दरवाजे पर कमला जी की टिकी हुई थी। कोई भी आहट होती तो उन्हें लगता कि कहीं विमला तो नहीं आ गयी। विमला उनकी छोटी बहन है ,उससे सुबह बात हुई। कि उसे अपने ननदोई के रिटायरमेंट की पार्टी में आना है। एक दिन रुकेगी,अगले दिन अपनी ननद के यहाँ जाएगी।
कमला जी छोटी बहू काजल और बड़ी बहू आशा से बड़ी खुश होकर कहती- देखो मेरी बहन बड़े दिनों बाद आ रही है ,उसके लिए कुछ अच्छा सा बना लो। तब काजल कहती -मम्मी वो खाने के समय पहुंचेगी तो खाना ही खिला देंगे। ज्यादा से ज्यादा एक और सब्जी बना लेंगे। तब वो कहने लगी- सुनो तुम लोग पापड़ ,सलाद और चटनी वगैरह भी देख लेना।
दोपहर के एक बजे वो पहुंचती है, तब बड़ी बहू आशा उनके पास आकर तुरंत पैर छुती है। और वह किचन से पानी चाय देकर काम में लग जाती है।तब विमला मौसी को लगा। अरे जीज्जी छोटी बहू काजल कहाँ है ,वो दिख न रही है। तब वो बोली – काजल अंदर होगी। कुछ काम कर रही होगी।
तुरंत उन्होंने आवाज लगाई -अरे काजल, ओ काजल देख मौसी आ गयी है। तब वो अपने कमरे से निकल कर आ गयी। और बाजू में बैठकर हालचाल जानने लगी। और सुनाओ मौसी सब कैसे है। मम्मी जी तो आपका दो घंटे से इंतजार कर रही है, जबकि पता है आपको पहुँचने में समय लगेगा। तब उसकी सासुमा कहती -अरे काजल तू यहाँ बातें ही करते रहेगी। या आशा के साथ मदद भी करेगी।
तब वह किचन में जाकर देखते हुए बोल पड़ती- अरे भाभी इतना सब कुछ करने की क्या जरूरत थी। आपने एक सब्जी और बना ली और खीर भी….अभी पंद्रह बीस मिनट पहले ही मैं रसोई से गयी थी।बाप रे …आप कितना करती हो, थकती नहीं हो क्या!!
एक तो सुबह से उठकर काम कर रही हो, और इतना सब कुछ…हमसे से इतना कभी न हो। तब वो खुशी जाहिर करते हुए कहने लगी मुझे तो दूसरों को तरह- तरह का बना कर खिलाने में खुशी मिलती है,,इसमें परेशानी कैसी… ?
थोड़ी देर में ही वे दोनों खाना की थाली परोस लाती है। खाना की थाली देखकर ही विमला जी गदगद हो जाती है। और कहती -“अरे आशा हमारे आने से तुम कितना परेशान हो गयी…इतना सब कुछ करने की क्या जरूरत थी।” तब वह बोली- मौसी जी परेशानी की क्या बात है, खाना तो बना ही था। पर थोड़ी सलाद, चटनी ,पापड़ के साथ एक सब्जी कर दी तो इसमें क्या हुआ। तब वे बोली खीर भी है तो बहू …. तब कमला जी बोली-हाँ आशा खीर तो नहीं बनी थी, तो इतनी जल्दी कैसे तैयार हो गयी। तब वह बोली -मम्मी हमने कुछ ज्यादा नहीं किया बस चावल जो बने थे, उसी को दूध में पकाकर मलाई डाल दी और मेवे डाल दिए।
तब विमला जी बोली- जीज्जी आपकी आशा बहू तो अन्नपूर्णा है….. इसके पास जो आए ,वो कभी भूखा ना जाए…. तब काजल ये सब सुनकर कुछ न बोल पाई ,पर उसे बहुत बुरा लगा सोचने लगी कि किचन का काम तो मैनें भी कराया है, इसका सारा श्रेय तो भाभी को जा रहा है।
और अंदर ही अंदर कुढ़ने लगी। उसे लगा पैसा और सामान न हो तो कोई कैसे अन्नपूर्णा बन सकता है? कमाने वाले तो मेरे पति कितनी मेहनत करते है। भाभी ने काम से सबका दिल जीत लिया है और कुछ नहीं….
उसके अंदर ईष्या होने लगी और उसने सोचा मौसी जी मैं भी आपको खुश कर सकती हूं।
शाम को सब काम खुद करने लगी। जब उसने सब्जी की छौंका लगाया तो आशा ने टोंक दिया अरे काजल इतना तेल मसाला मत डाल नहीं तो फिर मम्मी जी और बाबूजी की सब्जी अलग बनानी पड़ेगी। तो वह तुनक कर बोली- भाभी आप जो करो वो सब ठीक है। मैं अपने हिसाब से करु तो गलत….
ऐसा सुनकर आशा ने कहा – अच्छा बाबा तुम्हें जैसा बनाना है बनाओ, मैं दूसरा काम देखती हूँ। और अगले दिन मंगोलों के दाल पानी में डालने लगती है। तभी दोनों चर्चा करती है काजल कल के लिए मंगोड़े नाश्ते में कैसे रहेगें। मंगोड़े की बात सुनकर काजल कहती है मैं ये सोच रही भाभी कल के लिए अप्पे भी बना लूं। तब आशा कहती हां ठीक है मम्मी को ज्यादा तेल वाला नाश्ता नहीं खाती दोनों ठीक रहेगें। मीठे में हम जलेबी मंगा लेंगे।
इस तरह छौंकने वाला काम काजल करती है। और आशा उसकी मदद करती है ताकि काजल को बुरा न लगे।
अब क्या था काजल फटाफट खाना तैयार करती है। और फिर खाना परोसती है, थाली परोसी हुई बहुत अच्छी लगती है।
सब खाने बैठ जाते हैं पर खाने की किसी डिश में मिर्च का तड़का तेज, किसी किसी में नमक कम, तेल मसाला सब्जी में ज्यादा…. वो अलग…
सब ऐसा ही…..
पर अब तो खाने के बीच में कोई पानी बार बार पी रहा है , कोई नमक मांग रहा….. तब उससे रहा न गया। तो पूछ बैठी मौसी जी खाना कैसा बना आपने कुछ कहा नहीं…. तब वो बोली काजल खाना तो अच्छा है पर आशा जैसा तुम्हारे हाथ में स्वाद नहीं है ,बुरा मत मानना वो सबकी जीभ का स्वाद समझती है, धीरे – धीरे तुम भी सीख जाओगी। तो उसके भाव ही बदल गए। वह कुछ कह नहीं पाई,और मुंह बना कर वहां से चली गयी। उसे आशा से बहुत चिढ़ हुई कि भाभी ने मेरे किए धरे पर पानी फेर दिया इतनी मेहनत की वो अलग…..
उसे लगा अब भाभी का कुछ करना पड़ेगा….
रात हुई जब बिस्तर पर मौसी जी को सोना था तभी काजल ने बिस्तर में चुपके से रवा बिखरा गयी। और जग का पानी फैला कर चली गयी,जबकि बिस्तर आशा लगा कर बोलने गयी मौसी जी आपके बिस्तर एक से लग गये हैं ,पानी भी कमरे में रख दिया है।
मौसी जी थोड़ी देर में सोने को आती है तब दोनों बहनें एक साथ सोने को पलंग पर बैठती है , कमला जी कहती विमला जरा संभल आना पानी गिरा है,और वो दोनों पानी पोंछकर लेट जाती है।
तभी हाथ में कुछ छूने पर लगता है अरे बिस्तर में कुछ तो है। तभी दोनों हाथ फेरती है तो कुछ रवा हाथ में आ जाते हैं। तो कमला जी बड़ी बहू आशा को कहती – आशा ओ आशा बिस्तर तो तू फटकार करके गयी। फिर रवा के दाने कैसे ….
तब वो कहती मम्मी पता नहीं ये कैसे आश्चर्य से बोलती है!!
तब विमला जी कहती- रसोई में अभी थोड़ी देर पहले काजल के हाथ में रवा का डिब्बा था ,,वह आई होगी। फिर कमला जी उसे बुलाती है।तो विमला क्या तुम यहाँ आई थी?जी मैं मैं…तो यहाँ नहीं आई ।
उसी समय आशा तुम्हें सूजी तो फुलानी थी दही में वो तो तुमने मिक्स की। तो यहां के रवा कैसे मैनें तो वो छुआ भी नहीं…
इतना सुनते ही उसकी सिट्टी पिट्टी गुम…. वह कुछ न बोल पाई।
तब विमला जी बोली- काजल तुम अपनी जेठानी को नीचा दिखाने की कोशिश कर रही थी क्या? थोड़ी देर पहले ही मैनें रवा का डिब्बा तुम्हारे हाथ में देखा था। ये रवा के दाने बिस्तर पर बिखरा कर चली गयी। और पानी भी तुमने ही गिराया होगा।ताकि उसे भी हम लोग की चार बातें सुनना पड़ जाए। देखो तुम्हें तो आशा से घर गृहस्थी चलाना सीखना चाहिए। ना कि उसके लिए बुरा सोचना चाहिए। कि उसे कुछ सुनना पड़े। वह कोई काम ऐसा नहीं करेगी। कि उसे कुछ सुनना पड़े। मैं उसे बहुत अच्छे से जानती हूं।
इस तरह सुनकर वह शर्मिंदा होती है। तब कहती मौसी जी मैं भाभी को उनके काम में गलत साबित करना चाहती थी। और कुछ नहीं। केवल उनकी तारीफ हो यह मैं बर्दाश्त नहीं कर पाई। और ईष्या के कारण ये कर बैठी।
तब कमला जी उसे समझा कर कहने लगी- देखो काजल तुम नयी – नयी आई हो अभी तुम्हारी शादी को कितना ही समय हुआ है,और पूरी तरह गृहस्थी में पारंगत नहीं हो, तुम्हें आशा से सीखने की जरूरत है, सबके घर का खानपान ,आदतें ,रहन सहन सब आशा समझने लगी। आशा को इस घर के अनुसार ढलने में समय लगा। तुम्हें भी लगेगा। तुम भी मेरे लिए कम न हो।
इतना सुनकर उसके अंदर के भाव बदल गए और वह कहने लगी -हां मम्मी आप सही कह रही हो। हमें उनसे सीखने की जरूरत है। ना कि बराबरी से सोचकर ईष्या करने की ,हमसे गलती हो गई। अब से ऐसा गलती से भी विचार ना लाऊंगी। जो भी काम करुंगी उनसे सलाह ले लिया करुंगी।
फिर अपने पास बैठाकर मौसी जी ने सिर पर प्यार भरा हाथ फेरकर कहा- अब से बिलकुल ऐसा ही करना ,ताकि अपने आप ही सब तुम्हारी तारीफ करे। अपनों से कैसी ईष्या आशा तो सही से सब काम करना इस घर के अनुसार सिखा देगी। फिर ज्यादा सी हो तो जीज्जी से भी पूछ लो। इस तरह उसे उनकी बात समझ आ गयी।
ठीक है मौसी जी कहकर मुस्कुरा दी।
साप्ताहिक प्रतियोगिता -ईष्या
स्वरचित मौलिक रचना
अमिता कुचया