अपमान बना वरदान – अर्चना झा : Moral Stories in Hindi

सुबह से मूसलाधार बारिश हो रही थी रात के  भोजन का वक्त हो चला था निशा ने अपनी मां से कहा कि मैं जाकर रोटियां सेक लेती हूं आज खाना जल्दी खा लेंगे क्योंकि मौसम भी ठीक नहीं है यह कहते हुए निशा किचन की तरफ मुड़ी ही थी कि दरवाजे की घंटी बजी, निशा ने अपनी मां से कहा इतनी तेज बारिश में कौन हो सकता है, यह कहते हुए दरवाजा खोलने चली गई सामने देखती है कि एक लड़का करीब 23- 24 साल का हाथ में ब्रीफकेस लिए भीगा हुआ खड़ा था उसने निशा से पूछा,

क्या यह प्रताप जी का घर है मुझे राम मोहन जी ने भेजा है मैं… पीछे से आवाज आई कौन है बेटा निशा ने कहा कोई राकेश जी आए हैं मां, पिताजी का पूछ रहे हैं मां ने कहा हां हां उसे अंदर बुलाओ, निशा राकेश को अंदर आने का इशारा करते हुए दरवाजा बंद कर देती है राकेश उसकी मां को नमस्ते करता है, मां निशा को चाय बनाने के लिए कहती है, और राकेश को कहती है तुम भीग गये हो बेटा कपड़े बदल लो इतने में चाय आ जाएगी, देखो वो वहां बाथरूम है, राकेश जब तक कपड़े बदल कर आता है

निशा आवाज लगाकर अपने पिताजी को भी बुला लेती है और कहती है कि पिताजी आपकी मासिक आमदनी आ गई ,कह कर हंसने लगी, मां उसे आंखें दिखाती हुई राकेश की तरफ मुखातिब होकर कहती है कि बेटा इसकी बातों का बुरा मत मानना इसको तो मस्करी करने की आदत है। इतने में निशा के पिताजी प्रताप जी  राकेश उन्हें नमस्ते करते हुए अपना परिचय देने लगता है तो वह कहते हैं कि हां  तुम्हारे चाचा जी ने बताया था वह मेरे करीबी मित्र हैं बहुत ही अच्छी कंपनी में  जॉब लगी है बहुत-बहुत मुबारक हो बेटा और इसे अपना ही घर समझो जब तक चाहो आराम से रहो,

राकेश ने इसी साल इंजीनियरिंग खत्म की और कैंपस से एक अच्छी जॉब मिली जो मुम्बई में थी इसलिए वो अपने चाचाजी के मित्र के यहां बतौर पेइंग गेस्ट रहने आ गया, निशा अपने मां पिताजी की एकलौती संतान थी, बड़ी ही नाजों से पली खुशमिजाज लड़की थी निशा, और हां किचन से उसका दूर दूर तक कोई रिश्ता नहीं था,वो तो उस दिन मां की तबीयत ठीक नहीं थी तो उसे बिस्तर से उठने ही नहीं दिया, असल में निशा की दुनिया भी उसके मां और पिताजी ही थे इसके अलावा एक दोस्त थी सुचित्रा,

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दोनों एक ही कॉलेज में हैं बचपन से जवानी की दहलीज पर कदम भी साथ -साथ रखा , खैर भोजन के दौरान थोड़ी देर बातचीत कर राकेश को ऊपर वाला कमरा दिखाने को कह कर पिताजी अपने शयनकक्ष में चले गए, और मां सीढ़ियां नहीं चढ़ सकती थी तो नीचे से ही बता रही थी , देखते-देखते 2 साल बीत गए अब राकेश परिवार के सदस्य जैसा ही था , सुचित्रा भी उससे काफी घुल-मिल गयी थी, उसका तो आधा समय निशा के घर ही बीतता था लेकिन वो बहुत ही कम बोलने वाली स्कूल कॉलेज में अव्वल आने वाली मेघावी छात्रा थी, निशा हमेशा राकेश से सुचित्रा की तारीफ करते नहीं थकती थी।

एक दिन निशा के पिताजी सोफे पर बैठ अख़बार पढ़ रहे थे राकेश ने घर के अंदर कदम रखते ही कहा, अंकल निशा की शरारतें बढ़ती ही जा रही है आज तो दरवाजे से अंदर ही नहीं आने दे रही थी मुझे, प्रमोद जी ने हैरत से पूछा क्यों, उसकी बात काटते हुए निशा बोली अरे पिताजी ये दो दिन से मेरी छतरी लाना भूल जाते हैं, ऑफिस में किसी के हाथ बेच दी लगता है, राकेश ने कहा सुना अंकल अब ये ऐसा भी कहेगी मुझे, कल याद से ले आऊंगा तुम्हारी छतरी, कैबिन में भूल आता हूं, तुमने खुद ही तो दी थी

जबरदस्ती की भीग जाओगे, हां दी तो थी पर वापस भी लानी थी, राकेश ने कहा अंकल मैं तो कहता हूं इसकी शादी करा कर ससुराल भेज दो, फिर वहां सुधर जायेगी, अच्छा तो क्या मैं बिगड़ी हुई हूं एक तो चोरी ऊपर से सीना जोरी, कहते हुए वो राकेश के पीछे दौड़ी, राकेश बोला आंटी प्लीज़ बचाओ मुझे, दोनों बाहर की तरफ भागे थे, और पिताजी ना जाने क्या सोच कर दरवाज़े की तरफ देखे जा रहे थे, निशा की मां ने कहा, सुनिए जी आपसे एक बात कहनी थी, हमारी निशा के लिए राकेश कैसा रहेगा, प्रमोद जी ने कहा तुमने तो मेरे मुंह की बात छीन ली, मैं भी वही सोच रहा था, ठीक है फिर,कल राकेश से इस विषय में बात करते हैं।

अगले दिन जब निशा कुछ सामान लाने बाहर गयी थी, उसके पिता जी ने ये बात छेड़ दी और राकेश से कहा कि तुम्हें हमारी निशा कैसी लगती है, ये सुनकर राकेश ने हैरत से पूछा निशा बहुत अच्छी लड़की है लेकिन आप मुझसे क्यों पूछ रहे हैं,दरअसल हम चाहते हैं कि तुम

हमारी निशा का हाथ थाम लो ,ये सुनकर राकेश झटके से उठकर खड़ा हो गया, उसने कहा ये आप क्या कह रहे हैं अंकल, मैं ऐसा सपने में भी नहीं सोच सकता , निशा एक नासमझ ग़ैर ज़िम्मेदार लड़की है, पढ़ाई में भी उसका मन नहीं लगता,माना कि आपने अपने बेटे जैसा मान दिया लेकिन उसके बदले में इतनी बड़ी कीमत वसूलना चाहते हैं मुझे पता नहीं था, मैं आज ही आपका घर छोड़कर जा रहा हूं,आपका बहुत बहुत धन्यवाद,हाथ जोड़ते हुए वो ऊपर की तरफ़ चल दिया, निशा ने दरवाज़े की ओट से सारी बात सुन ली , पर अंदर आते ही वो ऐसा बर्ताव कर रही थी मानो कुछ सुना ही नहीं 

कुछ ही समय में अपना ब्रीफकेस उठाकर राकेश नीचे उतरा, निशा ने पूछा आप कहां जा रहे हैं मां ने कहा कुछ नहीं बेटा इसे हमसे भी अच्छे लोग मिल गये वहीं जा रहा है, राकेश बिना कुछ जवाब दिए गेट की तरफ बढ़ा, कुछ दिनों से सुचित्रा ने भी आना छोड़ दिया तो पता चला उन दोनों की शादी होने वाली है, ये सुनकर प्रमोद जी को बड़ा सदमा लगा,

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निशा ने अपने पिता से कहा पिताजी मैंने आपकी और राकेश की बातें उस दिन सुन ली थी, हम किसी की सोच को नहीं बदल सकते पर खुद को साबित जरूर कर सकते हैं, लेकिन आपको मेरा साथ देना होगा,अब आप किसी से मेरी शादी की बात नहीं करेंगे, अब ना खाने की सुध ना सोने की,बस पढ़ाई पढ़ाई,और देखते ही देखते कुछ ही सालों में एक सरकारी अफसर बन गई निशा, दूसरे शहर में स्थानांतरण हो गया, अगली सुबह वो अपने परिवार के साथ नये शहर के लिए रवाना होती कि उसी रात वही समय और वैसी ही बारिश हो रही थी जब दरवाजे की घंटी बजी, सामने सुचित्रा और राकेश थे, निशा ने बड़ी गर्मजोशी से उनका स्वागत किया, सुचित्रा और राकेश शर्मिंदा थे और अपने व्यवहार के लिए माफी मांग रहे थे, 

निशा ने कहा तुम्हें माफी मांगने की कोई आवश्यकता नहीं, मुझे तुमसे कमतर और अपने लिए अयोग्य समझ राकेश ने मेरे जीवन को नई दिशा दी, मेरे माता-पिता को मुझ पर गर्व है और  बाकी दुनिया से मुझे मतलब नहीं। तुम्हारा अपमान मेरे लिए वरदान साबित हुआ, ये कहते हुए निशा उठ गई और बोली मां मैं सोने जा रही हूँ कल जल्दी उठना है ना, राकेश की तरफ देखकर बोली मुझे मालूम है तुम यहां क्यों आए हो, तुम्हें शिफारिश चाहिए ना अपनी प्रमोशन के लिए, मैं बात कर लूगी मेहरा जी से।

मां इनको खाना खिला कर ही भेजना, कहकर वो मुस्कुराती हुई अपने कमरे की तरफ बढ़ गई।।

अर्चना झा

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