स्कूल की घंटी बजते ही जहाँ सब बच्चे घर जाने की जल्दी में एक दूसरे से पहले भागने की दौड़ में धक्का मुक्की कर रहे थे वहीं शाश्वत धीरे धीरे बिना किसी उत्साह के स्कूल के मेन गेट की तरफ बढ़ रहा था। ऐसा लग रहा था मानो उसे घर जाने की कोई जल्दी ही नहीं है। गेट पर पहुँच कर उसने देखा कि सब बच्चे बस पे बैठ चुके थे। उसके बस पर चढ़ते ही बस चल पड़ी। वह चुपचाप पीछे वाली सीट पर बैठ गया।
एक साल पहले वह भी और बच्चों की तरह ही कूदता फाँदता बस पर चढ़ता। खिड़की वाली सीट के लिए बच्चों से बहस करता था लेकिन अब ऐसा नहीं है। एक साल में बहुत कुछ बदल गया है अब वह बड़ा और समझदार हो गया है। कभी किसी बात के लिए जिद भी नहीं करता।
एक साल पहले वो स्कूल से उतरकर “अपने घर “जाता था जहाँ उसके मम्मी पापा एक साथ रहते थे मम्मी बस स्टाॅप पर खड़ी अधीरता से उसका इंतजार कर रही होती।कितना कितना सुखद खुशनुमा एहसास था उस घर में रहने का। बहुत-बहुत प्यार करते थे मम्मी पापा दोनों उससे, कितना मजा आता था। बस एक ही बात अच्छी नहीं लगती थी कि कभी-कभी उन दोनों में झगड़ा हो जाता था और कभी-कभी तो इतना बढ़ता कि घर में खाना भी नहीं बनता था।
तब मम्मी उसे दूध में कार्नफ्लैक्स डालकर खाने को देती जो वो खाता नहीं और नींद का बहाना बनाकर चुपचाप अपने कमरे में लेटा रहता और उनके झगड़ा खत्म होने का इंतज़ार करता। उस दिन मम्मी उसके कमरे में उसके पास आकर सोती। कभी-कभी दो चार दिन और कभी-कभी उससे भी ज्यादा। बीच बीच में उसे चिपका कर रोने भी लगतीं। वह भगवान से प्रार्थना करता कि उसके मम्मी पापा का झगड़ा जल्दी खत्म हो जाए।
उसे यह समझ नहीं आता कि जब उसका गली या स्कूल में किसी से झगड़ा हो जाता था और वह मम्मी को बताता था तो वो हमेशा समझाती थी कि ऐसा नहीं करना चाहिए। “बैड बाॅय” ऐसा करते हैं और पापा भी यही कहते लेकिन फिर वे आपस में क्यों लड़ते रहते हैं क्या वे “बैड बाॅय और बैड गर्ल” हैं?
एक दिन तो झगड़ा इतना बढ़ गया कि मम्मी
उसके पास सोने नहीं आई बल्कि उसे लेकर रात में ही नानी के घर चली गई। वैसे तो उनके जाने से नानी के घर सब बहुत खुश होते थे प्यार दुलार करते थे लेकिन उस दिन सब उदास थे। किसी ने उससे ज्यादा बात भी नहीं की फिर कुछ दिन तक वे वहीं रहते रहे।
उसे वहीं से स्कूल भेजा जाता और वहीं वापस लाया जाता। पापा और घर की उसे बहुत याद आती। उसने घर वापस चलने को मम्मी को कितनी बार कहा लेकिन मम्मी हमेशा यही कहती कि तुम्हारे पापा लेने आएँगे तब चलेंगे।
उसने पापा से भी फोन पर बात कर आने को कहा तो उन्होंने कहा कि वो ऑफिस ट्रिप पर हैं दो चार दिन तक ही वापस आ पाएँगें ।
एक दिन पापा का फोन आया, मम्मी से बात हुई फिर मम्मी ने कहा “कल संडे है तुम्हारे पापा तुम्हें घुमाने लेकर जाएँगे जल्दी तैयार हो जाना ।”
अगले दिन पापा गली के मोड़ तक आए। मम्मी ने मेड के साथ उसे वहाँ तक भेज दिया। वह पापा से मिलकर बहुत खुश हुआ पापा भी उसे गले लगा कर रो पड़े। उस दिन पापा ने उसके साथ बहुत मस्ती की। क्रिकेट खेले, बोटिंग कराई, झूले झुलाए, पिज्जा और आइसक्रीम खिलाई। पहले वो पापा से कुछ माँगता था तो बहुत मुश्किल से जिद करने पर ही ले के देते और आज उससे उसकी पसंद पूछ कर खुद जबरदस्ती दिलवा रहे हैं।
शाम को पापा गली के नुक्कड़ तक छोड़ने
आए तब उसने पापा से कहा कि “आप साथ आ जाओ मम्मी को साथ लेकर अपने घर चलते हैं। मुझे यहाँ अच्छा नहीं लगता है अपने घर की बहुत याद आती है।” तब पापा ने प्राॅमिस किया कि वो कल आकर उसे और मम्मी को साथ ले जाएँगे लेकिन शाश्वत को बाद में समझ आया कि वो झूठ बोल रहे थे।
वे उन्हें लेने कभी नहीं आऐ। हाँ उस दिन की तरह संडे को घुमाने जरूर ले जाते और शाम को छोड़ जाते। उसका “मम्मी के बगैर पापा के साथ जाने का मन नहीं करता और पापा के बगैर यहाँ रहना अच्छा नहीं लगता”। वैसे यहाँ सभी नाना-नानी, मामा-मामी सभी उसका बहुत ध्यान रखते लेकिन “अपने घर” वाली फील नहीं आती।
एक दिन पापा उसे लेने आए तो घुमाने न ले जाकर घर ले गए जहाँ एक स्मार्ट सी आंटी ने दरवाजा खोला। पापा ने कहा “हैलो बोलो बेटा आंटी को।” उसने बेमन से बोल तो दिया लेकिन उसे बिलकुल अच्छा नहीं लगा। हालाँकि उन आंटी ने उसे चाॅकलेट, फ्रूटी और टाॅयस दिए तब भी वह उन्हें बिल्कुल अच्छी नहीं लगी क्योंकि वह मम्मी की तरह ही उनके किचेन में काम कर रही थीं और मम्मी के बेडरूम और अलमारी में मम्मी के सामान की जगह उनका सामान लगा हुआ था।
इतने दिनों से जिस घर के लिए वो तड़प रहा था आज उसका वहाँ से भाग जाने के लिए मन बैचेन हो रहा था। उसने पापा से एग्जाम की तैयारी करने का बहाना बनाया और घर जल्दी वापिस आ गया। उसने भी रास्ते में पापा से ज्यादा बात नहीं की और पापा भी उसका उखड़ा मूड देखकर कुछ ज्यादा नहीं बोल पाए। घर आकर उसने मम्मी को आंटी के बारे में बताया लेकिन ऐसा लगता था जैसे उन्हें इस बात का पहले से पता था। कभी-कभी नाना नानी, मम्मी, मामा सब बैठकर आपस में अजीब सी बातें किया करते थे, उसे तब कमरे में भेज दिया जाता लेकिन कुछ शब्द उसके कानों में पड़ते रहते जैसे- लीगल नोटिस, वकील, कोर्ट वगैरह और पापा का नाम भी बीच बीच में आता रहता जिससे उसे यह आभास तो हो गया था कि मम्मी पापा के झगड़े से सम्बंधित कोई इशू है।
एक दिन मम्मी के ऑफिस के एक दोस्त घर आए। उन्होंने उससे बहुत देर तक बातें की उसे बहुत प्यार किया, उसके साथ लूडो खेला और पक्की वाली दोस्ती कर ली।
वे अब अक्सर ही आने लगे। कभी-कभी सिर्फ मम्मी को और कभी-कभी दोनों को ही साथ घुमाने ले जाते। मूवी दिखाते, रैस्टोरेंट ले जाते उसके साथ गार्डन में बहुत मस्ती करते। उसके बिना माँगे ही उसे बहुत सारे मंहगे गिफ्ट ले कर देते। मम्मी भी उनके साथ बहुत खुश दिखतीं।
वह कभी-कभी सोचता कि क्या मम्मी को पापा और घर की बिलकुल याद नहीं आती है? वो कहता भी कि मम्मी वापिस घर चलो तो मम्मी रोने लगती कि अब वो घर हमारा नहीं है उसे समझ तो न आता कि क्यूँ ? लेकिन मम्मी को और उदास नहीं करना चाहता था इसलिए वो चुप हो जाता।
फिर मम्मी ने एक दिन उसे बताया कि पापा ने उस वाली आंटी से शादी कर ली है जिन्हें तुमने उस दिन वहाँ देखा था। वह यह सुनकर अवाक रह गया और बहुत-बहुत दुखी भी, फिर भी बहादुर बच्चों की तरह मम्मी के आगे रोया नहीं लेकिन वीकेंड पर पापा के साथ जाने में कभी तबियत, कभी एक्जाम का बहाना लगा कर मना कर देता।
एक दिन मम्मी ने उससे पूछा कि तुम्हें नितिन अंकल कैसे लगते हैं? उसने कहा “बहुत अच्छे” “तो बेटा अगर तुम्हें एतराज न हो और तुम्हें बुरा न लगे तो हम दोनों शादी कर लें ?”
उस समय उसे समझ नहीं आया कि यह बात उसे अच्छी लग रही है या बुरी?
वह हाँ कहे या ना?
वह खुश होए या रोए?
फिर भी मम्मी को खुश देखने के लिए उसने हाँ में सिर हिला दिया। मम्मी ने उसे गले लगा कर बहुत-बहुत प्यार किया।
मम्मी की शादी का दिन भी आ गया। मम्मी बहुत सुन्दर, बिल्कुल फिल्म की हीरोइन जैसी लग रही थीं। नाना-नानी, मामा-मामी सभी बहुत खुश थे पर पता नहीं क्यों उसकी आँखो से ही बार बार आँसू छलक छलक पड़ रहे थे।
वह कोने में एक तरफ बैठा सोच रहा था कि पहले “घर अपना नहीं रहा फिर पापा अपने नहीं रहे और आज मम्मी भी अपनी नहीं लग रही।”
मम्मी शादी के बाद अंकल के घर चली गई उसे कहकर कि एक दो दिन में उसे साथ ले जाएँगी और दो दिन बाद उसे ले भी गई। अंकल का घर बहुत बड़ा था। घर क्या आलीशान कोठी थी। अंदर लाॅन और कमरे भी बहुत बड़े बड़े थे। उसका कमरा भी बहुत खूबसूरत था। वही अंकल ने उससे उम्र में कुछ बड़े एक लड़के से परिचय कराया “शाश्वत इनसे हैलो करो यह तुम्हारे बड़े भाई सौजन्य हैं।”
शाश्वत ने जैसे ही हैलो करने को हाथ बढ़ाया वह गुस्से में भुनभुनाता वहाँ से चला गया। शाश्वत ने बहुत अपमान महसूस किया, अंकल ने तो उसे कुछ नहीं कहा लेकिन वो हैरान था कि मम्मी को भी ज्यादा बुरा नहीं लगा। वह सौजन्य तो मम्मी से भी बात नहीं कर रहा था। सुबह नाश्ते की टेबल पर भी उसने किसी को हैलो भी नहीं कहा बल्कि मम्मी ही “बेटा बेटा” कह कर उसकी खुशामद कर रही थी। उसे मम्मी पर भी गुस्सा आ रहा था कि मम्मी उसको इतना भाव क्यों दे रही है?
वो मम्मी की बात का जवाब भी बदतमीजी से ही दे रहा था और उसे भी लगातार घूरे जा रहा था जिसकी वजह से उसके गले से नाश्ता नीचे नहीं उतर पा रहा था। इसके बावजूद भी न तो अंकल न ही मम्मी ने उसे टोका एसे करने के लिए। उसे मम्मी के इस व्यवहार से बहुत बुरा लगा। दिन में उसने मम्मी से कहा कि “हम यहाँ नहीं रहेंगे इससे तो नानी के घर में ही ठीक है वहाँ कोई अपमान तो नहीं करता”। लेकिन मम्मी ने उससे कहा कि “अब यही उनका घर है हाँ अगर वो यहाँ comfortable नहीं है तो वहाँ चला जाए। वह एक दो दिन में आकर उससे मिलती रहेंगी और संडे को पूरा दिन वहीं उसके साथ बिताएगीं।”
यह जवाब सुनकर मानो शाश्वत के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई ।क्या मम्मी उसके बगैर यहाँ रहेंगी, जो मम्मी एक दिन भी कभी उसके बगैर कहीं नहीं रही वो आज ऐसे कह रही हैं ? उसने भी गुस्से में दोबारा उन्हें साथ चलने को नहीं कहा ।नानी के घर जाते समय रोया भी नहीं ।अगर वो उसके बगैर रह सकतीं हैं तो वह भी उनके बगैर रह के दिखाएगा।
अब वह नानी के घर ही रहता है। हालाँकि मम्मी के बगैर उसे वहाँ भी बिलकुल अच्छा नहीं लगता और फिर नाना नानी के अलावा वहाँ के बाकी सदस्यों का व्यवहार भी पहले की तरह नहीं है।
मम्मी बीच बीच में उससे आकर मिलती रहतीं हैं कभी-कभी उसे अपने साथ भी ले जातीं हैं। पापा भी किसी संडे को उसे साथ ले जाकर घुमाते फिराते हैं लेकिन अब वो किसी के साथ भी मस्ती, एंजाॅय नहीं कर पाता।
एक दिन उसका दोस्त अमन उसे कह रहा था पता नहीं ऐसे ही या टाॅन्ट कर रहा था कि
” तेरे कितने मजे हैं यार तेरे दो-दो मम्मी, दो-दो पापा और तीन-तीन घर हैं जब चाहे जहाँ रह ले जिससे मर्जी कुछ भी माँग ले”।
इस पर ऊपर से तो उसने यही कहा कि “हाँ
मुझे बहुत मजा आता है कभी कहीं कभी कहीं चला जाता हूँ।”
लेकिन अंदर से उसका मन फूट फूट के रो रहा था कि “तीन घर होते हुए भी उसका एक भी घर नहीं हैं एक घर पापा का है जहां नई मम्मी की नेम प्लेट लगी है दूसरा जो मम्मी का घर है जहाँ अंकल और उनके बेटे का वर्चस्व है और नानी के घर में तो उसे एक मेहमान की तरह ही ट्रीट किया जाता है।”
उसे नहीं, बिलकुल नहीं चाहिए तीन घर वाला मजा।
उसे तो “अपने मम्मी” “अपने पापा” वाला “अपना घर” चाहिए।
पूनम अरोड़ा