एक बार फिर
कितनी बेबसी से देख रहा था मनन , कृशकाय मिनि बिस्तर पर असहाय सी लेटी थी ,,, पता नही कब से तबियत खराब चल रही थी , पर मनन के पास फुर्सत कहाँ थी , बस रात दिन काम , बहुत फैला हुआ बिजनेस ।
उसे नही पता कैसे वह दोनों बच्चों, उसकी माँ, घर के नौकर चाकर , इतने बड़े घर की देखभाल की जिम्मेदारी कितनी बखूबी निभा रही है ।
कभी न कोई शिकायत न शिकवा , न अपने लिये , अपनी खुशियों के लिये किसी तरह की कोई इच्छा।बस अपने कर्तव्यों का पालन करना ही एक मात्र उद्देश्य रह गया था जीवन का।
एक एक कर जाने कितनी बातें याद आ रही थीं उसे , एम. टैक. कर रखा था मिनी ने , एक बार कहने लगी ,’ एक जाॅब का आॅफर है , कर लूँ? थोड़ा मन लगेगा?”
कितनी बुरी तरह झिड़क दिया था तब उसने ,” इतनी धन दौलत किसके लिये है ? क्या कहेंगे लोग?”
चुप होकर रह गई थी तब ।एक बार कहने लगी ,’ चलो कहीं घूमने चलते है ।मुझे पहाड़ों पर घूमना बहुत पसन्द है।”
” देख रही हो मरने की भी फुर्सत नहीं है।जाओ अपनी दोस्तों के साथ मूवी देख आओ , उसमें पहाड़
ही पहाड़ हैं । “
प्यार तो बहुत करता था उसे , ढेर सारी साड़ियाँ, डायमण्ड ज्वैलरी लाता , वह देखकर कहती , ” कहाँ पहन कर जाऊँगी यह सब ।”
पूछता ,” क्या चाहिये तुम्हे बोलो?”
” वही जो तुम दे नही सकते , अपना समय, ” ठंडी साँस लेकर बोलती वह ।और वह हँस कर टाल देता ।
अब जब बच्चे विदेश में माँ गुजर गईं तब अकेलापन उसे बहुत सिलने लगा ।
अब जब डाक्टर ने कहा इनकी हालत ठीक नहीं तो उसको होश आया।कितनी लापरवाही रही , क्या करूँ जो वह फिर पहले जैसी हो जाये।
तभी मिनी ने आँखे खोली , एकदम उसके पास आकर बोला ,” कैसी हो मिनी? मै अब तुम्हें छोड़कर कहीं नही जाने वाला , जो सभ्य बीत गया वह तो मैं लौटा नहीं सकता पर अब से मेरा सारा समय सिर्फ तुम्हारे लिये ।
एक बार तुम ठीक हो जाओ , सबसे पहले हम हिमाचल चलेंगे ।सारे पहाड़ शिमला , मनाली , डलहौजी घुमाऊँगा तुमको।
एक बार फिर से हम शुरू करेगे
अपना खुशियों के रंगों से भरपूर जीवन।मैने जो अन्याय किया है तुम्हारे साथ उसका पश्चाताप करूँगा मैं ।”
धीरे से मुस्कुरा दी मिनी , कितनी फीकी थी न वह मुस्कुराहट।
सुधा शर्मा
मौलिक स्वरचित