विधवा सुलोचना जी ने अपने इकलौते बेटे अमन की शादी, एक सुंदर पढ़ी-लिखी लड़की संध्या से करवाई थी। संध्या किसी प्राइवेट कंपनी में जॉब करती थी और अमन भी एक बहुत अच्छी पोस्ट पर था।
खुद सुलोचना की शिक्षिका थी। वह अब रिटायर हो चुकी थी। उनके घर में गोमती नाम की एक लड़की काम करती थी। गोमती का स्वभाव बहुत अच्छा था और सुलोचना जी के यहां वह पिछले 6 साल से काम कर रही थी।
सुलोचना जी को वह अपनी मां की तरह आदर देती थी। अगर उनकी तबीयत खराब होती थी तो वह उनके पास थोड़ी देर रुक कर उन्हें नाश्ता भी बना कर देती थी। बर्तन धोना, कपड़े धोना और सफाई सब कुछ बहुत बढ़िया तरीके से करती थी। सुलोचना जी को उससे कोई शिकायत नहीं थी।
अमन और संध्या के विवाह को अभी 2 महीने ही हुए थे। संध्या का स्वभाव भी बहुत अच्छा था लेकिन वह कभी-कभी गोमती से बहुत रूडली बात करती थी। सुलोचना जी को यह अच्छा नहीं लगता था लेकिन उन्होंने कभी संध्या को इस बात के लिए टोका नहीं था।
एक दिन संध्या ऑफिस के लिए तैयार होकर बाहर आई,तो गोमती ने उससे कहा-” भाभी जी, आपके इयररिंग्स तो बहुत ही सुंदर लग रहे हैं। ”
संध्या ने उसे घूर कर देखा और उससे चिढ कर बोली -” तो क्या करूं, उतारकर तुझे दे दूं, और आइंदा मुझे भाभी जी मत कहना, मेमसाब कहा करो, मुझसे रिश्ता जोड़ने की कोई जरूरत नहीं है। ”
गोमती रूंआसी हो गई। उसके चले जाने के बाद सुलोचना ने गोमती से कहा-” गोमती तू बुरा मत मानना, ऑफिस में कोई परेशानी होगी टेंशन में उसने इस तरह बात की, वैसे तो बहुत अच्छी है मेरी बहू, फिर भी मैं उसे समझाऊंगी। ”
गोमती ने कहा -“ठीक है”
थोड़े दिन बाद शाम के समय, गोमती बर्तन धोने आई तो देखा की संध्या अपना सिर पकड़ कर बैठी है। उसने पूछा -” सिर में दर्द हो रहा है क्या भाभी जी, चाय या कॉफी बना दूं। ”
संध्या ने कहा-” तुझे मना किया है ना कि मुझे भाभी जी मत कहा कर, नहीं चाहिए चाय। ”
तब अमन ने उससे कहा-” संध्या तुम हमेशा गोमती से इस तरह बात क्यों करती हो, हम उसे घर का सदस्य समझते हैं और तुम हर समय उसका अपमान करती रहती हो, यह ठीक नहीं है। ”
संध्या-” मुझे इस बारे में कोई बात नहीं करनी। ”
अमन चुप होकर बैठ गया,बोलता भी क्या।
सुलोचना जी को समझ नहीं आ रहा था कि व्यवहार में इतनी अच्छी बहू है मेरी, पर गोमती के सामने आते ही इसे क्या हो जाता है।
घर में जब भी कोई मेहमान आता है उनके साथ और आस पड़ोस वालों के साथ, सबके साथ इसका व्यवहार इतना अच्छा है, पर गोमती के साथ ही ऐसा क्यों।
एक बार तो हद ही हो गई जब गोमती रोती हुई आई और सुलोचना की से कहने लगी,” मेरा हिसाब कर दीजिए, मैं कल से कम पर नहीं आऊंगी। आप कोई और कामवाली को ढूंढ लीजिए।”
सुलोचना -” गोमती रो क्यों रही है, आखिर क्या हुआ पूरी बात तो बता? ”
लेकिन गोमती बिना पैसे लिए और बिना बात बताएं रोती हुई चली गई।
उन्होंने फिर संध्या को आवाज़ लगाई और उससे पूछा, ” संध्या, क्या तुमने गोमती से कुछ कहा था? ”
संध्या-” मां जी, उसे तो मेरा एहसान मानना चाहिए कि मैं पुलिस को नहीं बुलाया। ”
सुलोचना -” पुलिस, पुलिस क्यों? ”
संध्या-” याद है आपको यह एक बार मेरे इयररिंग्स की तारीफ कर रही थी, वह वाले इयररिंग्स उसने चुरा लिए हैं, मैंने अपना पूरा कमरा छान मारा, लेकिन नहीं मिले, मुझे पक्का पता है इसी ने चुराए हैं। ”
सुलोचना ने अपने माथे पर हाथ मारते हुए कहा, ” संध्या, यह तुमने अच्छा नहीं किया, वह पिछले 6 साल से हमारे यहां काम कर रही है और वह पूरी तरह ईमानदार है। यह लो तुम्हारे इयररिंग्स। नहाते समय तुम बाथरूम में इन्हें भूल आई थी। मैंने उठाकर अपने पास रख लिए थे और तुम्हें बताना भूल गई थी। कम से कम एक बार मुझसे पूछा तो होता। ”
उसे मन ही मन अपनी गलती लग रही थी लेकिन वह सामने से अपनी गलती मानना नहीं चाहती थी। तब उसने कहा-” अच्छा हुआ आपने इयररिंग्स संभाल कर रख लिए, वरना गोमती तो पक्का अपने घर ही ले जाती, यह गरीब लोग होते ही ऐसे हैं। इन पर भरोसा नहीं करना चाहिए। ”
तब सुलोचना जी को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने संध्या को थोड़ा डांटते हुए बोला, ” बस करो संध्या, गोमती ऐसी बिल्कुल नहीं है, मैं भी देख रही हूं,जब से तुम शादी करके आई हो तुम्हारा हर एक इंसान के साथ अच्छा व्यवहार है, लेकिन गोमती के साथ हर समय तुम ऐसे बात करती हो जैसे उसका अपमान कर रही हो। ऐसे क्यों करती हो तुम। कोई तो कारण होगा। ”
संध्या-” कारण क्या होगा,,कोई कारण नहीं है। ”
सुलोचना, ” कारण कोई नहीं है तो तुम क्यों उसको हर बार नीचा दिखाती रहती हो, ( फिर वह थोड़ा प्यार से बोली ) संध्या बेटा, मुझे पता है तुम बहुत अच्छीहो, तुम सब का सम्मान करती हो, सबके साथ प्यार से पेश आती हो, फिर गोमती के साथ? ”
संध्या रोती हुई अपने कमरे में भाग जाती है और उसके मुंह से इतना निकलता है कि मैं कुछ नहीं बता सकती, मैं कुछ नहीं बता सकती।
अमन संध्या को चुप करवाता है और पूछता है, बताओ क्या बात है। संध्या रहती है मैं कुछ नहीं बता सकती, अगर मैंने बता दिया तो आप लोग मुझसे नफरत करने लगोगे।
अमन और सुलोचना -” संध्या ऐसा कुछ नहीं है, अगर तुम्हारे मन में कुछ है तो हमें बताओ। ”
संध्या रोते हुए कहती है कि मैं बहुत छोटी थी जब मेरे पिताजी गुज़र गए थे। मेरी मां दूसरे लोगों के घर मेड का काम करती थी। कभी-कभी मां मुझे अपने साथ ले जाती थी। तब वे लोग मेरी मां का बहुत अपमान करते थे। मां ने मुझे बहुत मेहनत करके पढ़ाया लिखाया और मेरी जॉब लग गई। तब हमने वह शहर छोड़ दिया।
यहां पर किसी को भी नहीं पता कि मेरी मां मेड थी। मैंने आप लोगों से भी छुपाया। वरना मेड की लड़की से कौन शादी करता। मैं हर पल अपनी मां का अपमान होते देखी थी और वह बात मेरे मन में घर कर गई। मुझे ऐसा लगता है कि मैं गोमती का अपमान करके अपनी मां के अपमान का बदला ले रही हूं क्योंकि तब मैं बहुत छोटी थी और मैं मां की तरफ से कुछ बोल नहीं पाती थी। ”
अमन और सुलोचना उसके मन का हाल समझ रहे थे। संध्या सच बात कर डर गई थी कि यह लोग मुझे अब शायद अपनाएंगे नहीं।
अमन और सुलोचना ने उसके मन के डर को दूर किया। उन्होंने कहा कि ” तुम्हारी मां ने मेहनत की, इसमें कोई बुराई नहीं है, और तुम्हें डरने की कोई जरूरत नहीं है लेकिन तुम्हें अपने व्यवहार को बदलना होगा और गोमती से सॉरी बोलकर अपनी भूल सुधारनी होगी। ”
दूसरे दिन गोमती अपना हिसाब लेने आई थी। तब संध्या ने उसे सॉरी बोला और कहा कि गोमती,तुम मुझेभाभी जी कह सकती हो। ”
गोमती ने उससे कहा-” भाभी जी,आपसे बस इतनी ही प्रार्थना है कि गरीब का अपमान ना करें, हर इंसान बेईमान नहीं होता। गरीबों को भी अपना सम्मान प्यारा होता है। ”
संध्या,-” हां गोमती तुम ठीक कह रही हो। ”
सुलोचना और अमन भी खुश थे कि उन्होंने संध्या के मन की बात जानकर उसके मन की गांठ को खोल दिया है और अब वह गोमती के साथ सही व्यवहार कर रही है।
स्वरचित अ प्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली