आजकल समय बहुत बदल गया है। सब हिस्सा, धन, संपत्ति के ही भूखे हों ऐसा लगता है कि आत्मा में प्रेम की जगह मेरा तेरा ने ही अपनी जगह बना ली हो!
विभा के पिता जी एक दुकानदार है।उनका अच्छा बिजनेस है दो बेटे हैं उनके लिए अलग-अलग दुकान करा दी है।
बड़ा बेटा अलग मकान में रहता है।वह कभी कभार औपचारिकता के लिए आता और कहता कि हमें भी घर में हिस्सा चाहिए। वह घर में कुछ खर्च करता न था ।
हमेशा पापा के साथ खींचा तानी करना उसकी आदत हो गई। ये हिसाब भी नहीं देता कि दुकान में कितनी बिक्री हुई। इस तरह पापा ने उसे घर से बाहर कर दिया। और अलग से दुकान भी खुलवा दी।
अब वो घर से दूर दूर रहने लगा। उसे हमेशा लगता कि पापा कहीं घर रवि के नाम न कर दें।
अब छोटी बहू बेटे घर में रह रहे थे।पर उनके मन में भी लालच था।
अब रवि घर में रहने के कारण ही मजबूरी में मां की देखभाल कर रहा था। उसके मन में यही रहता कि हम पापा मां की सेवा करेंगे तो घर तो अपना है ही..
इस तरह रवि पापा की दुकान ही संभाल रहा था।
जब से विभा की मां को पैरालिसिस अटैक आया, उनकी हालत बहुत दयनीय सी हो गई है। अब वो न अपने आप ही उठ बैठ पाती,न कुछ ढंग से खाना खा पाती थी ।
दिनों दिन उनकी स्थिति और लाचारी वाली हो गई। पहले तीन महीने अच्छा इलाज चला पर कोई सुधार नहीं हो रहा था।
तब अंकलजी ने सोचा चलो अब डिस्चार्ज करा लेते हैं। काफी पैसा भी इलाज में खर्च हो चुका था। पर उन्होंने सोचा फिजियोथेरेपी घर में हो जाया करेगी।और हर महीने चेकअप करा लेंगे। दवाइयों को भी लें लेंगे।
इस तरह विभा के पापा इन तीन महीने में बहुत परेशान हो चुके थे। उनके बेटे तो केवल औपचारिकता ही पूरी कर रहे थे। कभी बड़ा बेटा, कभी छोटा बेटा आता ।
इस तरह कोई अस्पताल में जिम्मेदारी से रहने कोई तैयार नहीं रहता।
इस तरह बड़े बेटे ने अस्पताल में एडमिट तो करा दिया पर रहने तैयार नहीं….
इसी तरह विभा के पिता अस्पताल के माहौल से परेशान हो चुके थे। वह यहां ऊब चुके थे। अब उन्होंने बड़े बेटे को फोन लगाया। और कहा- ” बेटा मां को डिस्चार्ज कराना आ जाओ।” तब राघव ने कहा -‘ठीक मैं आ जाऊंगा ।’
सुबह डिस्चार्ज कराना था।तब अंकल जी ने राघव से कहा कि “मेरे अकाउंट में पैसे जमा कर दो ।तब राघव कहने लगा हमारे पास पैसे कहां है?”
जो हम जमा करें।
फिर उन्होंने छोटे बेटे से कहा कि” मां को डिस्चार्ज कराना तो कुछ का इंतजाम है, कुछ का करना है।करीब २५०००हजार मेरे अकाउंट में जमा करा दो। बाकी सब हम संभाल रहे हैं। इतना ही कहना था ।”
तभी छोटे बेटे ने जवाब दिया -“देखो पापा आखिर हमारी जरूरत पड़ ही गई। जबकि आप भाई को ज्यादा चाहते हैं। हमेशा राघव…. राघव करते हैं ,
कहां है भैया!!
अब फोन पर पापा की बात सुनकर विभा की मां आंख भर आई ,और उन्हें समझ तो सब आ रहा था। बेटा हमारे किसी काम के नहीं रहे।
जैसे विभा के पापा की बात खत्म होने लगी, तब उनकी नजर मां पर गयी तब वे कहने लगे “अरे क्या हुआ! तुम रो क्यों रही हो?”
पर दुख के भाव छिपाए नहीं छिपते।
उन्होंने ढांढस बंधा कर कहा- “हम तो हैं, चिंता की कोई बात नहीं है।”
अब दोनों को यही महसूस हुआ कि ‘ऐसी औलाद से बेऔलाद होते तो कम से कम कोई आशा तो नहीं रहती।’
फिर विभा अपने मां पापा की लाडली बिटिया होने के कारण वह अस्पताल में रही आई। हर समय सेवा करती ,खाने पीने का ध्यान रखती, समय पर दवाई देती। अब जैसे तैसे विभा के पापा के दोस्तों ने मदद की।
यहां दोनों बेटों के प्रति गुस्सा आ रहा था। पर समय गुस्सा करने का नहीं था फिर विभा ने मां पापा को समझाया कि पापा गुस्सा करने से क्या होगा?
फिर पापा ने अपने आपको बहुत संभाला। पर विभा को इतना रोना आया कि मेरे भाई किस काम के जो जरुरत के समय नहीं खड़े है। अगर मेरे पापा न होते तो मां का क्या होता?
उसे आज इतना रोना आया कि” रोते- रोते कब आंख लग गई थी ।पता नहीं चला था।”
जब विभा की नींद खुली तो उसे पता चला मां का डिस्चार्ज हो गया है।आज भी विभा के माता-पिता बच्चों के सामंजस्य बना कर चल रहे हैं। क्योंकि सब धन संपत्ति तो बच्चों के ही काम आनी ही है।
दोस्तों- बच्चे माता पिता के प्रति अपना फर्ज निभाने की जिम्मेदारी क्यों नहीं निभाते। जबकि माता पिता बच्चों को बड़ा करने से लेकर हर जिम्मेदारी पूरी करने में जी जान लगा देते हैं।
सखियों -मां बाप के लिए बच्चों से बढ़कर कुछ नहीं होता ।उन्हे लगता कि वे हमारा सहारा बनेंगे।
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आपकी अपनी सखी
अमिता कुचया