अपने और पराये का एहसास – पूजा अरोरा

संडे का दिन था सब सुबह देर तक सोए हुए थे।  तभी अचानक से दरवाजे की बेल बजी। 

ममता जी  ने  दरवाज़ा खोला तो देखा दरवाजे पर उसकी  बेटी  मोहिनी खड़ी थी|  हाथ में सूटकेस और दोनों बच्चों के साथ,  

इतने में मोहिनी के पापा विनोद जी   की आवाज़ आयी, “ममता जी  कौन आया इतनी सुबह?”

ममता जी ने मोहिनी को गले लगाया और अंदर लायी| पर विनोद जी ने तो प्रश्नों की बौछार ही लगा दी, “तू कैसे आयी? इतनी सुबह और दामाद जी कहाँ हैं? सब ठीक तो है??”

इतने में उसके भैया- भाभी   भी कमरे से बाहर आ गए  और ननद  को गले लगाकर फिर वही सवाल दोहराए| पर मोहिनी कुछ ना बोली, भरी आँखों से चुपचाप बैठी रही| भाभी  ने जल्दी से उसे पानी दिया और नन्ही अंजलि को बिस्तर पर सुला दिया| राघव को दूध पीने को दिया|

कुछ देर मे सामान्य  होने के बाद मोहिनी ने बताया, “कि माँ मैं अब उस घर में नहीं रह सकती, रमेश कुछ नहीं कमाता, और जो कमाता है, वो शराब में उड़ा देता है, राघव को स्कूल से भी निकाल दिया फीस ना देने के कारण| और यह बताते हुए वह सिसकियाँ भर भर कर रोने लगी|

यह सब सुनकर विनोद जी बोले ,” देख मोहिनी बेटी  जो भी है जैसा भी है अब तेरा वही घर है , धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा”

“पर पापा , 5 साल में कुछ नहीं बदला, मैं थक गयी सहते सहते, अब मुझ से ना होगा, मैं अब उस घर में कभी नहीं जाउंगी यहीं रहूंगी आप सब के साथ|

सुनते ही विनोद जी  गुस्से से तिलमिला उठे ,

” तू पागल हो गयी है क्या बेटियों की शादी मायके में रहने के लिए नहीं की जाती है बेटियां अपने ससुराल मे रहे तभी अच्छा लगता है। 

 इतने सालो से भी रह रही थी तो अब भी वहीं रह “

” पर पापा , अब तो वो पीकर मुझ पर हाथ भी उठाने लग गए देखो कहते हुए उस ने अपनी माँ को निशान दिखाए”



विनोद  जी बोले ” अरे ! इतना तो पति पीकर  कर देते हैं, सब ठीक हो जाएगा | विनोद जी ने अपने बेटे से कहा, “जा अमित नहा कर इसको अभी छोड़ कर आ, इससे पहले की बात और आगे बढ़ जाए| “

अमित फटाफ़ट नहाने चला गया|

माँ बेटी को समझाने लगी,” देख सब को सहन करना पड़ता है ससुराल में, तू नाश्ता कर और जा| तेरे भाई का अपना परिवार है उस पर मेरी बीमारी का खर्चा, मैं तेरे हाथ जोड़ती हूं तू वहीं रह| “

मोहिनी हैरान माँ को देखती रहीं,” माँ मैं खुद कमा कर बच्चे पाल लूँगी, बस आप इस छत के नीचे थोड़ी जगह दे दो| “

पर माँ नहीं मानी और दुनियादारी समझाती रही| मोहिनी हैरान थी कि मेरी माँ तो मुझे खरोंच आने पर परेशान हो जाती थी पर ये क्या आज इनको मेरे शरीर मेरी आत्मा पर पड़े निशान नहीं दिख रहे? “

पर क्या करती, अब वापिस जाने के सिवा और कोई चारा नहीं था, बड़ी आस लेकर मायके आयी थी, कि भाई है माँ बाउजी है पर||

मोहिनी की भाभी  सब कुछ चुपचाप रसोई से नाश्ता तैयार करते करते सुन रही थी|

वह नाश्ता लेकर अपने बेडरूम मे गई और अपने पति अमित से कहा, कैसे भाई हैं आप पापा को क्यों नहीं समझाते मोहिनी को कुछ दिन यही रहने दीजिये। नंदोई जी से बात करेंगे समझाएँगे उन्हे अगर नहीं समझे तो क्या मोहिनी को मरने के लिए छोड़ देंगे क्या ?। मोहिनी भले मेरी ननद है लेकिन मैं उसे अपनी छोटी बहन मानती हूँ।  

 पापा की डांट और तिरस्कार सुन  अनमने मन से मोहिनी, अटैची उठाने लगी तो

भैया- भाभी  का स्वर कानो में पड़ा,

“ठहरो! मोहिनी उस नर्क में अब कभी नहीं जाएगी, वो यहि रहेगी, हमारे साथ| बहुत हुआ 5 साल में जब उसको अक्ल नहीं आयी तो अब वो क्या इसको खुश रखेगा|”



विनोद जी हैरान होकर अमित और अपनी बहू  का मुहँ देखने लगे|

विनोद जी  चिल्लाये , “तुम दोनों पागल हो गये  हो क्या??  ये यहां कैसे रह सकती है?”

” क्यूँ नहीं रह सकती? यह इसका मायका है, और आज भी इसका यहाँ उतना ही हक़ है जितना शादी से पहले था”  भाभी  ने ज़वाब दिया|

पापा  आप भूल रहे  हैं  कि आप की बेटी को सिलाई आती है, दिन में यह सिलाई का काम कर के अंजलि की देखभाल भी करेगी और पैसा भी कमा लेगी और चूंकि अब हम दो औरते घर पे है तो काम आधा आधा बांट लेंगे, दिन में ये सिलाई करेगी और शाम को कुछ बच्चो को ट्यूशन पढ़ा लेगी आखिर इसकी  पढ़ाई किस दिन काम आएगी, इस तरह सब हो जाएगा पर मैं अब इसको उस घर में घुट घुट कर मरने के लिए नहीं जाने दूंगी| “

विनोद जी  पैर पटकते हुए बाहर चला गये ,” तुम औरतों का दिमाग खराब हो गया,  

 हैरान परेशान, मोहिनी सब वाक्या देखती रही| आज उसे याद आया कि भाभी जब नई दुल्हन बन इस घर मे आई थी तो वो सिर्फ 10 साल की थी। भाभी ने हमेशा मुझे छोटी बहन सा प्यार दिया और आज उन्होने बड़ी बहन होने का फर्ज भी अदा कर दिया। 

 आज उसके खून के रिश्ते दूर हो गए और परायी भाभी उसकी तरफदारी कर रही है| आज उसकी आँखों में पश्चाताप के आँसू थे|

उसने भागकर भाभी को गले लगा लिया और उसकी आँखों के सवाल को पढ़ कर भाभी  ने मुस्करा कर ज़वाब दिया “पगली, मैं भी तो एक औरत हूँ|”

पाठकों कई बार हम अपनों को पहचानने में बहुत भूल कर देते हैं, और वक्त आने पर हमें अपने और पराये का अह्सास होता है| 

इस घटना ने उस के बाद ननद-भाभी का रिश्ता हमेशा के लिए बदल दिया| आज उसकी भाभी ने आगे बढ़ कर एक माँ का कर्तव्य निभा दिया|

पूजा अरोरा

1 thought on “अपने और पराये का एहसास – पूजा अरोरा”

  1. पर ये एक कहानी है और कहानी में ही ठीक है। औरत को अपने ससुराल में अपना फर्ज निभाना चाहिए। और सेवा भाव से रहना चाहिए। जरूरत पड़े तो पुलिस को मदद और मायके की मदद से समस्या सुलझाई जा सकती है। पर असली घर उसका पीहर ही है

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