अपराध बोध – शिव कुमारी शुक्ला  : Moral Stories in Hindi

भरोसी एवं मीना सेठ भगवान दास के यहाँ कार्य  करते थे । भरोसी पौधों  एवं लान की देखभाल करता मीना घरेलु कार्य करती। उनके दो बच्चे थे  गीता एवं आकाश। गीता तो बड़ी थी करीब  दस साल की सो मां के साथ काम करवाती किन्तु आकाश छोटा था करीब सात साल का सो बैठे-बैठे सबको काम करते देखता।  

रोज तो स्कूल जाता कभी कभी पापा की मदद  के  लिए  आगे आता। वह सेठ जी की आलीशान  कोठी उसमे सजे मंहगे – मंहगे सामानों को देखता सोचता कि में भी बड़े होकर ऐसा ही घर  लूंगा ऐसा ही सजाऊंगा। मां बापू को आराम से रखूंगा कोई काम नहीं करने दूंगा।

 पढ़ने में कुशाग्र बुद्धि था सो अच्छे नम्बरों से  पास होता ।सेठ जी भी दया कर उसे शिक्षण सामग्री,  ड्रेस, फीसआदि से मदद कर देते। सब वहीं बने सर्वेंट क्वार्टर में रहते थे। कभी-कभी गलती हो जाने पर सेठ जी बापू को सेठानी जी मां या बहन को  डांटते तो उसे बड़ा बुरा लगता। वह सोचता  कब  मैं बडा होऊंगा और वह और ज्यादा  दृढ़ संकल्प से पढ़ाई में जुट जाता।

समयांतर  बाद  उसने आई  आई टी कर ली  और उसका कैम्पस में  मल्टीनैशनल  कम्पनी में अच्छे पैकेज पर सिलेक्शन हो गय । अब तो पूरे परिवार की खुशी का ठिकाना नहीं था। सोचते दुख भरे दिन बीत गये । अब जिन्दगी में चैन,सुकून आयेगा। भर पेट अच्छा भोजन  मिलेगा इस बीच वे बेटी की शादी कर चुके थे। आकाश अपनी कल्पना का घर ले सजाना चाहता था । पर यह इतना आसान नहीं था।

तभी उसके साथ काम करने वाली एक कलीग को वह  पंसद आ गया। वह उससे शादी करना चाहती थी। किन्तु जब उसके परिवार के बारे में पता लगा कि वह एक धनाढ्य परिवार की इकलौती संतान है तो वह पीछे  हट गया। उसने साफ अपनी और अपने  घर की स्थिति बता दी। किन्तु निमिषा  हर  हाल में उससे शादी  करना चाहती थी,

सो उसने अपने  माता-पिता  को भी समझा कर राजी किया वे भी इस बेमेल रिश्ते के खिलाफ थे किन्तु  वे भी बेटी की जिद के आगे झुक गये अब  आकाश को समझा बुझाकर, प्रलोभन देकर  राजी कर लिया। आकाश ने भी अपनी  अती महात्वाकांक्षा पूरी होते देख थोडे सोच विचार के बाद हां कर दी। 

शहर में ही उसकी शादी हो गई। उसके माता-पिता केवल तमाशबीन की तरह बेठे रहे और शादी के दूसरे दिन ही वापस चले गए । अब आकाश का बडे घर का सपना पूरा  हो गया। घर भी उसकी इच्छानुसार सज गया। अब उसने सोचा मम्मी-पापा को बुला  लूं वे भी आराम से रहेंगे। किन्तु निमिषा थोडी तटस्थ थी।

आकाश ने माँ पापा को बुलाया। वे बेचारे अपनी अपनी पोटली मे दो-चार कपडे डाल कर आ गये। घुटनों तक धोती, कुर्ता टोपी और गमछा डाले उसके बापू और साधारण सी सूती साड़ी ऊँची से बाँधे सिर पर पल्लू ढके मां घिसे से जूते चप्पल पॉव में ,दरवाजेआ खड़े हुए। डोरवेल बजाने पर नौकर ने दरवाजा खोला और बोला आपको किससे मिलना है।

हमाओ बेटा रहत है यहां ओही से मिलन आवे रहे ।

यह सुन कर वह हंसा क्या कहा आपका बेटा और यहां।

तब तक आकाश भी वहां पहुंच माँ-पापा के चरण स्पर्श कर उन्हें सम्मान पूर्वक अन्दर ले आया। किन्तु वे इतने सुन्दर कालीन पर पैर रखने से झिझक रहे थे। वह उन्हें सोफे  पर  बैठाते बोला आप लोग यहाँ आराम से बैठिये। जैसे ही वे  सोफे पर बैठे वह इतना मुलायम था कि वे उसके अन्दर धंस गये।

उनके कपड़ों की पोटली अभी भी उनके  हाथों मे थी। आकाश ने नौकर को आवाज लगाई उनके हाथों से  पोटलियां लेकर उसे देते  बोला जाओ उन्हें पीछे वाले गेस्टरूम में रख  दो  और  चाय नाश्ता ले आओ। 

बहुरिया नहीं है क्या ।

माँ  वो अभी जिम गई है आती होगी।

 जिम वो का होवे है बिटवा ।

माँ कसरत करने। 

उन्हें अचम्भा हुआ यह सुनकर कि बहू कसरत करती है  पर चुप  रहीं। पहला झटका।

 चाय पीने के  बाद आकाश उन्हें उनके कमरे में  ले गया। सुसज्जित कमरा। बढीया बैड उस पर बैठते हो यहाँ भी वे गद्दे  में धंस गये ।जिस करवट लेटें उधर  ही गद्दा  दब जाये। उन्हें बड़ा असुविधा जनक लगा पर चुप रहे। 

 आकाश बोला अपने कपडे इस अलमारी में लगा दो और नहाना  बगैरा कर आराम करें। कह वह चला गया । नाश्ता-खाना  सब कमरे में  ही आ जाता। किसी चीज की  कमी नहीं थी। निमिषा जिम से आकर उनसे  मिलने आई। जींस  टॉप पहने बहू ने आकर नमस्ते माम- डैड बोला तो वे हक्के-बक्के रह गए।

फिर मां ने आगे बढ़  निमिषा को जैसे ही गले लगाना चाहा वह दो कदम पीछे हट गई रहने दीजिए दूसरा झटका  लगा फिर माँ ने अपने बटुये से दो कंगन निकाल निमिषा  के हाथ पर रखते हुए कहा बहुरिया ये हमाइ तरफ से आशीर्वाद है पहनो। इसकी क्या  जरूरत थी माम में ये सब नहीं पहनती।

कंगन जैसे मीना जी को मुंह चिढ़ा रहे थे।  उन्होंने बापस रख  लिए। तीसरा झटका लगा ।  निमिषा के जाने के बाद वे एक दूसरे का मुँह  देख रहे थे वोल भी नहीं पा रहे थे जैसे एक  सदमा  सा लग गया बहू के व्यवहार से। 

उन्हें यहां रहते सप्ताह बीत गया। उनके आराम में यहाँ कोई कमी नहीं थी। कमरे में ही सबकुछ मिल जाता। चाय ,नाश्ता दूध, फल किन्तु नहीं मिलता तो अपनों का साथ, अपनापन। वे उखडे -उखडे से रहने लगे। अब उनका मन नहीं लग रहा था। आकाश  केवल दो बार पाँच मिनट  के लिए यह पूछ कैसे हैंआप लोग,

कोई परेशानी  तो नहीं, बिना उत्तर सुने ही चला गया ।बहू की तो शक्ल भी नहीं दिखी।  एक दिन घर में  बहुत शोर शराबा हो रहा थाी ।  ऐसा लगता था कि कोई बडी पार्टी हो रही है। किन्तु उन्हें कमरे से बाहर आने की  इजाजत नहीं थी। तभी नौकर खाना लेकर आया, तो उन्होंने पूछा  आज क्या है वहुत लोग आये हैं  लगे। 

नौकर बोला बाबूजी आपको पता नहीं आज  मेमसाहब का जन्म दिन है। उनके मम्मी ,पापा ,,भाई पूरा परिवार आया है पार्टी हो रही है अभी-अभी मेम साहब ने केक काटा है। यह  कह वह चला गया।

भरोसी जी मीना जी  से बोले हमें यहां परायों की तरह कमरे में बिठा रखा है समधी समधीन आये रहे उन्हूं से मिलाने की जरूरत न समझी। मीनाजी बोली हम कहत हैं ऐसे रोज रोज अपमान करावे  से अच्छो है अपने घर चलो।

दूसरे दिन आकाश उनसे मिलने आया तो

मीना जी बोलीं बिटवा हमाओ टिकट कराये दो हम जाइ हैं।

आकाश बोला क्यों माँ कहां जाओगे। यहां कोई परेशानी है क्या। आराम से रहो।

इस बार पिता बोले हम यहां खान-पिअन नहीं आये रहे। हम आये थे अपने विटवा बहू से मिलन ।तो तुम्हारे पास समय ही नहीं है। कमरे में बैठे – बैठे हाथ-पाँव अकड गये। हम ठहरे कामकाजी लोग  खुली हवा धूप में घूमत रहे। यहां को आराम रास नहीं आय रहो। विटवा  यहाँ सोने  के पिंजरा में बैठ के रोज-रोज अपमानित होने से अच्छा  है

कि हम अपनी स्वाभिमान की टूटी फूटी झोंपड़ी  में ही ठीक है।  जब तुम्हें  समय  मिले तो तुम्हंई  मिलन आ जइओ। हमार टिकट करवा दो   सो  हम चलें।

आकाश का शर्म से सिर झुक गया। इन पंद्रह दिनों  में वह कितना उनके पास बैठा था। क्या  सुख-  दुख की बातें साझा की थीं। एक कमरे बिठा उन्हें कैद कर दिया था। किन्तु वह ससुराल की  चकाचौंध में इतना डूब गया था कि उसे  अपने  माता-पिता की परेशानी भी समझ नहींं आई। कोई कैसे  इस तरह खुश रह सकता है। 

दूसरे दिन वह टिकट ले आया और उन्हें उनके घर के लिए रवाना कर दिया। जाते-जाते मां बोली विटवा  तू खुश है तो हम  भी  ख़ुश हैं पर हमाओ आकाश अब हमाओ आकाश न रहो वह कहीं गुम गयो। उनकी आंखों से आँसू निकल पड़े। प्यार से बेटे के सिर पर हाथ फेर चल दिये अपनी मंजिल की ओर जहां वे स्वाभिमान से सिर उठा कर जी सकें। और आकाश अपराध बोध से भरा चल दिया अपने घर की ओर सोचता मुझ से ज्यादा कृतघ्न 

और कौन होगा जिसने अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने के खातिर मां बापू का सारा त्याग, बलिदान, अरमान अपने सुख रूपी यज्ञ में आहुत कर दिये। हकीकत तो यह है कि मैं जिन्दगी में बुरी तरह छला गया हूं और उसके आंसू निकल पड़े।

शिव कुमारी शुक्ला

21-7-24

स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित 

सोने के पिंजरे से ज्यादा आत्म सम्मान की टूटी फूटी झोंपड़ी कहीं ज्यादा अच्छी होती है

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