सुहानी, जो पढ़ाई में बहुत अच्छी थी और उसे नौकरी करने का भी शौक था, शादी के बाद जब ससुराल आई, तो उसे अपने ससुराल में यह समझने में देर नहीं लगी कि यहां के लोग पढ़ी-लिखी बहू को आसानी से अपनाने वाले नहीं हैं। ससुराल में वह पहली बहू थी जिसने न केवल उच्च शिक्षा हासिल की थी बल्कि आत्मनिर्भर होने की चाह रखती थी। शादी से पहले अपने माता-पिता के साथ रहते हुए वह अपने करियर और भविष्य के सपने बुन रही थी, लेकिन ससुराल के माहौल ने उसे कुछ और ही सीख दी।
जब शादी की बातचीत हुई, तो सुहानी के पिता ने अपनी बेटी की सीमाओं को मानते हुए यह बात उसकी सास और ननद के सामने रख दी थी कि चूंकि वह हॉस्टल में रहकर पढ़ी है, इसलिए घर के कामों में उसे ज्यादा अनुभव नहीं है, लेकिन वह सीखने के लिए तैयार है। उनके कहे यह कुछ साधारण शब्द थे, लेकिन ससुराल वालों ने इस बात को एक अलग ही नजरिए से देखना शुरू कर दिया। सुहानी की सास और ननद ने उसके पिता के इन शब्दों को लेकर एक तरह का पूर्वाग्रह पाल लिया। उनके मन में यह धारणा बैठ गई कि सुहानी एक पढ़ी-लिखी और नौकरीपेशा लड़की है, जो घर के कामों में बिल्कुल असमर्थ होगी और वह परिवार के तौर-तरीकों में फिट नहीं बैठेगी।
जब सुहानी ने ससुराल में अपनी नई ज़िन्दगी शुरू की, तो उसने पाया कि उसकी सास और ननद छोटी-छोटी बातों पर उसे ताने मारने लगीं। वे हर बात में उसे एहसास दिलाने की कोशिश करती थीं कि वह घर के कामकाज में बिल्कुल निपुण नहीं है और उसे सब कुछ सीखने की जरूरत है। अगर उसने खाना पकाने में कुछ कमी कर दी या किसी काम में थोड़ी भी गलती हो गई, तो उसकी सास तुरंत उस पर तंज कसने लगतीं। यह ताने केवल उसकी सास और ननद तक सीमित नहीं थे, बल्कि मौसी सास और चाची सास भी गाहे-बगाहे उन तानों में अपनी हां में हां मिलाते हुए उसे कुछ न कुछ कह देतीं।
हर बार जब कोई पारिवारिक समारोह होता, तो वह किसी न किसी की बातों से आहत होती। उसके मन में यह बात बैठ गई कि उसकी पढ़ाई और करियर की महत्वाकांक्षा के कारण ही उसे यह सब सहना पड़ रहा है। ससुराल के माहौल में उसे अपनाने की कोशिश की बजाय, उसे बार-बार यह जताया जाता कि वह इस परिवार के लिए बोझ है। इस तरह के तानों से उसका मन धीरे-धीरे व्यथित होता गया। वह दिन-रात सोचती रहती कि आखिर उसने ऐसा क्या गलत किया है, जो उसे हर बार यह सब सहना पड़ता है। इन बातों ने उसके मन को इस कदर प्रभावित किया कि वह बीमार रहने लगी। वह मन ही मन यह महसूस करने लगी थी कि उसकी खुद की पहचान को खत्म करने की कोशिश की जा रही है।
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वह हर ताने को अपने दिल पर ले लेती और अकेले में रोती। उसे लगता कि उसके जीवन की खुशियाँ छिन चुकी हैं, और उसकी ससुराल में उसे कभी अपनाया नहीं जाएगा। उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह उसके पढ़े-लिखे होने की सजा है या उसके आत्मनिर्भर होने की। हर बार जब भी वह कुछ नया सीखने की कोशिश करती, किसी न किसी की कड़ी नजर उस पर होती।
लेकिन, एक समय ऐसा भी आया जब सुहानी ने इस सच्चाई को स्वीकार कर लिया कि ससुराल में रहकर उसे अपनी जिन्दगी को लेकर इस तरह निराश नहीं होना चाहिए। उसे अपने जीवन में बदलाव लाने का एक ही तरीका नजर आया – अपनी पढ़ाई और शौक पर ध्यान केंद्रित करना। सुहानी ने अपनी ताकत को पहचाना और अपने सपनों की मंजिल को पाने के लिए अपने कदम बढ़ा दिए। उसने उन तानों को खुद पर हावी न होने देने का फैसला किया और हर कटाक्ष का जवाब अपनी सफलता से देने की ठान ली।
वक्त बीतता गया और समाज में कई बदलाव आए। जो लोग पहले सुहानी को ताने मारते थे, उनमें से अधिकतर के बच्चे भी अपनी पसंद से विवाह कर चुके थे। और वे अब अपने बच्चों की खुशी में अपनी खुशी तलाशने लगे थे। वे अपने घर में शांति बनाए रखने के लिए अपनी बहुओं की तारीफ करते और उन्हें खुले दिल से अपनाते। सुहानी इस बदलाव को देख कर हैरान थी। यह वही लोग थे जिन्होंने कभी उसे ताने दिए थे, और अब वही अपने बच्चों के साथ आधुनिक सोच का समर्थन कर रहे थे।
अब जब सुहानी इस बदले हुए माहौल में अपने आप को पहले से कहीं ज्यादा आत्मविश्वास से भरा महसूस करती थी, तो उसने एक बात अपने मन में गांठ बांध ली कि वह कभी भी किसी को अपने ऊपर इतना अधिकार नहीं देगी कि वह उसकी जिन्दगी पर अपना असर डाले। उसने समझ लिया कि लोग केवल दूसरों को चोट पहुंचाने और ताने देने का मौका ढूंढते हैं। वह जान गई थी कि अपने आत्म-सम्मान की रक्षा उसके खुद के हाथ में है और उसे किसी और को अपनी खुशी और आत्मविश्वास का निर्णय नहीं करने देना चाहिए।
उसने अब यह तय किया कि उसकी जिन्दगी में अगर कोई चीज उसे प्रभावित करेगी, तो वह उसकी मेहनत और आत्म-सम्मान होगा, न कि किसी और का तंज। वह अब हर नकारात्मक बात को अपने सपनों के साथ जोड़कर एक नया रंग देने की कोशिश करने लगी। अब वह समाज के तानों से दूर, अपनी दुनिया में खुश रहने लगी।
सुहानी की यह कहानी उन सभी महिलाओं के लिए एक प्रेरणा है, जो समाज की नकारात्मकता का सामना करती हैं। उसने यह साबित किया कि अगर आपके पास आत्म-संयम, शिक्षा और आत्म-सम्मान है, तो आप किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं। सुहानी ने दिखा दिया कि हमें कभी भी अपने आत्म-सम्मान से समझौता नहीं करना चाहिए और दूसरों के तानों को अपने सपनों की दिशा में प्रेरणा बना लेना चाहिए।
मौलिक रचना
डॉ. पारुल अग्रवाल,