देख छोटू तुझे किसी बात की चिंता करने की जरूरत नही है।रात में तेरी भाभी राज के पास रुक जाया करेगी और दिन में मझले की घराली सुमन रहेगी।और हम सब हैं ना,तू काहे फिकर करे है।
आशीष ने अपने बड़े भैय्या के बोल सुनकर उनके कंधे पर अपना सिर रख लिया और सुबक पड़ा।बड़े भैय्या ने उसे थपथपा कर फिर सांत्वना दी।वैसे ही हुआ हॉस्पिटल में पड़ी आशीष यानि छोटू की पत्नी राज की तीमारदारी के लिये उसके दोनो बड़े भाई,भाभी पूरी तरह तत्पर थे,घर पर उनके बूढ़े माँ पिता थे ही,जो बार बार जो भी घर पहुँचता उससे राज के हाल चाल पूछते रहते।
रात्रि में आशीष घर न जाकर वहीं हॉस्पिटल के गेस्ट रूम में ही रुकता,जबकि उसकी बड़ी भाभी राज के पास अंदर ही रहती।आज गेस्ट रूम में पड़े पड़े उसे अपने पर ग्लानि आ रही थी,वह अपने बड़े भाइयो को क्या समझ रहा था और वे क्या निकले।शिवशंकर दयाल जी के तीन बेटे थे,जिन्हें घर मे बड़े,मझले और छोटू ही पुकारा जाता था।
छोटू यानि आशीष ही तीनो भाइयो में सबसे अधिक पढ़ा लिखा था।संयोगवश उसे उनके नगर में स्थित शुगर फैक्टरी में जॉब मिल गया था,बड़े व मझले भाई पिता की दुकान संभालते थे।दुकान का कार्य भी काफी अच्छे स्तर का था।इस प्रकार तीनो भाई अपने माता पिता के साथ संयुक्त रूप से ही रहते थे।
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तीनो की शादियां भी हो चुकी थी।वैसे तो घर मे सब ठीक ठाक चल रहा था,अच्छा बड़ा घर था,सबको अपने अपने बेडरूम मिले हुए थे,हर बेडरूम के साथ एक छोटी सी किचन संलग्न थी।इस सयुंक्त परिवार ने अपना नियम बनाया हुआ था कि चाय नाश्ता सब अपनी अपनी किचन में स्वयं बनाएंगे।
और रसोइया पूरे परिवार का खाना एक साथ बड़ी रसोई में बनायेगा और रात्रि का खाना सब एक साथ बैठकर खायेंगे।इससे किसी महिला पर अतिरिक्त गृह कार्य का बोझ भी नही पड़ता था और घर मे शांति रहती थी।खाने की मेज पर सब एक दूसरे से पूरे दिन की बाते शेयर भी कर लेते थे।अपने अपने काम पर जाने से पूर्व सबके लंच बॉक्स रसोइए द्वारा सुबह ही लगा दिये जाते थे।
बड़े भाई और मंझले भाई का रहन सहन और सोचने का ढंग अपने पिता पर गया था।मध्यम श्रेणी के परिवार जैसी सोच थी उनकी।आशीष चूंकि उनसे अधिक पढ़ा लिखा था और जॉब करता था तथा उसकी शादी भी एक आधुनिक परिवार में हुई थी,सो उनके रहन सहन में थोड़ा खुला पन था।
अब राज को सिर पर पल्ला रखने में परेशानी महसूस होती थी,जबकि बड़े व मंझले भाई को यह थोड़ा असहज करता था,उन्हें लगता कि घुघन्ट को तो कोई कह नही रहा, कम से कम खाने की मेज पर जब बाबूजी भी बैठे हो तब तो राज को सिर ढकना चाहिये।यह तो उनके प्रति सम्मान का सूचक होता है।उन्होने हल्के से आशीष को कहा भी कि राज को समझाये, पर आशीष ने तो उल्टा ही जवाब दे दिया कि भैय्या आजकल इन बातों को कौन मानता है?
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उत्तर सुन बड़ा भाई शॉक्ड तो हुआ फिर भी उसने कहा हाँ छोटे बात तेरी सही है,पर बाबूजी तो हमसे बहुत पुराने जमाने के हैं, कम से कम उनके सामने मर्यादा का पालन होना चाहिये।आशीष ने कोई उत्तर नही दिया।बात आई गयी हो गयी।राज अब भी कभी भी खुले सिर आ जाती।पर अब भाई नही टोकते।ऐसे ही एक दिन रसोई की डस्ट बिन में अंडो के छिलके देख बड़ी भाभी उस दिन खाना ही नही खा पायी।चूंकि घर पूरी तरह शाकाहारी था,
उन्हें कल्पना ही नही थी कि उनके घर मे अंडे भी आयेंगे।बड़े भाई ने फिर आशीष को टोका कि भई क्या अंडे खाने शुरू कर दिये हैं।आशीष ने सकपका कर कहा,भैय्या वो राज प्रैग्नेंट हैं न,डॉक्टर ने उसे खाने को बोला है।बड़े भाई बोले देख छोटे जब साथ रहते हैं तो सबके हिसाब से चलना होता है,तुम अंडे आदि अपनी रसोई में बनवा लिया करो,जिससे बाकि सबको परेशानी महसूस ना हो।
आशीष को अब यह अखरने लगा था की छोटी छोटी बातों पर भी उसे ही उलाहना दिया जाता है।उसे लगता कि सब एडजस्टमेंट वही करे घर मे और कोई न करे।इससे अच्छा तो ये रहेगा कि वह फैक्टरी में ही फ्लैट लेने की कोशिश करे।बस किसी तरह राज की डिलीवरी हो जाये उसके बाद यहां रहेंगे ही नही,सब टोका टाकी अपने आप खत्म।अब वह अपने भाइयों के सामने कम ही पड़ता था।
समय से पूर्व ही राज को दर्द उठने के कारण टिपिकल अवस्था मे हॉस्पिटल दाखिल करना पड़ा।जहां उसका ऑपरेशन किया गया।आशीष परेशान था कि भाइयो से तो शीतयुद्ध चल रहा था तो कैसे राज के लिये हॉस्पिटल और बाद में घर पर व्यवस्था हो पायेगी।राज के माँ और पिता विदेश गये हुए थे।आशीष इसी सोच विचार में था कि बड़े भाई ने उससे कह दिया अरे तू काहे चिंता करता है रे छोटू हम है ना।
आशीष की समझ मे अब आया परिवार का महत्व।पूरे परिवार का महत्व।उसने निश्चय कर लिया था,कि वह अपने परिवार को छोड़ कही नही जायेगा।
बालेश्वर गुप्ता, नोयडा
मौलिक एवं अप्रकाशित।
#संयुक्त परिवार में रोक टोक तो जरूर है पर सुरक्षा तथा परवाह भी है* साप्ताहिक वाक्य पर आधारित कहानी: