सम्मान-श्वेता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

जितनी तेजी से ट्रेन पटरियों पर दौड़ी जा रही थी उतनी ही तेजी से सपना भी अपने यादों में खोई जा रही थी। आज से दो साल पहले, जब वह हाथों में ट्रॉफी लिए दौड़े-दौड़े घर पहुँची थी- “माँ, पापा, भैया, भाभी कहाँ हो आप सब? देखो मुझे क्या मिला है।” सपना खुशी से चिल्ला रही थी|

माँ ने बाहर आकर कहा – “क्या हुआ सपना क्यों चिल्लाये जा रही हो?”

उसने अपनी ट्रॉफी माँ को दिखाते हुए कहा – “माँ देखो, मैं अपने कॉलेज की कुश्ती में फर्स्ट आई हूँ और सर कह रहे थे कि यदि मैं मेहनत करूँ तो बहुत आगे जा सकती हूँ|”

तभी पापा ने कमरे से बाहर आते हुए गुस्से से कहा “कोई जरूरत नहीं है| अच्छे घरों की लड़कियाँ ये ‘कुश्ती-वुश्ती’ नहीं करती हैं| सीधे से पढाई करनी है तो कॉलेज जाओ नहीं तो घर पर बैठ जाओ|”

माँ और भैया ने भी उनकी हाँ में हाँ मिलाई |

सबकी बातें सुनकर सपना फूट-फूट कर रो पड़ी कि तभी उसे भाभी की आवाज आई, वह पापा के सामने हाथ जोड़े खड़ी थी “पापा सपना को एक मौका तो दीजिये, ये आपको निराश नहीं करेगी|”

पापा ने भाभी को डाँटते हुए कहा “तुम्हारा दिमाग तो नहीं ख़राब हो गया है, नीरा| अब यही बाकी रह गया है, समाज में सब हँसेंगे हमपर|”

“पापा हमें समाज की नहीं सपना की सोचनी चाहिए| अगर महावीर फोगाट भी ऐसा ही सोचते तो क्या गीता आगे बढ़ पाती? जब वे समाज की चिंता किये बिना गीता का साथ दे सकते हैं तो आप क्यों नहीं?”

भाभी के इस सवाल ने पापा को सोचने पर मजबूर कर दिया, कुछ पल विचार करने के बाद उन्होंने कहा “ठीक है नीरा, मैं सपना को एक मौका देता हूँ| लेकिन यदि यह साल भर में खुद को साबित नहीं कर पाई तो इसे ये सब छोड़ना होगा|”

यह सुनते ही सपना के हौसलों को नई उड़ान मिल गयी| उसने जी-तोड़ मेहनत शुरु कर दी, भाभी ने भी हरतरह से उसका साथ दिया| उसके लिए बढ़िया से बढ़िया ट्रेनिंग की व्यवस्था करायी| उसके अभ्यास और खान-पान का पूरा ध्यान रखा| देखते ही देखते ही वह सफलता की सीढियाँ चढ़ने लगी| साल बीतते-बीतते उसने कई कुश्ती टूर्नामेंट्स जीतकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा लिया| समय बीतता गया, उसकी मेहनत रंग लाई और उसका चयन ‘कॉमनवेल्थ कुश्ती’ के लिए हो गया| आज वह कॉमनवेल्थ चैंपियन बनकर अपने शहर लौट रही थी|

अभी सपना ये सब सोच ही रही थी कि ट्रेन स्टेशन पर पहुँच गयी| वह अपनी भाभी से मिलने के लिए तेजी से बाहर की ओर भागी| किन्तु, ये क्या? स्टेशन पर तो पूरी भीड़ जमा थी| सभी मौजूद थे माँ, पापा, भैया, उन सबके दोस्त यहाँ तक कि रिपोर्टर्स और फोटोग्राफर्स भी| लेकिन भाभी कहीं नज़र नहीं आ रही थी| जब भैया फूलमाला लेकर उसके स्वागत के लिए बढ़े तो उसने पूछा|

“भैया, भाभी कहाँ हैं?”

“घर पर हैं और कहाँ होगी?” भैया ने हँसते हुए कहा|

“लेकिन वे आयी क्यूँ नहीं?” सपना ने परेशान होते हुए कहा|

“अरे! वो तो आने के लिए कह रही थी, पर मैंने ही मना कर दिया| यहाँ उसका क्या काम?” पापा ने कहा|

“और क्या जब घर जाओगी, तब मिल लेना| वो कहाँ भागी जा रही है?” माँ ने भी कहा|

इतना सुनते ही सपना भीड़ को चीरते हुए आगे बढ़ चली| भैया ने उसे रोकना चाहा तो उसने कहा “जिनकी वजह से मैं आज इस ऊँचाई पर पहुँची हूँ, उनका ऐसा अपमान मैं नहीं सह सकती। अगर उनका यहाँ कोई काम नहीं तो मेरा भी यहाँ रूकने का कोई मतलब नहीं|”

तभी रिपोर्टर्स उससे पूछने लगे “सपना जी जाते-जाते यह तो बता दीजिये कि आखिर आप किसकी बात कर रही हैं, किसकी वजह से आप यहाँ तक पहुँची हैं?”

उसने मुस्कुराते हुए कहा “इसका उत्तर तो मेरे साथ आने पर ही मिलेगा” और वह गाड़ी में बैठ घर की ओर चल दी जहाँ भाभी उसका इंतजार कर रही थी|

घर पहुँचते ही वह भाभी के गले लग झूम पड़ी| फिर साथ आये रिपोर्टर्स की ओर मुखातिब होकर बोली “ये है मेरी प्यारी भाभी, अगर इनका साथ ना होता तो मैं कभी यहाँ नहीं पहुँच पाती” और यह कहते हुए उसने अपना मैडल भाभी को पहना दिया|

सपना के व्यवहार से घरवालों की भी आंखें खुल गयी, वे बहुत शर्मिंदा हुए और उन्होंने नीरा से माफी भी माँगी| अब सपना बहुत खुश थी क्यूँकि जिस भाभी ने उसके सपनों को नई उड़ान दी, आज उन्हें भी घर एवं समाज में उनका उचित सम्मान मिल गया|

धन्यवाद।

साप्ताहिक विषय कहानी प्रतियोगिता#अपमान

शीर्षक -सम्मान

लेखिका-श्वेता अग्रवाल, धनबाद झारखंड।

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