अपने लिए टाइम…! – लतिका श्रीवासत्व

..आहा कल से कितना सुकून मिलेगा …. प्रिया सुखद कल्पनाओं में खोई हुई थी …. दोनों बच्चों की स्कूल trip है दो दिनों की…..उसके पति अनुराग का भी अचानक ऑफिस टूर आ गया है….कल सुबह सुबह ही तीनों को जाना है….फिर तो दो दिन मेरे है….! मेरे अपने लिए…!

… उफ्फ!!कितना काम रहता है उसकी जान को…चकरघिन्नी की भांति सुबह से बच्चों के स्कूल की तैयारी….,टिफिन,नाश्ता…..लंच….!!..”मम्मी कल आपको अच्छा नहीं लगेगा हमलोग नहीं रहेंगे…..रात में सोना बोली ही थी कि प्रिया ने कहा अरे बहुत अच्छा लगेगा मुझे कितना काम करती हूं तुम लोगों का थक जाती हूं कर कर के बढ़िया आराम करूंगी..!

दोनो बच्चों की फरमाइश की लंबी लिस्ट है ….सोना को तो मम्मी के हाथ के लड्डू रोज चाहिए और बेटे सौरभ ने भी आलू पराठे,फ्राइड इडली के साथ …..इतना सब आजकल कोई मम्मी नहीं करती समझे तुम लोगों को कितनी अच्छी मम्मी मिली है देखो…प्रिया ने अपनी तारीफ खुद ही करते हुए बच्चों से कहा देखना सब बच्चे होटल का समोसा कचोरी लेके आयेंगे…तो दोनों ने हंसकर thank u मम्मी कह दिया …प्रिया निहाल हो गई..!                

सुबह बहुत जल्दी सारे काम निबटा कर सबको विदा करके प्रिया ने सोचा अब एक प्याली जिंजर टी सुकून से पीऊंगी…..अपनी फेवरेट गजल सुनते हुए चाय का पहला घूंट लिया ही था कि मोबाइल बज उठा….

दीदी आज काम पर नहीं आ पाऊंगी….तबियत ठीक नहीं है…अपनी मेड की ये बात सुनते ही चाय का पूरा स्वाद खत्म ही हो गया सच में …!इतनी खीज और गुस्सा आया…

कितना ज्यादा काम करना रहता है मुझे ..!अपने लिए तो समय ही नहीं मिलता….ना कही आना ना जाना….मेरी तो कोई किटी भी नहीं है कितनी उलाहना देती है कॉलोनी की सभी महिलाएं ..आपको तो कभी टाइम ही नही मिल पाता हम लोगो के साथ टाइम बिताने का..!अरे थोड़ा अपने लिए भी टाइम निकालिए पिकनिक पर चलिए ..साथ में मूवी देखने चलिए…!

अपने लिए टाइम निकालिए ..!कैसे निकालू!!सुबह से कब रात हो जाती है और रात से फिर सुबह इसीका भान नहीं हो पाता …!सच में मैं ही बुद्धू हूं अपनी तरफ ध्यान ही नहीं देती ….सबका करते रहो बस ….!ये भी कोई जिंदगी है भला..!!सोच सोच कर खीज हो रही थी…!

कोई काम करने का मन ही नहीं हुआ…. टीवी ऑन करके सोफे पर लेट गई…..

 


…………लेटे लेटे मां याद आ गईं…. कितना ज्यादा काम करतीं थीं वो!कैसे कर लेती थीं..!मैं तो उसके काम का दसवां हिस्सा भी नहीं कर पातीं हूं और थक जाती हूं…!प्रिया सोच रही थी …..हम सब भाई बहनों की अलग अलग फरमाइश….पापा की अलग फरमाइश का खाना बनाने वाली मां को खाने में क्या पसंद था उसे याद ही नहीं है..!

   सुबह से किचन से मां के गाने की मीठीआवाज़ और खाना बनाने की आवाज़ दोनों के हम सब अभ्यस्त हैं…..बहुत ही मीठी सुरीली आवाज़ में भजन श्लोक स्तुति पुराने मीठे फिल्मी गीत उनके साधे हुए गले से निकलते हुए पूरे घर का वातावरण मीठा और संगीत मय कर देते थे….

भक्ति गीत और रामायण की चौपाइयां पूरे दिल से गाते हुए उनकी भावुक सुर लहरी मानो ईश्वर को भी भावुक कर देती थी….खुले गले से गाती थीं वो …सगीत सीखा था उन्होंने…हारमोनियम तबला उनके जैसा कोई बजाता ही नहीं था…..कॉलोनी का कोई भी कीर्तन भजन कार्यक्रम मां की टनकदार ढोलक की थाप और खनकदार गायन के बिना पूरा ही नहीं होता था…… कहती थीं यही रियाज है मेरा

   पापा का फेवरेट था घी का आटे का हलवा,मसालेदार सब्जियां….और उस समय तो मिक्सर भी नही था घर में मम्मी सिल बट्टे पर लहसुन प्याज पीस कर सब्जी बनाया करतीं थीं…!और वो भी बहुत उत्साह और प्रसन्नता से…!

   सुबह शाम ताजा नाश्ता भी जरूरी था….कॉलोनी का माहौल इतना मिलनसार था कि रोज शाम को पापा की मित्र मंडली बैठती ही थी…..मम्मी तब भी सबकी पसंद की डिशेज और चाय भी ..!किसी की अदरक की ..तो किसी की इलायची की….किसी के लिए कॉफी…!

मजाल है हम भाई बहनों में कोई किसी काम के लिए मुंह बना ले..! किसिका मुंह बनते ही तुरंत मम्मी उसे गेट आउट कर देती थी ये कहते हुए कि मन गिरा के या बुझे हुए मन से…, बड़ बड़ करते हुए काम करने का क्या महत्व!! हर काम  हमेशा खुश होकर ही करना चाहिए…!मुंह बनाके करने से काम का करना नही करना बराबर हो जाता है…!

और हां हम सब भाई बहनों के लिए मन पसंद टिफिन भी…ये बात अलग है कि मम्मी के हाथ के पराठे और आम के अचार के सामने सब फीका था। उस समय तो होटल से कुछ मंगवाना मां को अपनी पाक कला और घर आए अतिथि की बेइज्जती जैसा लगता था…

कि होटल से मंगा के टरका दिया…!आधी रात को भी कोई मेहमान आ जाए तो पूरा खाना बना कर खिलाना मां के लिए अनिवार्य था..!और खुद कब खाना खाती थी पता ही नही चलता था…और हम भी कभी नहीं पूछते थे या ध्यान देते थे मां ने खाना खाया भी या नहीं…..सबको खिलाने के बाद ही खुद खाती थी ये पक्का नियम था उनका….! हमें पता ही नहीं चलता था..!


 …….एक बार शाम से ही मां की तबियत ठीक नहीं थी रात में सारा काम करने के बाद वो जैसे ही आराम करने को लेटी ही थीं कि पापा के एक पुराने मित्र बहुत दिनों बाद अपने पूरे परिवार के साथ आ गए …मुझे तो बहुत ही बुरा लगा था जब मां ने उस हालत में भी उठकर नए सिरे से पूरा   भोजन वो भी दो प्रकार की सब्जियां,सलाद,पापड़,चटनी ….

मीठी सेवई भी बनाई थी और पूरे उत्साह से खिलाई थी …. और हां….! मां  पाक कला में ही नहीं भोजन परोसने, थाली लगाने सलाद सजाने की कला में भी पारंगत थीं…उनका मानना था खाना जितना नफासत से सर्व किया जाएगा उतना ही उसका स्वाद बढ़ जाएगा….मैंने उस दिन मुंह बनाया था कि ….

अरे मां क्या जरूरत है इतना सब करने की आप लेटे रहो मैं बता दूंगी आपकी तबियत खराब है दवा खाकर सो रहीं हैं…. उस दिन मुझे जो डांट पड़ी थी वो आज तक नहीं भूल पाई हूं..!…..वैसे भी मां ज्यादातर घर के काम खुद ही कर लेती थी हम लोगों से नहीं करवाती थीं…कहती थीं…अभी सिर्फ पढ़ाई में ध्यान लगाओ ये समय दुबारा नहीं आएगा…

और अगर बुद्धि का विकास हो गया तो जिंदगी में कभी भी कोई भी काम कठिन नहीं लगेगा….घरेलू काम कभी भी सीखे जा सकते हैं…!फिर भी रोज के कुछ घरेलू काम हम सब भाई बहनों को बांट दिए गए थे….जो करने ही पड़ते थे..!

हर मौसम में तो मां के कुछ विशेष काम रखे ही रहते थे….हर प्रकार का मीठा खट्टा अचार ….कई प्रकार के पापड़ बड़ियां चिप्स चावल के सेव आलू के सेव , अमावट,टमाटर की प्यूरी,सॉस,अमरूद की जैली,आंवले का मुरब्बा,और हर प्रकार के मसाले ..गरम मसाला,कलोंजी मसाला, बुकनू,हल्दी वाला नमक……. उफ अनगिनत चीज़े मां बनाती थीं…

  ……. साथ में हर त्योहार पर कनस्तर भर भर के नाश्ते …..कई प्रकार के लड्डू,सलोनी,खस्ता कचौरी,नमकीन सेव, मिक्सचर,शकरपारे…..हर त्योहार पर अलग नाश्ता…..मुझे याद है उस समय कोई भी आए पूरी प्लेट भर कर नाश्ता तब तक खिलाया जाता रहता था जब तक खत्म नहीं हो जाता था…!और मिलने जुलने वाले भी बेहिसाब आते थे..!


मुझे याद ही नहीं आ रहा कि मां ने कभी भी किसी काम को करने में जरा सा भी आलस किया हो,गुस्सा दिखाया हो,रौब जमाया हो या अपना गुण गान किया हो…..बहुत ही सहजता सरलता विनम्रता और उत्साह से हर काम को अपना काम समझ कर करना सबको खुश करना उनकी आदत में स्वभाव में रचा बसा था!!

मां की पसंद क्या है किसी को नहीं पता…!हमारे शौक ही उनके शौक थे..हम सबके खाने पीने से लेकर पढ़ाने लिखाने गीत संगीत सिखाने और हमेशा हम लोगों की बाते सुनने का टाइम रहता था उनके पास..हमेशा उत्साह से खुशी से हमें समझाना उत्साहित करना उनकी आदत में शामिल था.. कभी भी उन्हें खीझते या चिल्लाते नही पाया…!  एक बार काफी बड़े होने पर मां के जन्मदिन पर हमने पूछा था मां आप हम सबके जन्मदिन पर हमारी ही पसंद की चीजे बनाकर खिलाती हैं आज आपका जन्मदिन है आपके पसंद की चीज बनेगी मैं बनाऊंगी आप बताइए तो..!..सुनकर मां बहुत खुश हुई थी ..बोलीं मेरी बेटी अपने हाथ से जो भी बना कर खिला देगी बस वही मेरी पसंद है…मैं नाराज़ हो गई थी क्या मां आप अपनी पसंद क्यों नही बताती..!तो फिर हंस कर कहा था उन्होंने..अरे बेटा अपने हाथ की एक कप अदरक वाली चाय बना ला साथ में पियेंगे ….!

….मां ..मां ..ही हैं सच में!!और मैं उनकी बेटी अपने बारे में सोच रही हूं अपने लिए टाइम निकालना क्या होता है क्या ये सब अपने नहीं है!! खुशी और उत्साह से कोई भी काम करने पर थकान नहीं लगती सही कहती हैं मां…!अभी तो कितना अच्छा समय है बच्चों के लिए कुछ बनाना उनके साथ टाइम बिताना उनकी बातें सुनना …यही सब तो अपने लिए टाइम निकालना है!!प्रिया का मन एक नए उत्साह से भर गया!!

……..प्रिया इन्हीं मीठे ख्यालों में ऐसी खो गई थी कि डोर बेल की आवाज़ ही नहीं सुनाई दे रही थी…. मां मां हम लोग आ गए बहुत मज़ा आया आपके हाथ से बनी सारी चीजे इतनी स्वादिष्ट थी कि सब आपकी तारीफ कर रहे थे सच में मां आप से बढ़िया कोई नही बना सकता …..मेरी मैम तो कह रही थीं तुम्हारी मां से कुकिंग कोर्स सीखूंगी…..आपने कहां से सीखा है मां इतनी बढ़िया कुकिंग…..सोना ने तो मुझे निहाल ही कर दिया था …मैने ..!मैने अपनी मां से सीखा है कुकिंग ….!अरे नानी से !नानी तो नानी है ….आपसे भी बढ़िया कुकिंग करती हैं अभी और सीखना है आपको उनसे …. दोनों ने समवेत स्वर में नानी की तारीफ करते हुए मेरी पाक कला जिसकी थोड़ी देर पहले तारीफ कर रहे थे सिरे से खारिज कर दिया था….!और मैने भी उनकी ये बात तहे दिल से स्वीकार की थी ….

मां का काम के प्रति उत्साह याद करके और बच्चों की उपस्थिति ने मुझमें नई ऊर्जा भर दी और बस मैंने भी मां के फेवरेट गीत बजाते हुए सारा बिखरा काम फटाफट निबटा लिया और बच्चों की पसंद का नाश्ता बनाने चल पड़ी।

#अपमान 

लतिका श्रीवासत्व 

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