जब हैप्पी बर्थडे के शोर ने घर को आवृत्त किया, विनया मनीष के बगल में आकर शर्मीली सी मुस्कान लिए हुए उस विशेष क्षण की ओर देख रही थी। शर्मीली मुस्कान के साथ उसकी आँखों में चमक थी, जो बता रही थी कि यह छोटा सा क्षण उसके लिए कितना महत्वपूर्ण था।
संपदा विनया की स्थिति को समझती हुई आगे बढ़कर उसे गले से लगाती हुई कहती है, “आपका जन्मदिन हमारे लिए सच्चे प्यार का प्रतीक है। आपकी मुस्कान ही हमारे घर को रंग से भर देती है, भाभी।” इसके साथ ही उसकी आँखों से गिरे एक आंशिक आँसू ने उसकी भावनाओं को और भी गहरा बना दिया। गले से लगे हुए उनके चेहरे पर दिखाई देने वाली भावनाएं एक नये पथ पर बढ़ने की सूचना दे रही थी और अंजना दोनों की गलबहियां देख बस मुस्कराती रही और उस समय का आनंद लेती रही, जिसमें प्यार और खुशी दोनों ही विशेष हो गए थे।
“तब ननद रानी हमारे प्रकृति प्रेमी का प्रेम कैसा लगा।” दीपिका पीछे से आकर दोनों अपनी बांहों में समेटती हुई कहती है।
“भाभी, आप!” विनया दीपिका को देख खुशी से चहक उठी।
“भैया”, विनया दीपिका से लिपटती सौरभ पर नजर पड़ते ही दोनों हाथ फैला देती है और दीपिका और सौरभ दोनों ही उसे बच्ची की तरह समेट लेते हैं।
“हैप्पी बर्थडे भाभी, ये आपके लिए।” मिन्नी और विन्नी आगे बढ़कर कान का झुमका उसे आगे करती हुई कहती है।
“ये, ये नहीं, आप दोनों यहां हैं, यही बहुत है।” विनया दोनों के हाथों को थामती हुई कहती है।
“मिन्नी, विन्नी ये क्या है, छोटी हो तुम दोनों।” अंजना आगे बढ़ कर सकुचाई विनया को राहत देती हुई कहती है।
“अंजना बहू, ये तो विनया का अधिकार, हमारी तरफ से इसके लिए उपहार हैं।” मंझली बुआ आगे आकर कहती हैं।
“पर” अंजना के चेहरे पर असमंजस के भाव उभर आए थे और मंझली बुआ के चेहरे पर शर्मिंदगी के भाव आ जा थे थे।
“ठीक है ना मम्मी, विनया के लिए बुआ का आशीर्वाद है।” झुमके हाथ में लेकर विनया की ओर बढ़ाता हुआ मनीष कहता है।
“भैया आप अपने हाथों से पहना दीजिए।” दोनों बहनें जिद्द करती हुई कहती हैं।
मुझे कहां आता है ये सब। चेहरे पर चाह के भाव के साथ अपने पापा की ओर नीची नजर से झेंपता हुआ मनीष कहता है।
मुकुंद मनीष की परेशानी भांप दिल से हंसते हुए उसकी ओर मुड़ते हुए कहते हैं “तुम्हारे पापा तो हमेशा यहाँ हैं, बस कुछ समय के लिए दूर चले गए थे बेटा। ये दिन बार बार नहीं आता है बेटा, बहू ने ही अहसास कराया है कि समय के साथ बदलते रहने से मन खुशियों से कभी रिक्त नहीं होता है।”
इसके बाद, मनीष पापा की बात सुनकर अंजना की ओर देखता है और अंजना की ऑंखों में खुशी और स्वीकृति देख मनीष का चेहरा एक संवेदनशीलता के साथ बदला, जो उसके अंदर छिपे भावनात्मक चेहरे को दर्शा रहा था।
अंजना आगे बढ़कर कहती है, हाॅं, बेटा तुम्हारे पापा सही कह रहे हैं। वक्त के साथ ना बदलो तो वक्त सब कुछ बदल देता है। जिसकी जीती जागती मिसाल हम दोनों ही हैं।” साथ ही हाथ से विनया की ओर बढ़ने का इशारा करती है।
मनीष झुमका लिए विनया की ओर बढ़ता है और विनया सबके सामने शर्माई सकुचाई सी खुद में सिमटती जा रही थी और उसके माथे पर फिर से स्वेद कण झिलमिला उठे थे, जिसे देख मुस्कुराता हुआ मनीष झुमका कान में कसता हुआ धीमे धीमे विनया से कह रहा था, “”तुम्हारे भावनात्मक स्वरूप को समझना मेरे लिए गर्व की बात है। तुम्हारी आत्मा में छुपी सारी भावनाएं मेरे लिए स्पष्ट हैं और मैं जानता हूं कि तुम्हारी इस सच्चाई में ही तुम्हारी सारी मासूमियत और प्रेम छुपा हुआ है।” मनीष की बात विनया के कानों में मिश्री बनकर घुल रही थी और उसने एक मुस्कान के साथ मनीष की ओर देखा, जिसमें मनीष के लिए प्यार भरा हुआ था।
विनया की आँखों में मनीष के प्रति विश्वास और प्यार की चमक है, जो दिल को छू जाती है। मनीष और विनया का संबंध एक नए अध्याय की शुरुआत को सूचित करता है, जहाँ संवेदनशीलता और समर्थन एक मिठास से भरा हुआ है। शर्माहट और सकुचाहट का अंधकार एक नए प्रेम के रंगत में पिघल गया और वे एक नए यात्रा की शुरुआत के लिए एक-दूसरे के साथ चलने लगे।
उनका प्रेम एक अनूठा सफर है, जिसमें भावनाएं शब्दों से परे हैं। इस नए पथ पर चलते हुए विनया और मनीष के बीच की मिठास और समर्थन एक नए स्तर पर पहुंच रहे हैं। उनकी भावनाओं का आदान-प्रदान वहां उपस्थित सदस्यों को हर चरण में महसूस हो रहा था। यह यात्रा उन्हें नए दृष्टिकोण और संबंधों की सृष्टि का अनुभव कराने का वादा कर रहा था, जिससे हर कदम पर नई राहें खुलती हैं और प्रेम का सफर और भी मनमोहक बनता है।
“प्रेम प्यार मुहब्बत शेरो शायरी की बदली बरस कर भिगो गई हो तो केक शेक से मुंह मीठा किया जाए।” संपदा केक लिए आती है और टेबल पर रखती हुई कहती है।
“हाॅं, हाॅं, क्यों नहीं, चलो।” मनीष टेबल की ओर मुड़ता हुआ कहता है।
“ऐसे नहीं, ऐसे नहीं, अभी तो कानों में खुफिया बातें हो रही थी और अब रूखा सूखा चलो। चार कदम पर केक रखा है और आप मनीष जी एक एक शेर के साथ अपनी पत्नी का हाथ पकड़े केक तक लायेंगे।” दीपिका मनीष को रोकती हुई कहती है।
“भाभी मैं कहां ये सब।”
“आप नहीं, आपकी पत्नी तो ये सब, तो वही कुछ हो जाए।” सोफे पर रखे डायरी की ओर इशारा करती हुई दीपिका कहती है।
“आह भाभी, आप भी”
“इसकी पारखी नजरों से बचना मुश्किल है मेरे भाई।” सौरभ दीपिका के कंधे पर हाथ रखता हुआ कहता है।
“केक भी भाभी के हाथ से कटने के लिए मचल रहा है भैया।” संपदा ठुनकती हुई कहती है।
मनीष विनया का हाथ एक कदम लेता हुआ कहता है –
हर कदम पर नए सफर का आगाज़ हो रहा।
इश्क़ के सफर में, हर पल कुछ खास हो रहा।।
“वाह, वाह बहुत बढ़िया।” दीपिका के साथ साथ सभी ताली बजाते हुए कहते हैं और विनया इस पंक्ति पर झटके से सिर उठाकर मनीष की ओर देखती है।
मनीष दूसरे कदम के साथ जज्बात की रौ में विनया के झुके सिर को देखते हुए कहता है–
बदल रहा है दिलों का जज़्बा, रूह में है उमंग।
इश्क़ की बहारों में, खिल रहा है हर एक रंग।।
सुनकर विनया के होंठों पर बहुत ही धीमी सी मुस्कान आती है और वो चोर नजर से अपनी डायरी की ओर देखती है।
मनीष दो शेर के बाद थोड़ा बेतकल्लुफ हो गया। थोड़ा सा झुककर थोड़ी अदा के साथ विनया को अपनी नजरों की जद में लिए गुनगुनाता है–
प्रेम की बातों में खो जाएं, सजा दें शायरी से रातें।
मुहब्बत की बदली में, शेरों में करनी हैं बहुत बातें।।
“फिर तो बदली के लिए बरसात के मौसम की प्रतीक्षा करनी होगी, मनीष जी।” दीपिका चुटकी लेती हुई कहती है।
दीपिका की चुटकी पर मिन्नी हॅंसती हुई कहती है, “भाभी, मत छेड़िए मेरे भैया को। केक बेचारा बुरा मान जाएगा।”
“भैया एक और शेर के साथ पहुंचिए।” विन्नी टेबल के पास खड़ी होकर कहती है।
मनीष अपने दोनों हाथों से विनया के दोनों हाथ थामते हुए कहता है–
बरसात की रिमझिम में, लिखी है कहानी प्रेम की।
शेरों की बरसात में, दिल में छाई है राहत नई सी।।
और दोनों के कदम एक साथ टेबल के पहुंचते हैं। दोनों की इस तरह प्रेम भरी बातें सुनकर अंजना और सौरभ अपने ऑंखों के अश्रु को नहीं रोक सके और दोनों ही भवावेश में रो पड़े।
“क्या हो गया सौरभ, आप रो क्यों पड़े।” दीपिका सौरभ के ऑंसू देख परेशान हो उठी।
सौरभ कुछ बोल नहीं पा रहा था। वो बस मुस्कुराता हुआ ऑंसुओं की धार बहा रहा था और अंजना का भी यही हाल था। दोनों ही मनीष और विनया की खुशियों में रमे खुद को भूल से गए थे।
मनीष और विनया की खुशी में डूबे हुए, सौरभ और अंजना ने भी अपने दिलों की बातें ऑंखों ही ऑंखों में साझा की। सौरभ की आँखों में अब विशेष चमक थी, जो उसे उनकी खुशियों में शामिल कर रही थी। सौरभ की आँखों में वह उत्साह था जो दिखाता था कि उसकी जिंदगी में एक नया मोड़ आने वाला है और यह उसे बहुत खुशी दे रहा था।
मनीष और विनया के चेहरों पर सजे मुस्कान मेंछुपे सुख का आभास हो रहा था, जो दिखाई देने वालों को यह महसूस कराता था कि उनकी दिल की गहराइयों में खुशी की बौछार बह रही है।
अंजना भी अपने चेहरे पर चमकीली मुस्कान लिए हुए थी, जो दोनों के बीच बौद्धिक संबंध को भी देख पा रही थी। इन अनमोल लम्हों के दौरान, बिना किसी भाषा के, उनकी दिलों ने एक दूसरे से भरपूर समर्थन और समझ प्रकट किया।
आज मौसी, संभव भैया और कोयल भाभी भी होते तो और मजा आता। कोयल भाभी तो संभव भैया से कहती, “कुछ सीखिए अपने छोटे भाई से और मौसी उनकी बात पर मुंह चमकाती।” विन्नी दोनों की नकल करते हुए कहती है तो लंच करते हुए सब हॅंसते–हॅंसते दुहरे हुए जा रहे थे।
विन्नी उनकी चर्चा करती हुई बातचीत को एक नया मोड़ संबंध देती है, जिसमें सभी एक-दूसरे से अपने अनुभवों और जीवन के मूल्यों की चर्चा कर रहे थे। लंच के दौरान सभी ने एक दूसरे को अधिक समझने का मौका दिया और हंसी-मजाक में गुजारे गए समय ने उनके बीच एक प्यारा संबंध बना दिया।
“भाभी, मम्मी–पापा शाम तक तो आएंगे ना।” मनीष दीपिका की ओर देखकर पूछता है।
विनया मनीष की ओर आश्चर्य भरी दृष्टि डालती है। मनीष मम्मी–पापा क्या अंकल आंटी भी कहने में संकोच करता था और अभी बेधड़क अपनत्व भरा उद्गार व्यक्त कर रहा था।
“ऑंख फाड़ कर क्या सुन रही हैं भाभी, आप उनके मम्मी पापा को सम्मान दे सकती हैं तो क्या वो आपके मम्मी पापा को अपना नहीं मान सकते हैं।” संपदा सब्जी का डोंगा लिए खड़ी विनया के कान में फुसफुसाती है।
“आं, हाॅं” विनया कहकर रसोई की ओर मुड़ गई।
“नहीं मनीष जी, आज दोनों को घर लौटते हुए ही रात हो जाएगी। दीदी से बात हो गई है उनकी।” दीपिका बताती है।
“वैसे भैया ये शेरो शायरी कहां से सीखी आपने, ये खूबी तो आपमें नहीं थी।” संपदा भाई के प्लेट में चावल डालती हुई कहती है।
संपदा का प्रश्न सुनते ही दीपिका चम्मच प्लेट में रखती हुई कहती है, “क्या संपदा दीदी, आप भी। आपके भैया में ना सही, आपकी भाभी में तो हैं ये सारे गुण और जो आपकी भाभी से करे प्यार, वो शायरी से कैसे करे इंकार।”
“माॅं, मैं अब बाहर नहीं जाऊॅंगी, सब मेरा मजाक बना रहे हैं।” विनया लाड़ से अंजना से कहती है।
“मजाक नहीं बेटा, सबके हृदय की प्रसन्नता बाहर आ रही है। सौरभ बेटा को देखो, अभी तक उसकी ऑंखें भींगी हुई हैं। वह एक नए और खास पल के साक्षात्कार में अभी तक डूबा हुआ है, जो हमारे सभी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।” अंजना विनया के गाल थपथपाती हुई बाहर की ओर देखती हुई कहती है।
“विनया हमलोग अब घर चलते हैं। मिन्नी विन्नी इस बार तो समय नहीं मिला। अगली बार जब आओगी तो भाई का घर समझ कर निःसंकोच आ जाना।” लंच के बाद सौरभ चलने को तत्पर हुआ मिन्नी विन्नी से कहता है।
“बुआ जी, आपको भी आना है। ननद रानी ये आपकी जिम्मेदारी होगी।” बच्चों की तरह हाथ पकड़ कर खड़ी विनया से दीपिका कहती है।
“भाभी”, विनया भाव विह्वल होकर दीपिका की ओर देखकर कहती है।
विनया के रूंधे गले ने दीपिका को उसकी विह्वलता का अहसास कराया, “लो जी तब से भाई गाना बजाना कर रहे थे और अब बहना भी तान देने के लिए तत्पर हैं। आप दोनों इन अश्रुओं को संभाल कर रखिए। ऐसे मनोहारी अवसर आते ही रहेंगे।” दीपिका विनया की ओर मुड़ कर विनया के दोनों हाथ कसकर पकड़ती हुई कहती है और फिर सौरभ की ओर भी देखती है।
इस सफर में हम सभी मिलकर रिश्तों के संगीत का नया अध्याय प्रारंभ कर रहे हैं,” सौरभ मुस्कराते हुए कहता है, अपनी पत्नी और बहन की ओर मुड़ते हुए, “और इस सफलता के सफर में हम सभी नए और अनूठे संबंधों को जन्म देने के लिए तैयार हैं।”
निकलते हुए सौरभ विनया के सिर पर हाथ फेरता है और विनया सौरभ के गले लग कर फूट फूट कर रो पड़ी। विनया को अचानक इस तरह रोते देख मनीष आगे बढ़ता है और अंजना रसोई से दौड़ कर आती है लेकिन दीपिका दोनों को ही हाथ के इशारे से विनया के पास आने से मना करती है। दोनों दीपिका के इशारे पर ठिठक तो जाते हैं लेकिन दोनों का ही चेहरा उदासियों के घेरे में आ गया था।
थोड़ी देर बाद जब विनया की हिचकी रुकी तब दीपिका का एक हाथ उसके कंधे पर थमा हुआ था, साथ ही एक हाथ से उसने सौरभ का हाथ थाम रखा था, इस दौरान वो भाई बहन के बीच सीधी बनी उन्हें एक गहरे भावनात्मक अंतरंगता की ओर मोड़ रही थी।
“क्या हुआ मेरी बच्ची”, अंजना विनया के करीब आकर पूछती है।
“आंटी जी के यह कई दिनों का दबा गुबार था, जो इन्होंने अपनी प्यारी मुस्कान को पीछे छुपा रखा था। उनकी प्यारी मुस्कान के पीछे गुप्त भावनाएं थीं, जो उनके कजरारे नैनों से बह गईं। अच्छा हुआ आज ही सब बह गया। नया जीवन बाहें फैलाए स्वागत के लिए तैयार है।” अंजना से कहती दीपिका हतप्रभ से मुंह पर बारह बजाए मनीष को देखती हुई कहती है।
मंझली बुआ किसी बात पर प्रतिक्रिया नहीं दे पा रही थी क्योंकि घर का यह वातावरण उनके लिए बिल्कुल नया नया था, दीपिका की बातों को ध्यान से सुनते हुए हंसते हुए कहती हैं, “हाँ, यह बिल्कुल अच्छा है कि सब बह गया है और नया जीवन शुरू करने के लिए हम सभी तैयार हैं।”
तुम्हारी बातें सही है, दीपिका बेटा। हमें आगे बढ़ने के लिए तैयार रहना चाहिए, क्योंकि जीवन हमें हमेशा नए रास्तों पर ले जाता है।” अंजना विनया ऑंसू प्यार से पोछती हुई कहती है।
भाभी, आप रोती हुई बिल्कुल अच्छी नहीं लगती हैं। मनीष के साथ स्टेशन जाने के लिए मंझली बुआ, मिन्नी, विन्नी निकलते ही संपदा और विनया अंजना के साथ उसके कमरे में ही बैठती हुई कहती है और जानती हैं पापा भी आपके रोने से दुःखी हैं, उन्होंने कहा है “राजकुमारी विनया को किसी ने भी कष्ट पहुंचाया तो उनका सिर कलम कर दिया जाएगा।”
“दीदी दीदी, आप शकुंतला हैं, मुगल घराने की कन्या नहीं हैं।” संपदा के अभिनय पर विनया और अंजना हॅंसने लगी थी।
“भाभी, अभी आपके लिए एक और सरप्राइज़ है। जो थोड़ी देर में ही पहुंचता होगा।” संपदा नाटकीय अंदाज में कहती है।
“क्या है?” विनया उत्सुकता से पूछती है।
“ओह हो, ये औरतें भी ना! समान नहीं आ रहा है। कोई इंसान आने वाला है।” संपदा रहस्यमयी तरीके से कहती है।
“सरप्राइज़ है, ऐसे कैसे बता दें भाभी।” विनया के नेत्र प्रश्नवाचक चिन्ह बने हुए थे, जिन्हें देख कर संपदा आराम की मुद्रा में पैर फैलाती हुई कहती है।
“माॅं , कौन?” विनया अब अंजना की ओर दृष्टि डालती है।
“अपनी सहेलियों को आमंत्रित किया होगा इसने, और क्या?” अंजना तकिए का टेक लिए लिए ही दोनों को देखकर कहती है।
अगला भाग
अंतर्मन की लक्ष्मी ( अंतिम भाग ) – आरती झा आद्या : Moral Stories in Hindi
अंतर्मन की लक्ष्मी ( भाग -43)
अंतर्मन की लक्ष्मी ( भाग – 43) – आरती झा आद्या : Moral Stories in Hindi
आरती झा आद्या
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