बबिता ! सुमन का फ़ोन आया था ।कनिका के लिए लड़का बता रही थी….
रहने दो, जैसी मिडिल क्लास खुद है तुम्हारी बहन वैसा ही मिडिल क्लास लड़का बताया होगा । अब क्या हम सुमन का बताया रिश्ता देखने चल पड़े ?
इतना अभिमान अच्छा नहीं होता । चार पैसे क्या आ गए कि तुमने तो परिवार को , लोगों को अपना मानना भी छोड़ दिया । मत भूलो कि लाटरी निकलने से पहले , तुम इन्हीं के बीच रहती थी । अगर सुमन ने अपना समझकर भतीजी के लिए रिश्ता बता दिया तो क्या ग़लत कर दिया ? लड़का इंजीनियर है । खाता-पीता अच्छा ख़ानदान है । सबसे बड़ी बात कि सुमन के देखे-परखे लोग हैं ।
आप ध्यान से सुन लें , मैं अपनी बेटी की शादी अपने लेवल के किसी बिज़नेस मैन से करूँगी । महीने की बंधी बँधाई कमाई में मेरी बेटी का गुज़ारा नहीं होगा । और ये बात-बात पर क्यों याद दिलाते रहते हो कि हम क्या थे , वर्तमान को देखो बस ।
ठीक है….. जैसी तुम्हारी मर्ज़ी पर तुम्हारा यह रवैया मुझे हरगिज़ पसंद नहीं है ।
अपनी पत्नी बबिता की बातों से परेशान कैलाश हर रोज़ इस तरह की बहसबाजी से गुजरता था । आज फिर उसे वे पुराने दिन याद आ गए , जब वे एक छोटे से क़स्बे में रहते थे । पुश्तैनी गाँव भी पास ही था । परिवार के ज़्यादा तर लोग गाँव में ही रहते थे । कुछ आसपास की दूसरी जगहों पर काम करते पर शाम को अपने घर पहुँच जाते । परिवार के कुछ लड़के फ़ौज में थे पर उनकी पत्नियाँ और बच्चे गाँव में ही रहते । कैलाश पोस्ट ऑफिस में काम करता था और अपने गाँव से ही सुबह नौकरी के लिए आता , शाम को घर लौट जाता । जब बेटी कनिका बड़ी होने लगी तो बबिता ने ज़िद की——
देखो , बेटी बड़ी होने लगी और गाँव में तो अच्छा स्कूल नहीं, बेहतर होगा कि आपके डाकखाने के पास ही मकान किराए पर ले लें । बच्चों की पढ़ाई भी अच्छी तरह हो जाएगी और आपको भी आराम हो जाएगा ।
कैलाश की माँ ने भी बबिता का पक्ष लेते हुए कहा था—
इस कहानी को भी पढ़ें:
सही कह रही है बबिता । केदार के तो तीनों लड़के थे । साइकिल से आना-जाना करके पढ़ लिए पर लड़की की जात। पढ़ाना है तो वहीं मकान लेना पड़ेगा । आगे छोटे भाई की दो लड़कियाँ हैं , ये सारे बच्चे पढ़ लेंगे वही । गाँव ज़्यादा दूर तो है नहीं, यहीं से दूध , अनाज आदि चला जाया करेगा । पढ़ाई के बिना , अब गुज़ारा नहीं होगा ।
बस ज़रूरत का सामान घर से लेकर कैलाश अपनी पत्नी और बच्चों के साथ क़स्बे में आ गया । छोटे भाई केशव की बेटियाँ अभी छोटी थी । हाँ, बड़े भाई केदार के दो छोटे बेटे उनके साथ रहने लगे । बड़े बेटे को तो कोचिंग के लिए दिल्ली भेज दिया था । सब कुछ कितना बढ़िया चल रहा था ।
एक दिन बबिता पड़ोस में रहने वाली अपनी सहेली के साथ बाज़ार गई और वहाँ से लौटते ही चहकती हुई बोली —-
देखो जी , लाटरी के चार टिकट लाई हूँ । हे माता रानी ! बस निकल आए किसी तरह , तेरी कढ़ाई करके भंडारा करूँगी ।
कितने पैसे बरबाद कर आई ? पता भी है कि एक रूपया कमाने में कितनी मेहनत लगती है । आगे से तुम किसी के साथ नहीं जाओगी । कुछ लेना होगा तो मैं दिलवा कर लाऊँगा ।
मेरे पैसे थे । मेरी माँ ने साड़ी लेने के लिए दिए थे । मैं साड़ी की जगह लाटरी के टिकट लाई तो तुम्हारा क्या गया ।
कैलाश ने बात को न बढ़ाना ही ठीक समझा । पर उन्होंने पत्नी को धीरे से समझाने का प्रयास किया कि ये लाटरी वाटरी नहीं निकलती । ये तो बहकावा है ।
पर कैलाश की बात झूठ निकली और बबिता का विश्वास जीत गया । सच में तीन महीने बाद वही पड़ोसन मिठाई का डिब्बा लिए भागती आई —-
बबिता….बबिता…. मेरी तो लाटरी निकल गई । तुम भी अपने टिकट का नंबर देख लो ।
जब बबिता ने धड़कते दिल से नंबर जाँचा तो पता चला कि उसके ख़रीदे चार टिकटों में से दो नंबर की लाटरी निकली है । बस , यहीं से शुरुआत हुई बबिता के बदले रवैये की । पूरे परिवार ने उसकी ख़ुशी में सहयोग दिया । पूरे गाँव में बड़े से भंडारे का आयोजन किया । बहन- बेटियों को दान- दक्षिणा दी। पर जब बबिता ने कैलाश को नौकरी छोड़कर बिज़नेस करने को कहा तो परिवार हकदम रह गया । सबने समझाया कि थोड़ा- थोड़ा पैसा सब बच्चों के नाम करवा दो , टैक्स का झंझट नहीं रहेगा , फिर सब इकट्ठा ही तो है । पर बबिता ने साफ़ इंकार कर दिया ।
इस कहानी को भी पढ़ें:
“ये बंधन तो प्यार का बंधन है” – कुमुद मोहन : Moral Stories in Hindi
पैसे का आकर्षण होता ही ऐसा है कि कैलाश को धीरे-धीरे बबिता की बातें ठीक लगने लगी । वे दिल्ली शिफ़्ट हो गए और उन्होंने रेडीमेड गारमेन्ट्स का बड़ा सा शोरूम खोल लिया । ईश्वर की कृपा से बिज़नेस दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति करने लगा ।
बेटी और बेटे दोनों का बड़े स्कूल में दाख़िला करवा दिया । परिवार वालों को उम्मीद थी कि बबिता और कैलाश सभी बच्चों के बारे में सोचेंगे पर ऐसा नहीं हुआ । जेठ के जो दो लड़के उनके पास रहते थे । बबिता ने यह कहकर कि बड़ी कक्षाओं में बीच में स्कूल बदलने से परेशानी आती है, बड़ी सफ़ाई से अपना पल्ला झाड़ लियाऔर उन्हें दिल्ली लाने की बजाय गाँव से ही स्कूल आने – जाने का मशवरा दिया ।
अगर गाँव से कोई आता तो वह उन्हें नीचा दिखाने में कोई कमी ना छोड़ती । धीरे-धीरे घरवालों ने आना ही बंद कर दिया । एक दिन तो उसने हद ही कर दी । कैलाश के बड़े भाई बीमार थे । कैलाश ने उन्हें दिल्ली आकर डॉक्टर को दिखाने की सलाह दी । उनका बड़ा बेटा तो वहीं कोचिंग ले रहा था । वह अपने पिता को दिखा लाया । केदार तो दरअसल डॉक्टर को दिखाने के बाद बेटे के साथ वापस गाँव लौटना चाहता था पर कैलाश ने दो- चार दिन अपने पास ठहरने की ज़िद की । अब भाई का मन , कैसे मना करता सो अपने बेटे से कहा कि चाचा के घर जाने वाली बस में बैठा दें । जिस समय केदार कैलाश के घर पहुँचा, दोनों पति-पत्नी में से कोई नहीं था । बच्चे घर पर थे । ताऊ को देखकर दोनों के चेहरे खिल उठे और वे ड्राइंगरूम में बेतकल्लुफ़ी से बैठ गए ।
दादी और ताई के द्वारा भेजा देशी घी का डिब्बा, सरसों के तेल की कैन्नी और उड़द की दाल वहीं ज़मीन पर रखे थे तथा केदार के पैर मँहगे सोफ़े पर पर थे । तभी बबिता अपनी कुछ सहेलियों के साथ आई । केदार को और कमरे में फैले सामान को देखकर उसकी भृकुटि तन गई । वह छूटते ही बोली—-
ये कैसे बैठे हैं आप सोफ़े पर ? और ये क्या कचरा फैला रखा है? पता भी है कि सोफ़े की सफ़ाई के कितने पैसे लगते हैं?
बेचारा केदार पानी- पानी हो गया । उसने तो सोचा भी नहीं था कि उसे देखकर सिर पर आँचल ढकने वाली बबिता इस तरह अपमानित करेगी । उसी समय उठे और रात को बेटे के पास जाकर होस्टल में रुके । उस दिन भी कैलाश और बबिता के बीच जमकर हंगामा हुआ । अब कैलाश ने सोच लिया कि परिवार वालों को बुलाकर बेइज़्ज़ती करवाने से बेहतर है कि जब मन किया किसी बहाने से खुद ही मिल आए ।
कभी भूले भटके बहनों या दूसरे लोगों का फ़ोन आ भी जाता और वे बच्चों से बात करने की इच्छा प्रकट करते तो बबिता साफ़ इंकार कर देती ।
उसे अपने ससुराल वाले ही नहीं, मायके वाले भी निचले स्तर के लगने लगे । समय पंख लगाकर उड़ गया । आज बेटी कनिका के लिए लड़का ढूँढा जा रहा था और बेटा तनिष्क विदेश में एम० बी० ए० कर रहा था । परिवार वालों के बताए रिश्ते बबिता ने थर्ड क्लास कहकर ठुकरा दिए थे ।
आख़िर में, अपनी किसी किट्टी पार्टी की सहेली के बताए रिश्ते को कैलाश के सामने बखानते हुए बोली——
इस कहानी को भी पढ़ें:
वाह , क्या रिश्ता बताया है मिसेज गर्ग ने हमारी कनिका के लिए । एकदम हमारी क्लास का , विदेश में बिज़नेस फैला है, महारानी बनकर रहेगी मेरी राजकुमारी । लड़का अभी यहीं हैं , परिवार भी अगले महीने दो हफ़्तों के लिए आ रहा है…..
पर मुझे छानबीन करने दो , मैं पूछताछ कर लूँ, तब तक हाँ मत कह देना…..
कैसी बात करते हो ? मैं क्या उसकी सौतेली माँ हूँ ? तुम्हारे से ज़्यादा चिंता है मुझे अपनी बेटी की ….. अरे तुम्हारा वश चलता तो तुम तो कभी का , अपने बताए रिश्तेदारों के बताए किसी रिश्ते को अपनाकर इसका जीवन बरबाद कर चुके होते । मैंने सब बात कर ली है । घरवालों से मिल चुकी हूँ वीडियो कॉल पर , हाँ लड़का आजकल भारत में ही है । मिसेज़ गर्ग सब बंदोबस्त कर देंगी । बस चट मँगनी और पट ब्याह ।
तुम्हारा दिमाग़ ख़राब हो गया क्या ? यूँ ही किसी के कहने से शादी कर दूँ अपनी बेटी की, अपने घरवालों से सलाह- मशवरा किए बग़ैर हरगिज़ रिश्ता पक्का नहीं करूँगा ।
अच्छा….. मैं भी देखूँ ज़रा कि तुम किस तरह अपने थर्ड क्लास घरवालों को बुला कर मेरी बेटी के रिश्ते को बिगाड़ोगे।
कैलाश की स्थिति बहुत दयनीय हो चुकी थी । वह चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे थे । बेटी की मर्ज़ी जाननी चाही पर वह भी विदेश में जाकर बसने का लालच छोड़ नहीं पा रही थी ।
मँगनी पर लाखों रुपये पानी की तरह बहाए गए । मिसेज़ गर्ग ने मँहगे-मँहगे तोहफ़े दिलवाए क्योंकि वे लोग रोज़-रोज़ तो मिलने से रहे , चार- पाँच साल में एक बार भारत आते हैं ।
चाहकर भी कैलाश बेटी के ब्याह का निमंत्रण किसी को न भेज सके । हाँ बबिता ने बेटे को अवश्य बुलवा लिया था । एक मँहगे फार्म हाउस पर शादी का इंतज़ाम किया गया । सिर पर पगड़ी सजाए और हाथों में फूलों की माला लिए कैलाश अपने परिचितों के साथ बारात का इंतज़ार करते ही रह गए पर ना तो बारात आई और ना ही बार- बार फ़ोन करने पर मिसेज़ गर्ग ने फ़ोन उठाया ।
बाद में पुलिस में खबर करने पर पता चला कि एक बड़ा गिरोह इसी तरह लड़की वालों को फँसाता है और पुलिस को बहुत दिनों से इसकी तलाश है । मिसेज़ गर्ग का नंबर भी नक़ली निकला । सुख- सुविधाओं से भरे घर में आज कैलाश और बबिता अकेले बैठे थे क्योंकि जान पहचान के लोग तो तसल्ली देकर चलते बने पर इन दोनों को अपनों के साथ की ज़रूरत थी , जिनके कंधों पर सिर टिकाकर दुख हल्का कर सके ।
उसी समय कैलाश उठे और अपने बड़े भाई को फ़ोन मिलाकर कहा —-
भाई, कुछ मत पूछना….. बस चले आओ मुझे तुम्हारी ज़रूरत है।
बबिता चुप बैठी कैलाश की आवाज़ सुन रही थी । आज उसकी हिम्मत नहीं थी कि वह परिवार वालों के खिलाफ कुछ बोले या उन्हें बुलाने से कैलाश को रोके , शायद वक़्त ने उसके चेहरे पर थप्पड़ मारकर सिखा दिया था कि अपनों की बराबरी कोई नहीं कर सकता ।
करुणा मलिक
VM