आशा की किरण – पुष्पा जोशी : Moral Stories in Hindi

पूरे जीवन काल में कठिन परिश्रम करने वाली, कभी नहीं थकने वाली, हमेशा हॅंसकर हर बाधाओं को पार करने वाली,

पार्वती की  ऑंखों में, आज पहली बार ऑंसुओं का सैलाब उमड़ रहा था।उसे लग रहा था, कोई नहीं है जिसे वह अपना कह सके।

भरी जवानी में पति का स्वर्गवास हो गया। बेटे चन्दू के सहारे अब तक जीती रही। दिन रात मेहनत मजदूरी करके उसने बड़ी मुश्किल से उसका लालन पालन किया,

पढ़ाया लिखाया ताकि अच्छी नौकरी कर सके, उसका जीवन सुखमय हो। कई बार बेटे को भरपेट खाना खिला कर खुद भूखी रह जाती।

उसकी तपस्या सफल हुई। एक विद्यालय में चन्दू की क्लर्क की नौकरी लग गई। उसने एक अच्छी लड़की देखकर उसका विवाह भी कर दिया

सोचा, कि वह अब सारी जिम्मेदारी से मुक्त हो गई है, आराम से रहेगी। मगर…. यह क्या? बेटे के तो तैवर ही बदल गए, वह बोला

– ‘माँ अब मैं यहाँ नहीं रह सकता, मीनू को यहाँ रहने में तकलीफ हो रही है, मैंने विद्यालय के पास एक मकान देख लिया है,

अब से हम दोनों वहीं रहेंगे।’  ‘और मैं? प्रश्न पूछना चाहती थी, पार्वती मगर मौन रही। अब तक तो जैसे जैसे जीवन निकाल लिया,

मगर मैं मीनू को परेशानी में नहीं देख सकता।’ ‘और मुझे?’ प्रश्न कण्ठ में ही अटक गया।’  ‘माँ वह मेरी पत्नी है, उसके प्रति मेरे भी कुछ कर्तव्य है।

‘  ‘और मेरे प्रति तुम्हारे कर्तव्य?’ सारे प्रश्न पार्वती के मन में ही उठे थे, वह कुछ भी नहीं कह पाई। बस चन्दू का कहा हर वाक्य उसके दिल को छलनी करता रहा।

आज चन्दू मीनू को लेकर चला गया। पार्वती ने उसे नहीं रोका, मगर अपने ऑंखों से बहते ऑंसुओं को वह रोक नहीं पा रही थी।

ऑंखों से ऑंसू के बह जाने पर मन कुछ हल्का हुआ। एक भाव मन में आया अब तक चन्दू की खुशी के लिए जीती थी, अब अपने लिए जीऊँगी।

पहले भी मेहनत से कमाती थी, अब भी कमाऊंगी। उसकी चिन्ता में कभी मंदिर भी नहीं गई। अब अपना मन ईश्वर भजन में लगाऊँगी।

पार्वती के मन से उदासी के बादल छटने लगे थे, और मन में फिर नई आशा की किरण ने प्रवेश कर लिया था।

प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित

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