असली बहन – रश्मि झा मिश्रा : Moral Stories in Hindi

बंटी दुकान पर जाकर बोला…” अंकल ₹50 की एक चॉकलेट दीजिए…!”

” पर बेटा ₹50 की तो नहीं है मेरे पास…!”

” अच्छा ₹40 की है…!”

” नहीं बेटा ₹20 की है…!”

” अच्छा तो दो दे दीजिए…!”

 चॉकलेट हाथ में लेकर बंटी बिना पैसे वापस लिए निकल गया… उसके पीछे से रीना आई…” चाचा आपने झूठ क्यों कहा… वह तो ₹10 की टॉफी थी ना…!”

” छोड़ो ना… तुम बताओ तुमको क्या लेना है…!”

” नहीं छोड़ना… पहले पैसे वापस करिए…!”

” अरे… तू क्यों हिसाब मांग रही है…!”

” भैया हैं मेरे…!”

” तेरा भैया कब से हो गया…!”

” आज से… आज रक्षाबंधन है ना… मैंने उसे राखी बांधी है… अब जल्दी से भैया के पैसे वापस करिए…!”

” यह ले…!” दुकानदार ने ₹20 का एक नोट उसकी तरफ बढ़ा दिया…

” ₹10 और…!”

” अब काहे के…!”

” अच्छा चाचा जी…₹ 50 में से दो ₹10 के टॉफी लिए तो ₹30 बचे ना… मुझे उल्लू मत समझना…!”

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” ले ले भाग यहां से…!”

” भागूंगी नहीं… मुझे भी खरीदना है… दो चिप्स… दो टाॅफी बड़ी वाली… और दो फ्रूटी… पूरे 50 के…!”

” यह लो… सब ठीक है ना…!”

” हां सब ठीक है…!” रीना सारा सामान और ₹30 लेकर सीधे बंटी के घर गई…

 सुभद्रा बूआ उसके पापा की दूर के रिश्ते की बहन थी… इस बार कई सालों बाद राखी पर गांव आई थी…उनके एक ही बेटा था… दस साल का बंटी… जब सुभद्रा ने अपने सभी भाइयों को राखी बांधी तो सबके हाथों पर राखी देख बंटी भी मचल पड़ा… “मां मुझे भी राखी बंधवाना… मेरी कोई बहन क्यों नहीं… मुझे भी बंधवाना…!”

 उसे मचलता देख नानी ने कहा…” रुक तो देख तेरी कितनी बहने हैं…!” देखते ही देखते टोल पड़ोस से लेकर घर तक की एक दर्जन बहनें निकल आईं… सबसे राखी बंधवाकर बंटी का मन तो खुशी से उछलने लगा… मगर अब बारी थी बहनों को नेग देने की… जब मां ने कहा कि…” बहनें तो बना ली… पर अब उन्हें गिफ्ट क्या देगा…!”

” गिफ्ट में क्या दूं…?” 

“अच्छा जी बहने हैं …मुफ्त में राखी नहीं बांधेंगी… नेग तो देना ही पड़ेगा…!” बोलते हुए सुभद्रा ने सभी को देने को ₹50 की गिन कर 12 नोट बंटी के हाथ में पकड़ा दिए… पर अब इतने सारे रुपए बांटकर बंटी का राखी प्रेम ठंडा पड़ गया था… सभी बहने चली गईं… रीना उन्हीं में से एक थी… सबके जाने के बाद बंटी ने मां से कहा कि…” मुझे भी ₹50 दो… सबको दिए तो मुझे भी चाहिए…!”

” पर तुम क्या करोगे… तुम्हारे पास तो सब है ही…!’

” मैं खुद से चॉकलेट खरीदूंगा… दो ना…!”

 सुभद्रा ने एक नोट उसे भी थमा दिया… जाते-जाते बंटी ने पूछा…” मां… पर इनमें मेरी असली बहन कौन है…!”

” सब तेरी बहन ही है…जो तेरी असली बहन होगी वह तू खुद समझ जाएगा… मेरा सर मत खा…!”

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 बंटी चला गया… और चॉकलेट लेकर खाता हुआ वापस आ गया… थोड़ी देर में पीछे से रीना भागती हुई आई… उसकी उम्र अभी 8 साल की थी पर हिसाब की एकदम पक्की थी… आते ही उसने पीछे से कहा…” भैया… यह लो तुम्हारे पैसे…!”

” मेरे पैसे… कैसे पैसे…!”

” अरे तुमने दुकान वाले चाचा जी को ज्यादा पैसे दे दिए थे… पूरे ₹30 ज्यादा… मैं लेकर आई हूं…!”

” सच में… मुझे तो पता भी नहीं चला…!”

 रीना ने पूरे ₹30 गिन कर बंटी के हाथ में रख दिए और जाने लगी तो बंटी बोला… “तुमने क्या लिया…!”

” मैंने तो यह सब लिया…!”

” वाह… इतना सब… मुझे भी खाना…!”

” अच्छा चलो… सब दो-दो हैं… तुम तो मेरे भाई हो ना… अब चलो हम मिलकर खाते हैं…!”

 बंटी और रीना ने मिलकर सब खत्म कर लिया… फिर बंटी बोला…” रीना यह रुपए तुम ही रख लो… मैंने तुम्हारा सारा सामान खा लिया…!”

” कोई बात नहीं भैया… अब तो तुम मेरे भैया हो ना…!”  

बंटी खुश हो गया… “इसका मतलब तुम ही मेरी असली बहन हो…पर ये ₹30 तो तुम ही रख लो…!”

“नहीं भैया…अभी नहीं…!” 

रीना तीन बहनें थी… उसका भी कोई अपना भाई नहीं था… इसलिए भाई पाकर वह भी बहुत खुश थी… उसके बाद बंटी जब तक गांव में रहा… पूरे समय रीना के साथ खेलते हुए बिताता…

 अगले साल सुभद्रा ने खुद फोन कर रीना से कहा… “बेटा… बंटी के लिए राखी भेज देना… वह बहुत खुश होगा…!”

” ठीक है बूआ… मैं जरूर भेजूंगी…!”

 तब से जो सिलसिला शुरू हुआ वह पूरे 15 सालों तक चलता रहा… बीच-बीच में एक दो बार बंटी गांव भी गया और रीना से राखी बंधवा कर आया… अब बंटी पूरे 25 साल का हो चुका था… एक बढ़िया सी नौकरी भी कर रहा था… 

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रक्षाबंधन आनेवाला था पर उसकी बहन की राखी अभी तक नहीं आई… वह रोज डाक का रास्ता देख रहा था… आखिर त्योहार से एक दिन पहले उसने रीना को फोन लगाया…” रीना इस बार मेरी राखी नहीं आई अभी तक… नाराज हो क्या…!”

 “नहीं भैया तुमसे क्या नाराज हूंगी… मैं तो अपनी किस्मत से नाराज हूं…!”

” क्यों ऐसा क्या हो गया…!”

” कुछ नहीं भैया…!”

” अरे बताओ ना… तुम्हें मेरी कसम…!”

” भैया कसम क्यों दे दी…!”

” अब बताओ जल्दी…!”

” भैया… पापा शादी करवाना चाहते हैं… पर मुझे वह लड़का पसंद नहीं… मुझे सुरेश पसंद है…पर वह अभी तक बेरोजगार है… इसलिए पापा उसके साथ मेरी शादी नहीं करवा रहे… हम दोनों बहुत दिनों से एक दूसरे को पसंद करते हैं… अगर उसकी नौकरी लग जाती… तब तो वह खुद सबको मना लेता… मगर लगता है अब कुछ नहीं हो सकता… अगले दो-तीन महीनों में पापा सब पक्का कर लेंगे… इन्हीं उलझनों में फंसकर राखी नहीं भेज पाई… माफ करना भैया… इस बार मेरे नाम की राखी तुम खुद खरीद कर बांध लेना… अगले साल से मैं फिर भेजूंगी…!” 

रीना से बात करने के बाद बंटी बहुत परेशान हो गया… उसने मामा जी से बात किया और सुरेश के लिए एक बढ़िया नौकरी का इंतजाम कर उससे मिलने चल पड़ा… उससे मिलकर उसका शालीन स्वभाव और विचार देखकर बंटी आस्वस्त हो गया… उसने सुरेश को काम पर लगवा दिया…

 उसके काम पर लग जाने से सारी समस्या हल हो गई… 3 महीने बाद बढ़िया मुहूर्त में रीना का ब्याह हो गया… शादी के बाद रीना ने बंटी के पैर छुए और कहा…” भैया आज तुम्हारे ही कारण मेरे जीवन में इतनी खुशियां आ पाई हैं… तुम दुनिया के बेस्ट भाई हो…!”

 बंटी ने रीना का हाथ थाम लिया और उन्हें अपने माथे से लगाकर कहा…” मैं बेस्ट हूं या नहीं… तू बेस्ट है मेरी बहन… आज 15 साल से मैं तेरे ₹30 के कर्ज के नीचे दबा हुआ था… पर आज तेरे लिए कुछ करके मेरे सर से वह बोझ हट गया… हमेशा खुश रहना… मेरी असली बहन…!”

 दोनों हंस कर एक दूसरे के गले लग गए…

स्वलिखित 

रश्मि झा मिश्रा 

#नाराज

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