पूर्वी उत्तर प्रदेश और बुंदेलखंड में क्वाँर के महीने में दशहरे से शरद पूर्णिमा तक टेसू और झेंझी के विवाह का उत्सव बच्चों द्वारा मनाया जाता है,,
मिट्टी का टेसू बनाकर बांस के हाथ पैर लगायेजाते हैं, कौड़ी की आँखें और मुँह बनाया जाता है,,और उसे कुर्ता पायजामा पहनाते है,, यह काम लड़के करते हैं,,
लड़कियाँ झेंझी खेलती हैं,, एक छोटी मिट्टी की मटकी, जिसमें 12 छेद होते हैं,,उसके अंदर थोड़े से गेहूँ डालकर कड़वे तेल का दीपक जलाया जाता है और उसे कपड़े से ढक कर रखते हैं,,
लड़के टेसू लेकर और लड़कियाँ झेंझी लेकर टोली बनाकर रात में घर घर चंदा मांगने जाते हैं और बड़े अच्छे अच्छे गाने सुनाते हैं जिससे खुश हो कर लोग उन्हें पैसे देते हैं,, यह एक खेल है इसलिये मांगना बुरा नहीं माना जाता,,
उनके गाने भी बहुत मनभावन होते हैं,,
मेरा टेसू यहीं अड़ा, खाने को मांगे दही बड़ा,,
दही दूध बहुतेरा, खाने को मुँह टेढ़ा l
टेसू मेरो रसिया, ट्यूशन गयो दतिया
पढ़त पढ़त थक गयो, झेंझी को ले के भाग गयो l
ऐसे गाने सुनकर दिल खुश हो जाता है और लोग हँसते हुए पैसे दे ही देते हैं,,
यह खेल मथुरा, आगरा के आस पास के गांवों और बुंदेलखंड में आज भी प्रचलित है,, बहुत रोचक भी है,, बच्चे साल भर इसका इंतज़ार करते हैं,,
यह परंपरा महाभारत काल से चली आ रही है किंतु अब सिमट कर गाँवों तक ही रह गई है,, बड़े लोग भी इसमें भाग लेते हैं,, और बच्चों का पूर्ण सहयोग करते हैं,,
शरद पूर्णिमा को उनका विवाह होता है,, लड़के टेसू की बारात लेकर धूमधाम से झेंझी के घर जाते हैं,, महिलाएं मंगल गान गाती हैं,, बाजे और डीजे पर डांस होता है,, बढ़िया स्वागत सत्कार होता है बारात का,,
लड़कों का पूरा प्रयास रहता है कि टेसू को उसकी प्रियतमा की कम से कम एक झलक तो मिल ही जाये पर लड़कियाँ वधू को पूरी मुस्तैदी से छिपा कर रखती हैं,, फिर फेरों की बारी आती है,,
पर फेरों के पूरे होने से पहले ही टेसू का सर काट दिया जाता हैं,, और विवाह अधूरा रह जाता है,,
इसके पीछे एक किंवदंती है,, महाभारत काल में भीम के पुत्र घटोत्कच का बेटा बर्बरीक बहुत बलशाली था,, उसे अपने बल पर बहुत घमंड था,, वह हमेशा हारने वाले की मदद करके उसे जिता देता था,,
एक दिन उसने अपनी मां से कहा,, मैं महाभारत का युद्ध देखना चाहता हूँ,,
लाख मना करने पर भी वह नहीं माना और युद्ध भूमि की ओर चल पड़ा,, रास्ते में उसकी मुलाकात झेंझी से हुई और उन दोनों को प्यार हो गया,, वापस लौटकर विवाह का आश्वासन दे कर वह अपने गंतव्य की ओर रवाना हो गया,,
जब उसने देखा कि कौरवों की सेना कमजोर पड़ रही है तो स्वभावानुसार उसने उनकी तरफ से युद्ध करने का निर्णय लिया,, लेकिन श्रीकृष्ण ने अपने चक्र से उसका सर काट दिया, , वरदान के कारण उनकी मृत्यु नहीं हुई और वह फिर भी जीवित रहे,,
और झेंझी से किये गये वादे को निभाने उसके पास पहुंचे तो उनके बिना सर के धड़ को देखकर लोग भयभीत हो गये,,
और झेंझी की मां ने उनसे बेटी का विवाह करने से इंकार कर दिया,, दुःखी हो कर उन्होंने जलसमाधि ले ली,,
झेंझी किनारे पर टेर लगाती ही रह गई,,उसका इंतज़ार पूरा होकर भी अधूरा रह गया,, हर कोई इस प्रेम के अधूरे रहने पर दुखी था,,
तभी से इस घटना की हर साल पुनरावृत्ति को परम्परा का रूप दे दिया गया है,, इस प्रकार लोग उस अनूठी प्रेम कहानी के प्रति सम्मान व्यक्त करते हैं,,
कमलेश राणा
ग्वालियर