Moral stories in hindi : बालकनी से झांक कर देखा , दो तीनअधेड़ उम्र की औरतों की महफिल सजी थी ,एक की हंसी दूसरे की मुस्कुराहट माहौल को खुशनुमा बना बना रही थी ।अच्छा सा लगा थोड़ी देर में एक उठी सबके लिए चाय बना लाई मिलजुल कर चाय की चुस्की के साथ एक बार फिर जोरदार ठहाको का नाश्ता हुआ।
यह था मेरे नए पड़ोस का नजारा अभी एक महीना ही हुआ था, यहां अपने घर में शिफ्ट हुए मन में टीस थी कि शायद इससे अच्छी जगह भी ले सकते थे हम घर। लोग थोड़े पिछड़े हुए हैं तो माहौल कैसा होगा। पहले का माहौल अपने आप में सिमटा हुआ सा था।
यहां की चाय नाश्ते वाली गोष्ठी भायी थी मुझे अब तक यह नहीं पता कर पाई थी कि किस घर में कौन रहता है कभी किसी के दरवाजे रौनके होती तो कभी किसी के दरवाजे हंसी गूंजती।
मैं और मेरे पति दोनों ही संकोची स्वभाव के कम बोलने वाले थे और दोनों बच्चों की स्कूल किताबों की अपनी अलग दुनिया थी। कामकाज के बाद घर ही दुनिया थी हमारी। बहुत कम बाहर निकलते थे हम लोग।
जब अपनी दुनिया को अपने मुताबिक सजा लिया तो खाली समय में बालकनी में खड़ी होती , शायद नया माहौल शायद कुछ समझ में आ जाए।
“आ जाया करो नीचे ,घर तो जमा लिया होगा अब तक “।गोष्ठी के एक सदस्य की नजर पड़ी तो मुझसे बोल उठी मैं बस मुस्कुरा दी और हां में सर हिला दिया।
नए माहौल से ज्यादा परिचित नहीं थी मैं तो समझ नहीं आता था कि जाऊं या ना जाऊं। पर रोज कोई ना कोई अपनों की सी मुस्कान लिए आवाज लगा ही देती थी मुझे।
नया पड़ोस अपना सा लगने लगा, भाने लगा था मुझे, महिलाओं की महफिल की मुस्कुराहट मेरे होठों पर भी आने लगी।
अब मन साझा होने लगे, सस्ती सब्जी की गुहार अच्छे डिजाइन की साड़ी, सूट सब में मेरा हिस्सा भी होने लगा ।अपना परिवार गांव में छोड़कर आने की पीड़ा थोड़ी-थोड़ी रिस कर कम होने लगी थी।
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नया पड़ोस अब एक नया परिवार बन गया था गर्मी की उमस मिटाने वाला नींबू पानी हो या बरसात के रिमझिम के चलते पकोड़े की खुशबू, सर्दियों में मूंगफली ,गजक सब एक होने लगा अब।
होली मे सब जगह गुलाल ही गुलाल और खुशी ही-खुशी नजर आती।
दिवाली के पटाखे की गूंज और मिठाई की मिठास दुगनी हो गई थी दिवाली की रात लक्ष्मी माता का आशीर्वाद ले हम सब सुख सपने देखने लगे।
शोर से आंख खुली तो गली में पड़ोस इकट्ठा था बगल वाला लड़का जो आंटी कम दोस्त ज्यादा समझता था बुरी तरह किसी को पीट रहा था, दाई तरफ की अम्मा व उनका परिवार, सामने वाला परिवार ,सब जमा थे हमें समझ ना आया क्या हो रहा था।
उतर कर नीचे पहुंचे तो अपने ही दरवाजे पर नाकाम चोरी के निशान देख डर गए थे। साथ ही आश्चर्य और खुशी भी थी कि आज मेरे नए परिवार ने दिवाली की रात दीवाला निकलने से बचा लिया और आश्चर्य यह कि हमें पता भी नहीं चला और इतनी बड़ी मुसीबत से बच भी गए हम।
जिस पराए नए माहौल में रहने से डर रही थी अब वह मेरे परिवार का अभिन्न हिस्सा बन चुका था ।सर्दी की गुनगुनी धूप अपनापन बन ढांढस दे रही थी साथ ही ठंडक भी कि हम यहां अकेले नहीं हैं।
ऐसे में आया जानलेवा कोरोना जिसकी दूसरी लहर मेरे पति को चपेट में लेने को तैयार खड़ी थी। मेरे हाथ पैर सब सुन्न हो चुके थे कि क्या करूं ।अकेले कहां-कहां का इंतजाम करू तब वह परिवार जो मेरे घर के बराबर में था ।जिसके आंगन को देख मुझे अपना आंगन याद आता था, तीन बेटे बहु के साथ बच्चे, अम्मा बाबूजी बिल्कुल अपना सा लगा था देखकर ।अपने देवर देवरानी की याद आने लगती थी इन्हें देखकर ।इस परिवार से थोड़ी झिझक अभी बाकी थी ,संबोधन नहीं बटे बटे थे क्योंकि अब तक।
बड़े बेटे ने आवाज लगाई “भाभी कुछ भी, कोई भी जरूरत हो तो झिझकना मत सब ठीक हो जाएगा परेशान ना हो”। खुशी थी एक नया रिश्ता मिलने की और ऐसे मुश्किल वक्त में कोई मेरे साथ खड़ा है इस बात की भी ।उसके बाद घर में सब्जी ,फल दवाइयों की कभी कमी ना रही ।रोज उचित दूरी बनाकर हाल-चाल बटने लगे ,नहीं तो फोन पर मन हल्के होने लगे पर साथ ना छोड़ा इस नए परिवार ने मेरा और मैं जीत गई इस नई रिश्तो की असमंजस से भी और बीमारी से भी।
#पराये _रिश्ते _अपना _सा _लगे
तृप्ति शर्मा