राधिका एक गाँव की लड़की थी, जो पढ़ने-लिखने में बहुत अच्छी थी। लेकिन, जैसा कि अक्सर गाँवों में होता है, जैसे ही लड़की बड़ी होती है, उसकी शादी की चिंता शुरू हो जाती है। राधिका ने अपने पिता से पढ़ाई पूरी करने के बाद ही शादी करने का आग्रह किया। उसके पिता, जो एक किसान और समझदार व्यक्ति थे, ने राधिका की पढ़ाई का समर्थन किया। राधिका ने बी.एड. की डिग्री पूरी की और सरकारी नौकरी की तैयारी में जुट गई।
कुछ समय बाद, राधिका के पिता को एक अच्छा रिश्ता मिला और उन्होंने उसकी शादी कर दी।
राधिका की शादी रमेश नामक युवक से हुई, जो शहर में अपने माता-पिता के साथ रहता था और एक फैक्ट्री में बाबू के पद पर कार्यरत था। शादी के बाद राधिका की पढ़ाई रुक गई, लेकिन वह खुश थी कि उसका परिवार अच्छा है।
शादी के दो साल बाद राधिका ने एक प्यारी-सी बेटी को जन्म दिया, जिसका नाम रीमा रखा गया। पूरा परिवार खुश था।
एक दिन राधिका ने रमेश से कहा, “मैं पढ़ी-लिखी हूं, बी.एड. की है। क्यों न पास के स्कूल में इंटरव्यू दूं? अगर नौकरी लग गई, तो आपका आर्थिक भार थोड़ा कम हो जाएगा, और हमारी बेटी का भविष्य भी बेहतर होगा।”
लेकिन रमेश ने उसकी बात का मज़ाक उड़ाते हुए कहा, “तुम गांव की गंवार हो। तुम्हें पढ़ाई-लिखाई का क्या ज्ञान? ये शहर का स्कूल है, कोई तुम्हें यहां चपरासी भी नहीं बनाएगा। घर के काम करो, बस। तुम्हारे बस का कुछ नहीं।”
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राधिका को रमेश के इन शब्दों से गहरा धक्का लगा, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा।
समय बीता, और उसकी बेटी रीमा दो साल की हो गई। राधिका ने मन ही मन ठान लिया था कि वह अपनी बेटी को खूब पढ़ाएगी।
कुछ समय बाद, राधिका को पता चला कि वह दोबारा गर्भवती है। यह खबर उसने सबसे पहले अपने पति और फिर अपनी सास को दी। परिवार में खुशी का माहौल बन गया।
जब समय आया, तो राधिका ने एक और बेटी को जन्म दिया। डॉक्टर ने बाहर आकर खुशी-खुशी कहा, “बधाई हो, आपके घर लक्ष्मी आई है।”
लेकिन यह सुनकर राधिका की सास आगबबूला हो गई और बिना राधिका व बच्चे को देखे ही घर चली गई। रमेश भी निराश था, क्योंकि उसे बेटे की चाहत थी।
राधिका को अस्पताल से घर लाया गया, लेकिन कुछ ही दिनों बाद उसकी सास और रमेश ने उसे ताने देने शुरू कर दिए। सास ने कहा, “मेरा वंश कैसे बढ़ेगा? इस कलमुही ने सब कुछ बर्बाद कर दिया।”
रमेश ने राधिका और उसकी बेटी से किनारा कर लिया और खर्चा उठाने से मना कर दिया।
दो महीने बीत गए। सास और रमेश ने उस नन्ही बच्ची को न प्यार दिया, न गोद में लिया। उन्होंने राधिका को घर से जाने को कहा।
राधिका ने सब सहा, लेकिन उसने फैसला किया कि अब वह अपने पैरों पर खड़ी होगी। उसने पास के स्कूल में इंटरव्यू दिया और उसे अध्यापक के पद पर नियुक्ति मिल गई।
अब वह अपनी दोनों बेटियों के साथ आत्मनिर्भर होकर जी रही है। उसने ठान लिया है कि एक दिन उसकी बेटियां उसका नाम रोशन करेंगी और उसके सारे कष्ट मिट जाएंगे।
लेखक :Punit Barai (पुनीत बरई )
जिला -अयोध्या (UP)