वो हाथ में चाय का प्याला पकड़े बैठी रह गई थी। मन में विचारों का झंझावात चल रहा था…क्या करूँ …क्या ना करूँ। दोराहे पर खड़ी वो परेशान थी…पति तो जीवन में बहुत पहले ही साथ छोड़ गए थे…दो बच्चों की जिम्मेदारी और कॉलेज की नौकरी… दोनों को बहुत कुशलता से निभाया …दोनों बेटे अपनी अपनी गृहस्थी में मस्त….माँ से कोई विशेष मतलब नही। तभी रूपा आ गई,”ये क्या भाभी, सारी चाय ठण्डी पाला हो गई। ना जाने क्या क्या सोचती रहती हो….अरे मस्त रहो…जिंदगी भर काम कर लिया। बच्चों की अकेले जिम्मेदारी निभा दी…दोनों को सैट कर दिया… दोनों अपने बालबच्चों के साथ सुखी हैं। अब तुम …वो क्या कहते हैं…हाँ अपनी नौकरी से फारिग हो चुकी हो।”
वो उसकी बात काटते हुए हँसी,”रिटायर हुई हूँ…फारिग नही।”
“हाँ हाँ…वोही रिटायर पर नौकरी से ही तो रिटायर हुई हो। जिंदगी तो अब शुरू हुई है ना।”
वो सोचने लगी…इतने दिनों से ये रूपा कितना साथ दे रही है। इसे भी पूरे परिवार ने धोखा दिया पर अकेली भी कितनी मस्त और खुश रहती है, तभी वो दूसरी गर्मागर्म चाय ले आई,” लो ,अब चाय पी लो। ज्यादा सोचो मत।”
चाय का एक घूँट भरा ही था…मुंबई से बड़े का फोन आ गया,”मम्मी, क्या सोचा तुमने? अब तो नौकरी का चक्कर भी खत्म हो गया है। यहीं हमारे साथ रहो…तुम्हारे दोनों पोते बहुत याद करते हैं।”
“कह तो तुम ठीक रहे हो पर मेरा मन वहाँ नहीं लगेगा। यहाँ मेरा सर्किल है… जीवन यहीं बीता। इस घर में पापा की यादें बसी हैं… अभी यहीं रहने दो।”
“पर अकेले कैसे रहोगी… रोहिणी को बढ़िया जॉब मिल रही है। तुम यहाँ आ जाती तो…।”
ओह तो ये बात है। इसलिए माँ याद आ रही है वर्ना तो पहले के अनुभव वो क्या भूल पाई है पर मन को सम्भाल कर शांत भाव से बोली,”ऐसा है बेटा, अब तक हाँड़ माँस के इस हार्डवेयर को खूब घसीटा और इस्तेमाल किया पर अब अपने मन के सूक्ष्म सॉफ्टवेयर का भी इस्तेमाल करना है। अब तक जीवन की जिम्मेदारियों ने रोबोट बना दिया था। अब फुर्सत मिली है। अब मैं सिर्फ़ अपने पास रहूँगी.. अपने मन की सुनूँगी…हर वो काम करूँगी… जिसमें मुझे खुशी मिलेगी… तुम्हारे छोटे भाई को भी अब मेरी आवश्यकता पड़ गई है पर…ना ..अब किसी के पास नही… सिर्फ़ अपने पास।”
“मम्मी, तुम कितनी खुदगर्ज हो गई हो…तुम्हें अपने बाल बच्चों से भी प्यार नही है क्या?”
“प्यार था तभी अकेले निभा लिया पर अब अपने से भी प्यार ना करूँ क्या?”
नीरजा कृष्णा
पटना