहित हो गया था। होटल के खाने से घर वाले बीमार पड़ने लगे। जिस मस्ती के लिये सास-ससुर से संपत्ति बंटवाई वही हाथ से निकलने लगा।
अब बड़ी बहू को पछतावा होने लगा।कोई अन्य उपाय न देखकर वह पहले की व्यवस्था की वकालत करने लगी। फिर क्या था सभी एकजुट माता-पिता से माफी मांगने लगे, “जो सुख-शांति खुशी सबके साथ रहने में है वह अकेले में नहीं। “
“यही मै समझाना चाहता हूँ कि जो रिश्ता संपत्ति बचाने के लिए बनता है वह संपत्ति बांटने में स्वयं बंट जाता है। “
बहुओं को अपनी मूर्खता का भान हुआ।
मौलिक रचना- डाॅ उर्मिला सिन्हा
रांची, झारखंड
#जो रिश्ता संपत्ति बांटने के लिए बनाया जाता है वह संपत्ति बांटने में स्वयं बंट जाता है ।