रवीना के रिटायरमेंट का दिन था, फेयरवेल के लिए आफिस आयी थी। माधवी ने आकर गले मे फूलों का हार डाला,
और तालियों की गूंज उंसकी आंखों में धुंधलापन ले आयी थी। आफिस के हर कलीग ने उंसकी तारीफ में दो शब्द कहे।
फिर सबसे बिदा लेकर वो अपनी कार में घर जाने को बैठ गयी। कार बेटा ड्राइव कर रहा था और वो आंखे मूंदे आराम करने के मूड में थी।
अचानक एक बड़ी सी सोसाइटी के सामने गाड़ी रुकी, रवीना ने बेटे से कहा, “अभी घर चलो, नवीन बहुत थक गयी हूँ।”
“हां, मम्मी, घर ही तो आये हैं।”
आश्चर्य चकित हो मंत्रमुग्ध सी रवीना बेटे के पीछे चल पड़ी
लिफ्ट से बीसवें फ्लोर पर बेटा एक फ्लैट के पास ले आया। वहां का माहौल देख रवीना हैरत में थी, उंसकी बहू नीना और कई सखियाँ दरवाजे पर खड़ी थी, नीना पूजा की थाल में दीया रखकर उसकी आरती उतार रही थी
और उसके नेमप्लेट पर अक्षत और रोली से टीका करवाया, सबका मुहँ मीठा हुआ। अंदर जाकर उसने बेटे से कहा,
“पता तो था, घर तो मैंने ही बुक करवाया था, पर इतनी जल्दी मिल जाएगा, तुमलोग मुझे सरप्राइज दोगे, ये नही पता था, अब पुराने घर से सब समान यहाँ लाना है।”
“मम्मा, कार से एक दो आपके सूटकेस मैं लाया हूँ, आप कमरे में आराम करो।”
और रवीना जाकर अपने कपड़े देखने लगी, उसी बीच एक फ्रेम में फ़ोटो दिखी और वो उस फ्रेम में अपने अतीत को देखने लगी।
उस दिन कुछ तबियत भारी थी, नवीन एक वर्ष का था, कोई हेल्प भी नही थी, उसने शाम को खिचड़ी बना ली। खाने की थाली देखते ही सुधीर गरजने लगे, दिनभर घर मे आराम करती हो, एक काम भी ढंग से नही होता, जानती हो मुझे खिचड़ी अच्छी नही लगती, सब्ज़ी क्यों नही बनी, रोटी क्यों नही बनी।
यही सीखकर आयी हो मायके से दिनभर सोना और खिचड़ी बनाना। उसने कहा भी तबियत ठीक नही है, सुबह से इन दिनों मेरे पेट मे बहुत दर्द हो रहा है।
पर वो कठोर शख्स ने अपने हाथों से मुलायम बालो को खींचना शुरू किया और कर्कश स्वर में आवाज़ आती रही, अभी निकाल दूं तो कहीं रहने की जगह भी नही मिलेगी, मेरे घर मे रहकर मेरी ही बात नही मानती है।
उसके बाद पूरी रात आंसू बहते रहे और सुबह वो अपना चेहरा धोते धोते ही आत्मविश्वास से एक फैसला ले बैठी।
आज उंसकी आत्मा पर चोट पहुँची थी। दिमाग मे एक ही बात गूंज रही थी, उसे अपना घर बनाना है।
सुधीर के आफिस जाने के बाद अपना सामान और नवीन के साथ वो मायके आ गयी। दूसरे ही दिन एक आफिस में अपने टेलीफोन ऑपरेटर के सर्टिफिकेट के
साथ इंटरव्यू के लिए बैठी थी और उसके सर्टिफिकेट्स देखकर वहां उसे जॉब मिल गयी फिर उसने मुड़कर नही देखा। प्रमोशन के बाद बहुत आगे बढ़ती रही, साथ साथ कई डिग्री और प्रोफेशनल कोर्स भी कर लिए।
दिल पर जब चोट लगती है तो एक महिला बहुत कुछ कर सकती है, उसने दिखा दिया। फिर कई बार सुधीर का फ़ोन आया,
आ जाओ तुम्हारे और नवीन के बिना दिल नही लगता, पर वो नही गयी। उसने प्रण लिया था, जबतक अपना घर नही बनेगा, मैं रुकूँगी नही, जहां से मुझे कोई निकाल नही पायेगा।
और आज रवीना ने कर दिखाया वो बहुत खुश थी।
अपना घर अपना ही होता है।
स्वरचित
भगवती सक्सेना गौड़
बेंगलूरु