“अपने तो अपने होते हैं” – कुमुद मोहन : Moral Stories in Hindi

“उमा! सुनो ग्रीन लेबल टी तो मंगा ली ना, जीजी वही पीती हैं!”

“क्यूँ परेशान हो रहे हो? मैंने जीजी की पसंद की हर चीज़ जो जो तुमने बताई सब मंगा ली हैं” उमा ने हंसते हुए विजय से कहा?

विजय की बड़ी बहन आज बरसों बाद एक हफ़्ते के लिए रहने को आ रही थी,अनिका के पति महेश बड़े बिज़नेसमैन थे,उनकी माँ बहुत दबंग थी,उनके लिए प्यार से ज्यादा पैसे की अहमियत थी।

अनिका की शादी में दिये गए सामान से उनकी माँ  खुश नहीं थीं,इसलिए उन्होंनें महेश बाबू को ताकीद कर रखी थी कि अनिका को दबा कर रखना,जब तक बहुत जरूरी ना हो अनिका को मायके नहीं भेजना,महेश को तो वे ससुराल जाने ही नहीं देती कि कहीं वहीं का ना हो जाऐं शुरू से उनका नारा था“ससुराल जावत जावत मान घटे”।

शादी के बाद पहली राखी पर विजय अनिका से राखी बंधवाने आया, तब भी उसकी सास ने लाऐ हुए सामान

को लेकर खूब हंगामा किया।

विजय के ब्याह में बहुत चिरौरी करने पर महेश बाबू एक दिन के लिए अनिका को लेकर आए और अगले दिन साथ ही वापस ले गए,अनिका एक दिन भी भाभी के साथ नहीं रह पाई।

महेश बाबू को बिदाई में अनिका के माता-पिता ने अपनी हैसियत से भी बढ़ कर दिया,फ़िर भी अनिका की सास ने कोई ना कोई कमी निकाल कर उसे खूब खरी खोटी सुनायी।

अनिका के पिता बहुत बीमार हो गए,वो अनिका को देखना चाहते थे बहुत विनती करने पर जब अनिका को भेजा उसके पिता चल बसे थे,महेश बाबू आए जरूर पर क्रीमेशन के बाद अनिका को साथ ले गए, अनिका अपनी माँ का दुःख भी बांट न पाई।माँ ने बस इतना पूछा “फिर कब आओगी?बेबस अनिका क्या कहती?

फिर एक दिन माँ भी चली गईं,अनिका का वही एक दिन का आना जाना।

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छः महीने पहले अनिका की सास चल बसी,उनके जाने

के बाद महेश बाबू थोड़ा बहुत बदलने लगे।

एक बार महेश बाबू को बिज़नेस के काम से एक हफ़्ते के लिए पेरिस जाना था,बहुत डरते हुए अनिका ने मायके जाने की इजाज़त मांगी,जाने कैसे वो राज़ी हो गए।

बरसों बाद अनिका अपने घर कुछ दिन रहने को जा रही थी, वह बहुत उत्सुक थी,उसकी खुशी का ठिकाना नहीं था!

हवाई जहाज की खिड़की से अनिका झांक कर अपने शहर को ऐसे देख रही थी जैसे कोई बच्चा अपने पसंदीदा खिलौनों को देखता है।उसे जहाज़ की रफ़्तार कम लग रही थी।

एयरपोर्ट के बाहर विजय,उमा और छुटकी को देखकर उसकी आँखों में खुशी के आँसू बह निकले।

घर में माता-पिता की फोटो देखकर उसके मन में आया अगर कभी इनके जीते जी आकर रहती तो ये दोनों कितने खुश होते।

उमा ने अनिका के लिए माँ का कमरा और उनकी अलमारी खोल दी ,माँ का सामान वैसे ही रखा था,अनिका को लगा जैसे माँ आसपास हो।

छुटकी अनिका का हाथ खींचकर ले गई “देखो बुआ आपका कमरा!”!”मेरा कमरा?अनिका सोचने लगी इतने बरसों बाद वो मेरा कहां रहा!अब तो वो छुटकी का या गेस्ट रूम हो गया होगा!जाकर देखा दीवार पर अनिका की कोनवोकेशन के गाऊन वाली फोटो अभी तक लगी थी।

उसके कढ़ाई किये कुशन,तरतीब से लगे अनिका के इकट्ठे किये शिवानी के नाॅवेल,उसके  स्टैम्प अलबम सबकुछ उसकी पुरानी अलमारी में लगा देखकर अनिका की आँखों में आँसू आ गए!

तभी पीछे से आकर उमा ने अनिका के गले में बाहें डालते हुए कहा”जीजी! आपका ये कमरा बरसों से आपकी राह देख रहा था,बहुत देर कर दी आपने आने में!”

घूम घूम कर पूरा देखते हुए वो बिल्कुल शादी के पहले वाली अनिका बन गई,वो और विजय अपनी पुरानी बातों को याद करके जोर जोर से हंस रहे थे ठहाके लगा रहे थें,अनिका को लगा जैसे इस तरह खुलकर हंसना तो वह भूल ही गयी थी।

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दोपहर को घर के पिछवाड़े में मलाई कुल्फी वाले की आवाज़ सुनते ही विजय ने अनिका की तरफ देखा तो दोनों की आंखों मे जैसे चमक आ गई विजय जल्दी से कुल्फी ले आया ,गर्मियों में वे दोनों मां पापा के सो जाने पर चुपचाप कुल्फी जरूर खाते थे।

अनिका तरस गयी थी इन छोटी छोटी खुशियों के लिए।विजय ने चकोतरे की चाट बनाई,कुल्हड़ की लस्सी,सिंधी की जलेबी कचौड़ी,गुलाब जामुन जो जो अनिका को पसंद था ले आया।

रात को उमा अनिका के लिए बिस्तर ठीक कर रही थी,अनिका बोली ” छत पर सोयें?विजय तो तैयार ही बैठा था झट से छत पर जाकर पानी का छिड़काव कर दरी बिछा कर सफ़ेद चादरें लगा दी,दोनों भाई बहन रात भर तारों को गिनते उनमें अपने माता-पिता को ढूंढते रहे।बरसों का दबा गुब़ार रात भर में निकल गया।

छुटकी ने तो बुआ को एक पल को भी नहीं छोड़ा ,दोनों खूब बतियाती,खेलतीं।अनिका के पिता ने उसे कार चलाना सिखाया था, महेश बाबू के घर में उसे ड्राइवर होने के कारण ड्राइव करने इजाज़त नहीं थी,विजय कार अनिका के लिए छोड़ कर ऑटो से ऑफ़िस चला जाता तो उमा और छुटकी को लेकर अनिका पूरे शहर में खूब घूमती, तीनों कहीं चाट तो कहीं आइसक्रीम खातीं, उस ने उमा और छुटकी ने मिलकर खूब शाॅपिंग करी।

पता नहीं चला एक हफ़्ता कैसे बीत गया?

जाते वक्त उमा ने अनिका का टीका किया, विजय एक लिफ़ाफ़ा देने लगा, तो अनिका उसके हाथ पकड़कर बोली,”भैया! माँ पापा ने मुझे हमेशा बहुत दिया है,अब मैं तुम से कुछ नहीं लूंगी, इस एक हफ़्ते में तुमने मुझे जो खुशी दी है उसके आगे दुनिया की हर दौलत फ़ीकी है।

तभी छुटकी अनिका से लिपट कर बोली “फिर कब आओगी बुआ?

  अनिका को लगा जैसे माँ पूछ रही हो।उमा, विजय और छुटकी के प्यार की दौलत अपने आँचल में समेटे अनिका महेश बाबू के महल जैसे घर में लौट गई।

काश: .महेश बाबू और उनकी माँ अपनी आखों से दौलत की पट्टी उतार कर कभी अनिका के दिल में भी झांकते| माता-पिता के चले जाने के बाद बहन की शादी के बरसों बाद भी जब भाई-भाभी मान सम्मान और प्यार देते हैं, एक लड़की के लिए इससे ज़्यादा सौभाग्य की बात और क्या हो सकती है।

मायके में बिताया गया वो एक हफ्ता महेश बाबू के घर में बिताए ऐशो-आराम के ऊपर भारी पड़ गया!

सच ही तो है “अपने तो अपने होते हैं!”

कुमुद मोहन

स्वरचित-मौलिक 

#अपनों का साथ

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