अरमान निकालना – डाॅ संजु झा : Moral Stories in Hindi

सुधा का वर्षों पूर्व अरमान अपना घर का सपना आज पूरा होने जा रहा था अपने अरमान पूरे होने के कारण हर्षातिरेक से सुधा के पैर जमीं पर नहीं पड़ रहे हैं ।बेटा -बहू गृहप्रवेश की पूजा पर बैठे हुए हैं। पंडित जी की मंत्रोच्चार की ध्वनि वातावरण में पवित्रता का एहसास करा रही है।

सुधा बड़े उत्साह से गृहप्रवेश में आऍं अतिथियों का स्वागत -सत्कार कर रही है। रह-रहकर पति की यादों से उसकी ऑंखों के कोर अनायास ही भींग उठते हैं।पूजा में बैठे बेटे-बहू को देखकर वह भाव-विह्वल हो उठती है।उसे विश्वास नहीं होता है कि उसके अरमान पूरे होने जा रहे हैं।

पूजा के पास ऑंख बंद कर बैठी सुधा का मन अतीत में विचरण करने लगता है।सुधा ने भी शादी के बाद अपने घर का सपना देखा था। पति -पत्नी के मन में अपने छोटे -से आशियाने का अरमान था।इसी सपने को साकार करने के लिए उसके पति नवीन ने एक छोटा-सा जमीन का प्लाॅट खरीदा।

दोनों पति-पत्नी का मानना था कि बिल्डिंग्स में अपने घर का एहसास नहीं होता है।सुधा के पति वकील थे।कमाई बहुत ज्यादा नहीं थी, फिर भी अपने अरमान पूरे करने के लिए बैंक से लोन लिया।घर बनवाने का उत्साह नवीन में देखते ही बनता था। उसने ईंट,बालू सीमेंट,सरिया और बहुत सारा सामान एक साथ ही जमीन पर गिरवा लिया था।

सुधा ने मना करते  हुए कहा भी था -“एक ही बार इतना सामान क्यों गिरवा रहे हो?”

प्रत्युत्तर में हॅंसते हुए नवीन ने कहा था -“सुधा!देखना,घर का काम शुरू होते ही ये सामान कितनी जल्द खत्म हो जाएंगे।उसे याद है कि जिस दिन उसके घर का भूमि-पूजन होनेवाला था,उस दिन नवीन कितने उत्साहित थे।ऐसा महसूस हो रहा था कि  उसी दिन नवीन अपने मन के सारे अरमान निकालना चाहते थे।

पूजा के लिए पहनी हुई पीली धोती में नवीन का चेहरा दूल्हे की भाॅति दमक रहा था।वह खुद भी तो लाल चुनरी में दुल्हन लग रही थी। पंडितजी ने बड़े ही पवित्र मंत्रोच्चार के साथ मकान की नींव की पूजा करवाई।तीन साल का उसका बेटा रवि कौतूहलवश सब कुछ देख रहा था।

अगले दिन से मकान बनने का काम आरंभ हो गया।सब कुछ अच्छा चल रहा था। अचानक से आई एक कालीऑंधी से उसका जीवन क्षत-विक्षत हो गया। मकान शुरू होने के एक सप्ताह के अंदर ही कचहरी से लौटते हुए सड़क दुर्घटना में नवीन की मौत हो गई। अकल्पनीय भीषण हादसा से वह पत्थर बन गई।

उसके दिल में दर्द भरी सिसकियों ने घर कर लिया।उसे कोई सुधि नहीं थी।उसके पिता उसे और उसके बेटे को अपने पास ले गए।पति की याद में उसकी ऑंखों का समंदर बार-बार छलक उठा।ऐसी विपदा की घड़ी में मकान बनवाने की किसे सुधि थी ? जबतक सॅंभल पाती तब तक लोग घर बनवाने के सारे सामान लूटकर ले जा चुके थे।अब उसका मन घर बनवाने को लेकर विरक्त हो चुका था।अब उसकी प्राथमिकता बेटे रवि की पढ़ाई हो गई थी।

पढ़ -लिखकर जब रवि काबिल बन गया,तो एक बार फिर से अपना घर का अरमान उसके अंतर्मन में कुलबुलाने लगा। बचपन से ही रवि माॅं के अधूरे अरमान को महसूस करता था।नौकरी के कुछ वर्षों बाद रवि ने अपनी माॅं के जन्म-दिन पर घर गिफ्ट किया।अपना घर का सपना पूरे होने पर सुधा अपने दिल के सारे अरमान निकाल लेना चाहती थी। पंडितजी की आवाज से वह यादों की दुनियाॅं से बाहर आ गई।

पंडितजी सभी को आरती के लिए खड़े होने का निर्देश दे रहे थे।सुधा झट से हाथ में आरती थाली लेकर मग्न होकर आरती गाने लगती है।माॅं के तृप्त और संतुष्ट चेहरे को रवि मग्न होकर निहार रहा था।सुधा अपने वर्षों पूर्व अधूरे अरमान के पूरे होने के कारण अनोखे एहसास को महसूस कर रही थी। उसके मरुभूमि रूपी जीवन में अचानक से खुशियों की बरसात हो गई।उसका मन भयंकर ऑंधी -तूफान के बाद आई शांति -सा   महसूस कर रहा था।हर्षातिरेक में उसने अपने बेटे-बहू और पोते को सीने से लगा लिया।

हॅंसकर उसके बेटे रवि ने पूछा -“माॅं!अभी भी  आपके कोई अरमान निकालने बाकी हैं,तो बता दो। मैं उन्हें पूरा करने  की कोशिश करुॅंगा।”

सुधा जी -” बेटा! हम सपरिवार एक साथ घर में खुशी-खुशी रहें,बस यही अरमान बाकी है!”

सभी सुधा की ओर देखकर खुशी से मुस्कराते हैं।

समाप्त।

लेखिक-डाॅ संजु झा. स्वरचित.

हावरा व कहावतों की लघु-कथा प्रतियोगिता (15-21फरवरी)

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