अशांति – निभा राजीव “निर्वी” : Moral Stories in Hindi

दुल्हन बनी रचना सज संवरकर बैठी थी और 7 वर्षीय रोहन उसकी गोद में बैठा कभी उसकी चुनरी से खेल रहा था तो कभी कंगनों पर हाथ फेर रहा था। उसके हर्ष का पारावार नहीं था। उसके पापा उसके लिए प्यारी सी मांँ जो ले आए थे। माँ के प्यार को तरसता रोहन आनंद के अतिरेक से फूला नहीं समा रहा था।नन्हा रोहन गोद में ही सो गया था। रचना धीरे से उठी और उसे गोद में लेकर बिस्तर पर सुला दिया।           

                  रचना एक बहुत ही गरीब घर की लड़की थी और पांच बहनों में सबसे बड़ी पिता की मामूली से आय में जैसे तैसे सबका गुजारा चल रहा था! उसके पिता काफी लंबे समय से रचना के विवाह के लिए प्रयत्न कर रहे थे किंतु बाद लेनदेन पर आकर अटक जाती थी। अंत में किसी ने विनीत का रिश्ता सुझाया।

           एक विधुर थे विनीत। और उनका एक 6 वर्षीय पुत्र था रोहन। उनकी पहली पत्नी का देहांत रोहन के जन्म के समय ही हो चुका था। तब उन्होंने सोचा था कि वह अब कभी विवाह नहीं करेंगे और रोहन पर अपना संपूर्ण ध्यान और स्नेह देकर उसका पालन पोषण करेंगे, किंतु यह सब इतना आसान भी तो नहीं होता।

रोहन भी जब भी विद्यालय में अपनी साथियों से उनकी माँ की बातें सुनता तो उसका नन्हा सा हृदय विदीर्ण हो जाता। घर आकर पिता से लिपट जाता था,..”- पापा मेरी मां कब आएगी… मेरी मां कहां गई है।”

 जिसका विनीत के पास कोई उत्तर नहीं होता था।वह जैसे तैसे रोहन को समझा बुझा कर बात को टाल देते थे। लेकिन माँ की ममता के लिए तरसता रोहन का अबोध चेहरा देखकर उनका कलेजा मुंह को आ जाता था। फिर अपनी इकलौती बड़ी बहन सुजाता और सभी रिश्तेदारों के दबाव में और समझाने से वह दूसरे विवाह को तैयार हो गए। विनीत का सौम्य स्वभाव और उनकी संपन्नता देखकर रचना के पिता इस विवाह के लिए तैयार हो गए। 

                रचना को इस रिश्ते के बारे में पता चला तो उसके सारे कोमल सपने जैसे छन्न से टूट गए। हर लड़की की तरह उसने भी अपने भावी जीवनसाथी के लिए कई सपने सजाए थे। लेकिन अब वह एक विधुर की जीवन संगिनी बनने जा रही थी, जिसे पहले से ही एक पुत्र भी था। किंतु घर की परिस्थितियों और अपने पिता की विवशता को देखकर रचना ने इस विवाह के लिए अपनी सहमति दे दी। उसने हृदय पर पत्थर रखकर अब यह मान लिया कि शायद यही उसकी नियति है।

जल्दी ही वह विनीत की दुल्हन बनकर घर आ गई। उसने अपने भाग्य के साथ समझौता करके इस परिवार को हृदय से अपना लिया। उसने मन ही मन यह निश्चय कर लिया कि वह विनीत के इस घर को प्रेम की सुरभि से महका देगी और नन्हे रोहन की स्नेहिल और ममतामई माँ बनकर उसकी माँ की कमी को दूर कर देगी और संपूर्ण ममत्व उस‌पर लुटा देगी। रोहन भी उसे देखकर बहुत प्रसन्न था। लेकिन रचना की इकलौती ननद विनीत की बड़ी बहन सुजाता पूरे विवाह उत्सव के दौरान

उखड़ी उखड़ी और खिंची खिंची रही। रचना उनके मनोभावों को समझ रही थी कि शायद वह अपनी पहली भाभी को भुला नहीं पा रही इसलिए उसका व्यवहार ऐसा है। रचना का गृह प्रवेश होते ही रोहन उससे लिपट गया, “-मेरी मां आ गई.. अब मैं भी अपने सब दोस्तों को दिखा दूंगा कि मेरी भी माँ है… मेरी प्यारी सी माँ…”

उसकी इस‌ अबोधता और स्नेह पर रचना का मन ममता से भर गया। उसने भी रोहन को प्यार से उठाकर गोद में ले लिया।  

     विवाह की पहली रात गुड़ी मुड़ी सी रचना दुल्हन बनी सिमट कर बैठी थी और विनीत जी की प्रतीक्षा कर रही थी। कुछ देर के बाद विनीत जी आए और उसके बगल में बैठते हुए बहुत गंभीर स्वर में कहा, “- देखो रचना, मैं जो कहने जा रहा हूँ उसे गौर से सुनना…. मैंने यह विवाह केवल और केवल रोहन के लिए किया है क्योंकि उसे माँ का प्रेम चाहिए था। मैं अपनी पहली पत्नी से बहुत प्रेम करता था और अभी भी बहुत प्रेम करता हूं

और उसे भूल पाना मेरे लिए संभव नहीं है। मुझे क्षमा करना, मैं तुम्हें पत्नी का स्थान नहीं दे सकता लेकिन यह वचन देता हूं कि मैं तुम्हारी हर सुख सुविधा का ध्यान रखूंगा और तुम पर कोई आँच नहीं आने दूंगा। चलो अब तुम सो जाओ… बहुत रात हो चुकी है..’ यह कहकर उन्होंने पलंग पर से तकिया उठाया और सोफे पर जाकर सो गए। रचना का हृदय जैसे बैठ गया। एक बार को जी किया कि सब कुछ छोड़कर चली जाए

अपने मायके.. जब पत्नी का स्थान मिल ही नहीं सकता तो फिर काहे का विवाह!!! मगर फिर आंखों के समक्ष माता और पिता का कातर चेहरा घूम गया जिन्होंने कितनी कठिनता से उसका विवाह किया था। चारों छोटी बहनों का चेहरा कौंध गया.. शायद उसके मायके लौट जाने के बाद कोई उनसे विवाह करने में भी कतराता..

आँसू पोंछ कर उसने भारी हृदय से इसे भी नियति मानकर स्वीकार कर लिया। विवाह के दूसरे ही दिन ननद सुजाता भी जाने को तैयार हो गई। विनीत जी ने कहा भी एक-दो दिन ठहर जाने को मगर वह कुछ आवश्यक कार्य की बात कह कर चली गई।

                   समय अपनी गति से चलता रहा। रचना के विवाह को चार महीने हो चुके थे। उसने अपनी परिपक्वता, स्नेह और समझदारी से पूरे घर को स्नेह के एक सूत्र में बांध दिया था और नन्हा रोहन.. उसको तो जैसे खुशियों का सागर मिल गया था। माँ के हाथ से खाना.. माँ से कहानी सुनकर सोना. मां के हाथों से तैयार होकर विद्यालय जाना..

रचना को पूर्णरूपेण उसने अपनी मांँ के रूप में स्वीकार कर लिया था और रचना भी उसे इतना स्नेह करने लगी थी कि उसे लगता ही नहीं था कि रोहन उसका कोखजाया पुत्र नहीं है। उसका दिन तो किसी प्रकार रोहन के साथ बीत जाता था, विनीत जी भी हर प्रकार से उसका ध्यान रखते थे,पर रात को विनीत जी का कमरे में आकर और तकिया उठाकर सोफे पर सो जाना

उसके हृदय के सहस्रों खंड कर देता था। परंतु रचना अपनी ओर से विनीत जी का हृदय जीतने के प्रयास में लगी रहती थी। उनके बिना बोले उनके सारे कार्य करना.. उनकी आवश्यकता की सभी वस्तुएं उनके कहे बिना सामने रख देना.. उनके पसंद का भोजन बनाना। परंतु विनीत जी अभी तक उसे पत्नी के रूप में स्वीकार नहीं कर पाए थे। 

                एक दिन छुट्टी का दिन था और विनीत जी घर में ही थे तो उठने में देर हो गई और जब वह कमरे से निकले तो रचना चौड़े लाल बॉर्डर की पीली साड़ी में सिर पर पल्लू रखे हुए हाथ में पूजा का थाल थामे हुए तुलसी में जल अर्पित करने जा रही थी। विनीत जी उसका यह सौम्य रूप देखते ही रह गए। अचानक रचना की दृष्टि उनके ऊपर पड़ गई तो उन्होंने अपनी दृष्टि तुरंत फेर ली।

मगर उस एक पल में ही रचना ने उनकी दृष्टि में अपने लिए प्रशंसा के भाव पढ़ लिए थे। उसका हृदय आज खुशी से झूम उठा। शायद सफलता की ओर यह पहला कदम था। नाश्ते के बाद वह रोहन के साथ खेलने लगी तो दूर बैठे विनीत जी भी उन दोनों को देखकर मंद मंद मुस्कुराने लगे। उनको यूं मुस्कुराते देखकर रोहन ने उनका हाथ पकड़ कर खींच लिया

और मचलते हुए कहा, “-आइए ना पापा, आप भी हमारे साथ खेलिए ना.. ” विनीत न नहीं कर सके और तीनों का बहुत प्यारा सा समय गुजरा। आज विनीत जी के चेहरे पर भी अलग ही चमक थी।

              अगले दिन भी विनीत के कार्यालय जाने के बाद भी रचना पुलकित हुई सी घर में फिर रही थी। शाम को विनीत जी घर आए तो उसने जब चाय नाश्ता उनकी ओर बढ़ाया तो विनीत जी ने कहा, “- आज ऑफिस में काम बहुत ज्यादा था। बहुत थक गया हूं। यह नया बॉस आया है तो अभी शायद हम लोगों को कुछ दिन ज्यादा काम करना पड़ेगा ताकि एक दूसरे के साथ सामंजस्य स्थापित हो सके।” रचना को बहुत अच्छा लगा पहली बार विनीत जी ने अपनी कुछ बातें उसके साथ साझा की थी। 

             विनीत में आने वाले बदलाव को अनुभव कर अब रचना भी खिली खिली सी रहने लगी थी। 

एक दिन कार्यालय में कुछ ज्यादा काम था शायद तो विनीत काफी थके हुए थे। उन्होंने रचना से कहकर खाना भी जल्दी खाया और कमरे में चले गए। रचना जब तक रसोई का काम समेट कर कमरे में पहुंची तो देखा कि विनीत पलंग पर ही सो चुके हैं। वह कुछ देर तक तो उलझन का भाव लिए खड़ी रही, फिर उसने धीरे से तकिया उठाया और सोफे की तरफ बढ़ने लगी तो विनीत जी ने आहट पाकर आंखें खोल कर कहा,

“- कोई बात नहीं है रचना.. उस तरफ से तुम सो जाओ।”

 रचना आश्चर्य मिश्रित ख़ुशी से उनका चेहरा देखती ही रह गई। विनीत शीघ्र ही फिर सो गए पर रचना को जैसे खुशी के मारे नींद‌ ही न आ रही हो। 

                 सुबह विनीत के कार्यालय जाने के समय में जब रचना ने टिफिन पकड़ाया तो वह बोले, “- अरे हां रचना, मैं तुमसे कहना ही भूल गया। अभी कुछ देर पहले दीदी का फोन आया था। वह कल 10-12 दिनों के लिए यहां आ रही है। कल शाम तक वह यहां पहुंच जाएगी। तुम उनके रहने का अच्छे से प्रबंध कर देना।चलो अब मैं चलता हूं मुझे देर हो रही है…” कहकर विनीत निकल गए।  

             दूसरे दिन सुजाता दीदी आ चुकी थी। रचना बहुत मन से उनके स्वागत में लगी हुई थी पर अभी तक उन्होंने एक बार भी रचना को नहीं टोका वह बस रोहन और विनीत से बातें करते जा रही थी। रचना थोड़ी आहत तो हुई लेकिन फिर उसने मुस्कुरा कर अपने मन को समझा लिया और कामों में लग गई। खाना खाने के लिए सबको बुलाने आ ही रही थी तो उसने सुना कि सुजाता दीदी विनीत से कह रही थी,”- अरे तूने घर का सेटअप क्यों चेंज कर लिया है? “

विनीत ने शांत भाव से कहा, “-दीदी, सब की सुविधा के अनुसार रचना ने थोड़े बहुत बदलाव कर लिए हैं।” 

“- अरे बड़ा भोला है तू…इसकी चिकनी चुपड़ी बातों में मत आ। वरना यह सब कुछ धीरे-धीरे अपने हाथ में लेकर कब्जे में ले लेगी… मुंह देखता रह जाएगा तू। मैंने तो तुझे कहा ही था कि मेरी सहेली की ननद से विवाह कर ले.. अरे तलाकशुदा है तो क्या हुआ कितनी दौलत है उसके पास!!” सुजाता दीदी फुसफुसायी।

इस पर विनीत थोड़ा चिढ़कर बोल उठे, “- तुम भी क्या बातें लेकर बैठ जाती हो दीदी.. पहली बात कि मैं तुम्हारी सहेली की ननद से विवाह नहीं करना चाहता था क्योंकि उसका स्वभाव वैसे ही थोड़ा उग्र है और वह बहुत आजादी पसंद है। वह सिर्फ अपनी मनमर्जियों से जीना जानती है। ‌पर मुझे ऐसी लड़की चाहिए थी

जो मेरे घर परिवार को बाँध कर रख सके… ऐसे में रचना मुझे बहुत पसंद आई इसीलिए मैंने इस विवाह के लिए हामी भरी और सचमुच में उसने आते ही पूरे घर को संभाल लिया।”

“-अरे तू देख लेना वह तुझे कहीं का नहीं छोड़ेगी..”सुजाता दीदी ने वाणी में विष घोलकर कहा।

तब तक रचना पर दृष्टि पड़ते हुए दोनों चुप हो गए। रचना का हृदय रो गया, फिर भी रचना ने कुछ नहीं कहा और सबको खाने के लिए बुला लिया। सबको बड़े प्रेम से खाना परोसा और रोहन को अपने हाथ से खिलाने लगी।

सुजाता दीदी ने तुरंत टोका, “- रोहन, इधर आ बेटा.. मैं तुझे खिला दूं..”

 रोहन ने तुरंत मासूमियत से कहा, “-नहीं बुआ मैं तो माँ के हाथ से खाऊंगा..”

सुजाता दीदी ने प्रत्यक्ष मेंकुछ कहा तो नहीं पर बिल्कुल जल भुन गई। विनीत मुस्कुरा कर रह गए। 

अब हर दिन का यही हो गया था दीदी अवसर मिलते ही विषवमन करके रोहन को और विनीत को उससे दूर करने का प्रयास करती रहती थी। रचना सब कुछ जान समझ कर भी शांत रहने का प्रयास करती रहती थी। वह विनीत जी की बड़ी बहन थी, इस नाते वो लिहाज करके चुप रह जाती थी। 

                    उस दिन दूध खत्म हो गया था और घर में दूध नहीं था। विनीत जी के आने का समय होता जा रहा था। उनके आने पर उनके लिए चाय बनाने के लिए भी दूध नहीं था तो रचना दूध लेने के लिए दीदी से कहकर बाजार की तरफ निकल गई। जब वह वापस आई तो उसने देखा कि सुजाता दीदी ने रोहन को गोद में बिठाया हुआ है

और उसे समझाने का प्रयत्न कर रही है, “- बेटा यह जो तू माँ-माँ करके जिसके पीछे पड़ा रहता है ना यह तेरी माँ नहीं है। यह चुड़ैल है। यह किसी दिन मार डालेगी तुझे… यह तेरी सौते…”

          रचना आपे से बाहर हो गई, वह वहीं से चीख पड़ी, “-बस कीजिए दीदी.. आपने जो कुछ भी कहा और किया, मैं इतने दिनों से बर्दाश्त कर रही हूं पर आज आप मेरे बेटे को मेरे विरुद्ध भड़का रही है.. मैं सब कुछ सहन कर लूंगी लेकिन कोई मेरे बेटे की मासूमियत और उसके अबोध मन को चोट पहुंचाए यह मैं कतई सहन नहीं कर सकती.. दोबारा ऐसा करने का सोचिएगा भी मत… वरना अब मैं लिहाज नहीं रख पाऊंगी..”

सुजाता दीदी जैसे गुस्से से पागल हो गई। उन्होंने रोहन को गोद से उतार दिया और चीख कर बोली, “- तेरी हिम्मत कैसे हुई मुझसे ऐसी बात करने की…अरे भिखारियों के खानदान की लड़की है तू…यहां आकर तेरे पर निकल आए हैं… मैं चाहूं तो दो मिनट में तुझे इस घर से बाहर निकलवा दूं अपने भाई से कहकर… रुक जा..अभी तेरा दिमाग ठिकाने लगाती हूं…”

 उन्होंने आगे बढ़कर रचना को तमाचा मारने के लिए हाथ उठाया ही था तब तक पीछे से विनीत जी आ गए और उन्होंने झट से दीदी का उठा हुआ हाथ पकड़ लिया। हाथ बढ़ाकर उन्होंने रचना को अपनी तरफ खींच कर बाहों के‌ घेरे में थाम लिया और बोले, “-दीदी, तुम जब से आई हो केवल जहर ही उगल रही हो… अपने भाई का हंसता खेलता घर क्या तुमसे सहन नहीं होता..??? यह सब क्यों कर रही हो सिर्फ इसलिए क्योंकि मैंने तुम्हारी

बात मानकर तुम्हारी पसंद की लड़की से विवाह नहीं किया?? अरे क्यों करता मैं उससे विवाह? जीवन मुझे बिताना है तुम्हें नहीं! मैं सोचूंगा कि मुझे किसके साथ रहना है किसके साथ नहीं! मुझे तो जो कहती थी, कहती थी.. आज तो तुमने रोहन को भी नहीं छोड़ा! उसके बालमन में भी अपनी मांँ के विरुद्ध विषबेल बो रही हो और मैं ऐसा होने नहीं दूंगा। मेरे होते हुए कोई मेरी पत्नी पर उंगली भी उठाए, मैं सहन नहीं कर सकता। मत भूलो कि

रचना मेरी पत्नी है और मैं बहुत प्रसन्न हूं अपने संसार में!! तुम अपने भाई के पास आई हो, यह बहुत प्रसन्नता की बात है। खुशी-खुशी रहो और अच्छी यादें यहां से लेकर जाओ। ईश्वर के लिए यह अशांति और गंदगी यहां मत फैलाओ..””

दीदी विस्फारित नेत्रों से विनीत जी की ओर देखती रह गई। फिर धीमे कदमों से अपने कमरे में चली गई। विनीत ने रचना को अपने वक्ष से लगा लिया। आज रचना को पूरा संसार मिल गया। आज विनीत जी ने उसे अपनी पत्नी का स्थान दे दिया… हर्ष के अतिरेक से आंखों से बहते हुए प्रेमाश्रु विनीत जी की कमीज भिगोने लगे। विनीत जी ने झुक कर उसकी पलकें चूम लीं। नन्हा रोहन आकर रचना के पैरों से लिपट गया तो दोनों हंस पड़े।

निभा राजीव “निर्वी”

सिंदरी धनबाद झारखंड 

स्वरचित और मौलिक रचना

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