कुलक्षणी जाने किसका पाप रखी है तू अपने पेट में…
अभी मैं तेरी और इस पाप के औलाद की सारी कहानी खत्म कर दूंगा..
इतना कहकर बलराम ने रमा पर जैसे हीं अपना हाथ उठाया रमा ने उसका हाथ पकड़ लिया।
और बोली-बस अब और नहीं बहुत सह लिया मैंने,मैं अपने लिए सब-कुछ सुन सकती हूं मगर अपनी संतान के लिए कुछ भी बर्दाश्त नहीं कर सकती मैं….
जब तुम नशे की हालत में होते हो तब तो मैं तुम्हें कुलक्षणी और कुलटा नहीं दिखती..
फिर आज क्यों???
ये संतान तुम्हारी है किसी का पाप नहीं…
बहुत सह लिया मैंने अब और नहीं…
अब मैं एक पल भी इस घर में नहीं रह सकती…
इतना कहकर रमा घर से जाने लगी…
रमा के सास-ससुर ने तुरंत उसका हाथ पकड़ लिया और बोले – बेटी तू इस घर से कहीं नहीं जाएगी..
अगर आज तू चली गई तो ये सारी दुनिया सच में तुम्हें कुलटा समझेगी…
ये घर तुम्हारा है ये बच्चा हमारे घर का वंश है..
तुम इसे इसी घर में जन्म दोगी…
इस घर से अगर कोई जाएगा तो वो बलराम है…
पिता का फैसला सुन बलराम के पैरों तले जमीन खिसक गई…
पिताजी!!! मैं क्यों??
वो इसलिए कि, तुम्हें कोई हक नहीं बनता अपनी पत्नी और अपने होने वाले बच्चे पर हाथ उठाने और पत्नी को गाली देने का…
तुम्हें रमा से तकलीफ है तो तुम निकल जाओ इस घर से…
हम ऐसे बेटे के बिना राजीखुशी से रह लेंगे जो इंसान के नाम पर कलंक है….
बलराम झटके से घर से निकल गया।
ये धन संपति अच्छों अच्छों का दिमाग खराब कर देती है – डोली पाठक : Moral Stories in Hindi
रमा ने उसे रोका नहीं।
वहीं बैठ कर बीते दिनों को याद कर रोने लगी..
आज अपनी औलाद के मोह के कारण वो सब सह गई..
पति का विछोह भी….
रमा जबसे ब्याह कर आई तो उसके पति बलराम का उसके प्रति वहीं रवैया रहा…
स्वभाव से बिगड़ैल अड़ियल और नशेड़ी बलराम ने कभी भी रमा की कद्र नहीं जानी।
माता-पिता की एकलौती संतान होने का उसने खूब नाजायज फायदा उठाया….
रमा जब ब्याह कर आई तो मन में हजारों सुनहरे सपने साथ लेकर आई थी…
आम लड़कियों की तरह अपने ससुराल को सजाने के लिए ढ़ेर सारे गुलदस्ते,मेजपोश, तकियों के लिहाफ जिन पर सुंदर अक्षरों में उसने गुडनाईट और स्वीट ड्रीम्स लिख रखा था…
(ये और बात थी कि उसकी जिंदगी में वो गुडनाईट और स्वीट ड्रीम्स कभी नहीं आए)
मोतियों की लडी़ से बने दरवाजों पर सजाने वाले झूमर और जाने क्या-क्या…..
रमा की झांपी( दुल्हन का सामान)देख कर मुहल्ले भर की स्त्रियां और लड़कियां ललच उठी और रमा की सास कुंती देवी से बोली – वाह जीजी तुम्हारे तो भाग हीं खुल गये जो इतनी सुघड़ बहू आ गई तुम्हारे घर….
लड़कियां कहने लगी- ताई अपनी बहू से बोलो ना हमें भी सिखा दे ये सारे हूनर,ताकि हम भी ससुराल जाएं तो हमारा नाम हो…
कुंती देवी ने जब ये सब सुना तो फूली ना समाई….
समय धीरे-धीरे बीतने लगा….
रमा सास-ससुर के आंखों का तारा बन गई परंतु,पति की चहेती कभी ना बन पाई….
फिर भी प्रणय के कुछ क्षणों में बलराम का अंश रमा की कोख में आ गया..
मगर उसने उसकी कोख को हीं गाली दे दिया..
रमा फूट-फूटकर रोने लगी. …
और पुराने दिनों की यादों से बाहर निकल कर यथार्थ में लौट आई।
समय के साथ,
रमा ने एक स्वस्थ और सुंदर बेटे को जन्म दिया।
घर परिवार का खर्च ससुर के पेंशन से चलता था एक बच्चे के आ जाने से खर्च बढ़ने लगा परिवार चलाना मुश्किल होने लगा तो रमा ने सिलाई करने और लड़कियों को सिलाई प्रशिक्षण देने का निश्चय किया..
उसके इस कदम में उसके सास-ससुर ने उसका भरपूर साथ दिया…
बरसों बीत गए परंतु बलराम लौट कर नहीं आया…
पति के बिछोह को अपनी ताकत बना कर रमा हर परिस्थिति से लड़ती रही…
उसने पति को ढूंढने की बहुत कोशिश की मगर वो कभी नहीं मिला…
सास-ससुर का साया सर से हट जाने के बाद अपने एकलौते बेटे के सहारे वो जीवन काटने लगी..
स्वरचित
डोली पाठक
पटना बिहार