अपना धन-पराया धन – बालेश्वर गुप्ता  : Moral Stories in Hindi

 सुनो विवेक,मेरा रिज़र्वेशन कैंसल करा दो,मैं मम्मी के यहां नही जा रही हूँ। क्यों क्या हुआ शालिनी?तुमने ही तो कहा था,बहुत दिन हो गये, भैया भाभी,मम्मी के पास गये।तुम क्या देख नही रहे हो,माँ को परसो से बुखार है,भला ऐसे में मैं कैसे जा सकती हूँ? अरे माँ के पास तो शिखा आ जायेगी।उनकी बेटी पास रहेगी तो फिर तुम्हे कैसी चिंता?

      शिखा भी आ जा जाये, ये तो और अच्छा,पर माँ की तबियत खराब हो और मैं उनके पास न रहूं,ये संभव नही।

        विवेक और शालिनी की शादी प्रेम विवाह नही थी।दो वर्ष पूर्व विवेक अपनी माँ और पिता के साथ शालिनी को देखने गया था,तो सबको शालिनी एक नजर में ही भा गयी थी।सुमधुर व्यवहार,सलीका सबको पसंद आया था।विवेक तो अपनी निगाहे शालिनी के चेहरे से हटा ही नही पा रहा था।शालिनी भी यह महसूस कर नजरे नीची कर हल्के से मुस्कुरा रही थी।विवेक और शालिनी ने ही नही एक दूसरे को पसंद किया,वरन दोनो परिवारों ने इस रिश्ते को अपनी रजामंदी दे दी।उचित मुहर्त में विवेक और शालिनी की धूमधाम से शादी की रश्में पूर्ण कर दी गयी।

     पहले ही दिन माँ ने शालिनी को अलग बुलाकर कहा देखो शालिनी अब तुम इस घर की बहू हो,अब इस घर की जिम्मेदारी तुम्हारी।घर की प्रतिष्ठा-अप्रतिष्ठा तुम्हारे ऊपर।पर तुम चिंता बिल्कुल भी मत करना,सहयोगी रूप में मैं तुम्हारे साथ खड़ी रहूंगी। याद रखना शालिनी तुम बहू हो बेटी नही।बेटी तो पराया धन होती है, फिर चली जाती है और बहू ही तो अपना धन होती है, घर की शान होती है।

      अचंभित सी शालिनी माँ का मन्तव्य समझ उनसे माँ-माँ कहती चिपट गयी।अब तक तो वह सुनती आयी थी कि फलाँ ने अपनी बहू को बेटी माना है, यहां माँ ने अलग ही परिभाषा गढ़ कर उसे बहुत ऊंचा दर्जा पहले ही दिन दे दिया था।

      विवेक के पिता तो विवेक की शादी के 6 माह बाद ही स्वर्ग सिधार गये।शालिनी गर्भवती हो गयी थी।माँ शालिनी का पूरा ध्यान रखती।शालिनी को ध्यान आ रहा था कि जब उसकी ऑपरेशन द्वारा डिलीवरी होनी थी तो माँ बहुत ही परेशान थी,बोल तो कुछ नही रही थी, ऑपरेशन थियेटर में जाने से पहले बस माँ बार बार शालिनी के पास आती और उसके सिर पर हाथ फिरा कर बाहर चली जाती।शालिनी इतने दिनों में माँ के मनोभावो को खूब समझने लगी थी,वह माँ की परेशानी समझ रही थी।शालिनी ने माँ का हाथदबाकर मौन रूप में माँ को आश्वस्त किया कि सब ठीक ही होगा।

      ऑपरेशन सफल रहा,शालिनी ने पुत्र को जन्म दिया था।विवेक और शालिनी के परिवार के लोग सब बेहद खुश थे,माँ मुन्ना को गोद मे भी लेकर शालिनी के पास ही रहती,उसकी हर जरूरत का ध्यान रखती।हॉस्पिटल से शालिनी के घर आने पर माँ अगले ही दिन विवेक को शालिनी के पास छोड़कर मंदिर गयी,बाद में पता चला कि माँ ने शालिनी की कुशलता पर प्रसाद बोला था।शालिनी की आंखों में आंसू छलक आये,बहू से इतना प्यार।माँ ने ठीक कहा था बेटी तो पराया धन होती है, अपना धन तो अपनी बहू होती है।

       मुन्ना चार माह का हो गया था,शालिनी के परिवार के लोग शालिनी को कुछ दिन रहने के लिये बार बार आमंत्रित कर रहे थे।इसी कारण विवेक ने शालिनी के जाने के लिये रिज़र्वेशन करा दिया था।

      तीन दिनों से माँ को बुखार था,मुन्ना छोटा था,सो विवेक ने अपनी बहन शिखा को आने के लिये फोन कर दिया था।शिखा भी आज ही आ जाने वाली थी,पर माँ बीमार हो और वह चली जाये ये शालिनी सोच भी नही सकती थी।इसी कारण शालिनी ने अपना मायके जाना टाल दिया।जब शालिनी ने माँ को बताया कि वह मायके नही जा रही है,तो माँ के चेहरे की रौनक देखने लायक थी।शालिनी को आज माँ के चेहरे में एक मासूम सा चेहरा दिखायी दे रहा था।दोनो एक दूसरे की भावनाओ को बिना जताये समझ रही थी।

     इन भावनाओ से अनजान विवेक अपनी बहन शिखा को लेने स्टेशन चला गया और शालिनी लपक कर माँ के पास आकर बैठ गयी।

बालेश्वर गुप्ता,नोयडा

मौलिक एवं अप्रकाशित

#घर का आंगन बहू से सजता है तो ससुराल भी तो सास के बिना फीका होता है* वाक्य पर आधारित कहानी:

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