अपनी कीमत – चाँदनी झा : Moral Stories in Hindi

अनपढ़ रागिनी के स्वाभिमान को आज बहुत बड़ा धक्का लगा। बचपन से लेकर आज तक की जो उसकी ज़िंदगी है, उसकी मर्ज़ी की है कहाँ? शायद इसलिए वो इतना, और बार-बार जलील हो रही है। सासू माँ ने कहा, “जायेगी कहाँ, दो अक्षर का ज्ञान भी नहीं है, और न कोई हुनर, न इल्म। खायेगी तुम्हारे माथे पर बैठकर,

और कुछ बोल दो तो,…जैसे पाप कर दिया हो। ये नहीं समझती है, कर्मजली कि खाने से लेकर जीने तक के लिए तुम्हारी “मोहताज” है ये। अपना है क्या इसके पास? माँ-बाप भी न रहा, जो मायके भी जाकर दो-चार दिन रहेगी। भाई-भतीजा, कभी फोन कर लेता है, इतनी सी ही है इसकी औकाद।”

वैसे तो शुरुआत से ही सासू माँ हमेशा किसी न किसी बात पर ताने देते रहती थी। रागिनी के पति अमित चार भाई थे, और एक बहन प्रीति। अमित भाई-बहनों में सबसे बड़े थे। उसके बाद के सभी भाई की पत्नियां पढ़ी-लिखी और आधुनिक। जबकि रागिनी सीधी-सरल। अमित जब पंद्रह साल का था तो उसके पिताजी की मृत्यु हो गयी थी।

इसलिए दसवीं पास के बाद अमित पर घर की जिम्मेदारी आ गयी। वह आगे पढ़ न सका। और पापा का बिजनेस संभालने लगा। सभी भाइयों को आगे पढ़ाया, बहन की शादी किया। माँ की तबीयत अच्छी नहीं रहती थी,….इसलिए शादी भी अमित को जल्दी ही करनी पड़ी। रागिनी के मायके में भी वह सबसे बड़ी बहन थी।

घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी,…और स्कूल काफी दूर होने के कारण, रागिनी का पढ़ाई-लिखाई से ज्यादा वास्ता न रहा। घर पर माँ के कामों में हाथ बंटाती

, और माँ जब कभी किसी के सामने तारीफ़ कर देती, मेरी बेटी घर के हर काम में दक्ष है। खाना बनाना, घर संभालना, सिलाई, बुनाई क्या नहीं आता इसे, हीरा है मेरी बेटी हीरा। वो शर्माकर खुश हो जाती थी। उसे दुनिया से क्या मतलब, माँ खुश, उससे ज्यादा वो सोच ही कहाँ पाती थी।

और जब अमित से शादी कर ससुराल आई तो यहां भी, पति, सास, देवर, ननद और सारे घर की जिम्मेदारी बखूबी निभाया। हर काम समय से, स्वच्छ, साफ-सुथरा। परिवार के सभी सदस्यों का खूब ख्याल रखती थी। समय के साथ रागिनी दो बच्चों की माँ बनी। दोनों बच्चे आज बाहर ऊंची शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।

सभी देवर-देवरानी अपने काम (नौकरी) के सिलसिले में अलग-अलग शहरों में रहते हैं। ननद की भी शादी हो गयी है, वो भी अपने ससुराल में मगन है। घर में सासू माँ, अमित और रागिनी। हाँ मेहमान के तरह, देवर, देवरानी, ननद-ननदोई और बच्चे आते-जाते रहते हैं। सासू माँ शुरू से ही रागिनी से चिढ़ी रहती थी।

शायद, दान-दहेज ज्यादा न लाने से या, नैन-नक्श उसकी सासू माँ के अनुसार सुंदर न होने से, या ज्यादा दिखावा न कर पाती थी इसलिए, कहा नहीं जा सकता कारण क्या था? पर रागिनी को ज्यादा कुछ फर्क न पड़ता। सासू माँ की झल्लाहट में खुद को ढाल लिया था। अमित का व्यवहार भी सामान्य पति के तरह था।

गांव में उसने देखा था,…पति को देवता माना जाता है। और औरतें ही सिर्फ घर को स्वर्ग बना सकती है। वो तो वो कर ही रही है। आज सारे देवर कामयाब हैं, बच्चे भी अच्छी पढ़ाई कर रहे हैं। सासू माँ का खूब ध्यान रखती है। अमित हर काम के लिए पूरी तरह उस पर निर्भर है। और वह बखूबी सारी जिम्मेदारी उठा भी रही है।

पर दो-चार सालों से शायद रागिनी को ज्यादा बुरा महसूस होने लगा है, या….अमित ही बचपन से एक ही काम में परिवार के प्रति समर्पित रहने के कारण थक गया है। और, रागिनी पर ज्यादा झल्लाने लगा है। समझ न आ रहा, हकीकत क्या है? अमित शराब पीकर घर आने लगा है, और रागिनी को भला-बुरा कहता, ठीक से खाना न खाता, खाना फेंक देता,

या कहता खाने में स्वाद नहीं है। गंवार, जाहिल, और न जाने क्या-क्या कहता रागिनी को। जब तब रागिनी पर हाथ तो वो पहले भी उठाता था, पर अब बराबर, रागिनी पर चिढ़ता और मार-पीट करता। आज रागिनी ने बस इतना ही कहा था,…”आप बदल गए हैं, किसी की नजर लग गई है हमारे परिवार को,

आप ऐसे करेंगे तो मैं कहीं चली जाऊंगी। मुझसे अब बर्दाश्त नहीं होता। आप सुधार कीजिए खुद में, नहीं तो अच्छा नहीं होगा।” इतना कहते ही, अमित तो पूरी तरह भड़का ही,….रागिनी पर। उसकी सासू माँ भी भला-बुरा सुनाने लगी। “कहां जाओगी? है कोई ठिकाना? कुछ आता भी है, या सिर्फ ज़बान चलाने में तेज हो?

बोल दिया दो बात पति तो,….अकड़ दिखाती है। अनपढ़, गंवार, किसी लायक तुम नहीं हो।” सासू माँ की कड़वी बोली न जाने क्यों आज उसे तीर के तरह चुभ रही थी। न जाने आज से पहले उसे खुद की कीमत का कोई एहसास था भी या नहीं? पर आज उसे खुद की अहमियत को यूं जलील होना, गवारा न था। एकदम से फट पड़ी रागिनी,

जैसे आज तक किसी तरह संभाल कर रखा हो। “माँ जी माना कि मुझे किताबी ज्ञान नहीं है। पर ज़िंदगी जीने का ज्ञान बख़ूबी है मेरे पास। और मैं किसी पर निर्भर या किसी की मोहताज नहीं हूँ। मुझे खाना बनाना से लेकर जीवन संभालना तक सब आता है। आपके परिवार को संभाला है मैंने, अपना समझकर। अगर अब मुझे ऐसे सुनने को मिलेगा तो मैं भी अपनी कीमत जानती हूँ।

 मैं तो नहीं, हाँ, आपका परिवार आप, आपका बेटा सब मुझ पर निर्भर हैं। और रही बात पढ़ाई कि, जरूरत महसूस न हुई थी। पर लगता है अब पढ़ना पड़ेगा, तो वो भी मैं पढूंगी। माँ जी सदैव माता-पिता तो जीवित नहीं रहते हैं न, मेरे भी माता-पिता अब नहीं है इस दुनिया में। और जब आपके यहां पच्चीस साल गुजारा,

आप लोगों को मेरी अहमियत नहीं है, तो भाई-भतीजा, भाभी से मैं क्यों उम्मीद रखूंगी? उसके वहां तो बस दो-चार दिन मेहमान बनकर जाती हूँ। रागिनी ने साफ कह दिया, मैं बाहर काम ढूंढ लूंगी, मेरी योग्यता के अनुसार ही सही पर काम मिलेगा मुझे। पेट भी भर सकती हूँ अपना, और….पढ़ाई भी करूंगी।” रागिनी के शब्द सुनकर,

सिर्फ सासू माँ ही नहीं, अमित भी सुन्न हो गया। रागिनी के चेहरे पर एक अलग आत्मविश्वास झलक रहा था। आंखों में आंसू, या दया की कोई उम्मीद न थी, खुद को बदलने का सपना आंखों में था। रागिनी के इस तरह के जवाब से,…अमित में अचानक सुधार तो हुआ ही,…..

सासू माँ भी अब सोच-समझकर बोलने लगी। वहीं रागिनी ने घर पर ही सिलाई शुरू कर दिया, जिससे उसे अलग से आमदनी होने लगी। साथ ही,….पढ़ाई भी करने लगी। कुछ सालों में ही वह पढ़ाई-लिखाई कर पाने लगी और, दसवीं उत्तीर्ण भी किया। रागिनी का परिवार आज पूरी तरह खुशहाल है,….और रागिनी अपने समाज के लिए प्रेरणा है। वह जहां चुप रहती थी, वहीं अब वाजिब अधिकार की बातों से सभी को अवगत कराती है। 

#मोहताज

चाँदनी झा  

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